पहले खून के दिए फिर भूमि समाधि-सिहोरा को जिला बनाने की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर।

 पहले खून के दिए फिर भूमि समाधि-सिहोरा को जिला बनाने की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर।

दीपावली पर सिहोरा वासी जलाएंगे खून के दीए, 26 अक्टूबर को भूमि समाधि सत्याग्रह — “मैं भी लूंगा भूमि समाधि” अभियान से जन-जन में फैल रही चेतना, सिहोरा की आवाज़ अब और बुलंद।

सिहोरा,ग्रामीण खबर MP।

सिहोरा को जिला बनाने की वर्षों पुरानी मांग अब एक बार फिर अपने चरम पर पहुंच गई है। लंबे समय से उपेक्षित इस क्षेत्र की जनता अब आर-पार के मूड में दिख रही है। लक्ष्य जिला सिहोरा आंदोलन समिति ने रविवार को आयोजित महत्वपूर्ण बैठक में यह निर्णय लिया कि दीपावली के पावन पर्व पर सिहोरा वासी “खून के दीए” जलाकर सरकार के समक्ष अपनी भावनाएं प्रकट करेंगे। इसके बाद 26 अक्टूबर को बाह नाला के पास भूमि समाधि सत्याग्रह किया जाएगा, जिसमें सैकड़ों नागरिक जमीन में गर्दन तक गड़कर प्रतीकात्मक समाधि लेंगे।

यह घोषणा होते ही सिहोरा क्षेत्र में आंदोलन की नई लहर दौड़ गई है। लोग इसे अब सम्मान और अस्मिता का प्रश्न मानने लगे हैं। समिति का कहना है कि सरकारों ने वर्षों से केवल आश्वासन दिया, परंतु अब जनता ठोस परिणाम चाहती है। इस बार आंदोलन का स्वर पहले से कहीं अधिक प्रखर होगा।

दीपावली पर “खून के दीए” जलाने का निर्णय सिहोरा के नागरिकों की गहरी पीड़ा और आत्मबल का प्रतीक है। आंदोलन समिति का कहना है कि यह दीए केवल प्रकाश के नहीं, बल्कि त्याग और बलिदान की भावना के प्रतीक होंगे। इससे सरकार को यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि सिहोरा की जनता अब अपने अधिकार के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।

भूमि समाधि सत्याग्रह का स्वरूप भी अत्यंत अनोखा और प्रभावशाली होगा। इसमें नागरिक जमीन में गर्दन तक गड़कर अपनी मांग के समर्थन में शांतिपूर्ण प्रतिरोध दर्ज कराएंगे। समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसात्मक होगा, परंतु इसकी प्रतिध्वनि पूरे प्रदेश में सुनाई देगी।

सोशल मीडिया पर भी यह आंदोलन तेजी से फैल रहा है। “मैं भी लूंगा भूमि समाधि” शीर्षक से चल रहा अभियान व्यापक जनसमर्थन पा रहा है। सैकड़ों युवाओं, महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों ने अपने प्रोफाइल पर यह टैग लगाकर आंदोलन के प्रति समर्थन जताया है। इससे यह स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि सिहोरा की यह मांग अब जनांदोलन का रूप ले चुकी है।

समिति के सदस्यों ने बताया कि सिहोरा को जिला बनाने के सभी तर्क पहले से ही सरकार के पास प्रस्तुत हैं। जनसंख्या, क्षेत्रफल, भौगोलिक स्थिति, प्रशासनिक सुविधा और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि — हर दृष्टि से सिहोरा एक स्वतंत्र जिले के रूप में योग्य है। फिर भी दशकों से केवल राजनीतिक टालमटोल के कारण यह मांग अधूरी रह गई है। जनता अब इस उपेक्षा से आक्रोशित है।

बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि अब कोई भी राजनीतिक दल या नेता सिहोरा की जनता को झूठे वादों में नहीं फंसा सकेगा। आंदोलन समिति जनता के सहयोग से इस अभियान को तब तक जारी रखेगी जब तक सिहोरा को जिला घोषित नहीं कर दिया जाता।

आंदोलन समिति की इस ऐतिहासिक बैठक में अनिल जैन, कृष्ण कुमार कुररिया, आशीष तिवारी, विकास दुबे, संतोष पांडे, राजभान मिश्रा, रामजी शुक्ला, मनोज पटेल, जितेंद्र श्रीवास, संतोष वर्मा, संजय पाठक, नरेंद्र गर्ग, रमेश पाठक, नंदकुमार परोहा, राजेश कुररिया, विनय तिवारी, शिवशंकर गौतम, मानस तिवारी, अमित बक्शी, सुशील जैन और मोहन सोंधिया सहित अनेक प्रमुख सदस्य उपस्थित रहे।

बैठक के अंत में सदस्यों ने एक स्वर में कहा कि सिहोरा को जिला बनाना अब केवल प्रशासनिक मांग नहीं, बल्कि जनता की भावना और आत्मसम्मान का प्रश्न है। दीपावली के खून के दीए और भूमि समाधि सत्याग्रह आंदोलन इस संघर्ष के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होंगे। सिहोरा की यह पुकार अब सिर्फ सरकार तक नहीं, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में गूंज उठेगी।

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