मुख्यमंत्री की बड़ी कार्रवाई:एसडीओपी और थाना प्रभारी समेत 11 पुलिसकर्मियों पर डकैती का केस दर्ज,हवाला लूटकांड से हिली मप्र पुलिस।

 मुख्यमंत्री की बड़ी कार्रवाई:एसडीओपी और थाना प्रभारी समेत 11 पुलिसकर्मियों पर डकैती का केस दर्ज,हवाला लूटकांड से हिली मप्र पुलिस।

सिवनी हवाला धन प्रकरण में डीजीपी कैलाश मकवाना के आदेश पर दर्ज हुई ऐतिहासिक एफआईआर — सीएसपी पूजा पांडे सहित 11 पुलिसकर्मी बने आरोपी — आईजी जबलपुर प्रमोद वर्मा ने सिवनी एसपी को थमाया शो कॉज नोटिस, मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने कहा “पुलिस भी कानून से ऊपर नहीं।

भोपाल/सिवनी,ग्रामीण खबर MP।

मध्यप्रदेश पुलिस महकमे में उस समय हड़कंप मच गया जब मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव के निर्देशों के बाद पुलिस विभाग के ही 11 अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ डकैती, अपहरण और आपराधिक षड्यंत्र जैसे संगीन आरोपों में एफआईआर दर्ज कर ली गई। इस कार्रवाई ने प्रदेशभर में सनसनी फैला दी है, क्योंकि यह शायद पहला मौका है जब राज्य के इतिहास में किसी पुलिस अधिकारी वर्ग के खिलाफ सामूहिक रूप से इतनी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया हो।

पूरा मामला सिवनी जिले के बहुचर्चित हवाला लूटकांड से जुड़ा हुआ है। हवाला कारोबारियों से बरामद भारी रकम को लेकर सिवनी पुलिस के कुछ अफसरों और कर्मचारियों पर यह आरोप लगा कि उन्होंने जब्ती की विधिक प्रक्रिया पूरी करने के बजाय उस धन को गुप्त रूप से अपने कब्जे में ले लिया। इस मामले की सूचना जब उच्च अधिकारियों तक पहुंची तो मुख्यमंत्री कार्यालय से सीधे रिपोर्ट तलब की गई। इसके बाद प्रदेश के डीजीपी कैलाश मकवाना ने तुरंत सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए।

डीजीपी के आदेश पर थाना लखनवाड़ा में अपराध क्रमांक 473/2025 के तहत सीएसपी पूजा पांडे सहित 11 पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया है। बीएनएस की धारा 310(2) डकैती, 126(2) गलत तरीके से रोकना, 140(3) अपहरण और 61(2) आपराधिक षड्यंत्र के तहत यह मामला दर्ज हुआ है। इन धाराओं की गंभीरता को देखते हुए इसे राज्य की अब तक की सबसे बड़ी पुलिस विभागीय एफआईआर माना जा रहा है।

विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि हवाला कारोबारियों से जब्त की गई रकम करोड़ों में थी, जिसे पुलिस टीम ने आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं किया। इस कार्रवाई से यह साफ संकेत मिल रहे हैं कि भ्रष्टाचार की जड़ें अब पुलिस व्यवस्था तक पहुंच चुकी थीं और इस पर रोक लगाने के लिए शासन को स्वयं हस्तक्षेप करना पड़ा।

मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए कहा है कि कानून सबके लिए समान है। अगर कानून के रखवाले ही उसकी मर्यादा तोड़ेंगे तो उन्हें भी उसी कानून के दायरे में लाया जाएगा। मुख्यमंत्री की इस सख्त नीति का असर पुलिस महकमे में साफ देखा जा रहा है, जहां अधिकारी अब जवाबदेही से बचने की स्थिति में नहीं हैं।

इधर जबलपुर रेंज के आईजी प्रमोद वर्मा ने सिवनी पुलिस अधीक्षक को शो कॉज नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि हवाला प्रकरण में जब्त की गई राशि आखिर किसकी थी, जांच में पारदर्शिता क्यों नहीं रखी गई और वरिष्ठ अधिकारियों को पूर्ण तथ्यात्मक जानकारी क्यों नहीं दी गई। आईजी ने चेतावनी दी है कि यदि एसपी का जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया, तो इस सप्ताह के भीतर ही उच्चस्तरीय कार्रवाई की जाएगी।

इस पूरे मामले की जांच अब जबलपुर क्राइम ब्रांच के एडिशनल एसपी जितेन्द्र सिंह को सौंपी गई है। उनके नेतृत्व में गठित टीम सिवनी कोतवाली में दर्ज हवाला कारोबारी की एफआईआर और अन्य दस्तावेजों की जांच कर रही है। एफआईआर से जुड़ी केस डायरी जबलपुर पहुंच चुकी है और हवाला लेनदेन से संबंधित अन्य साक्ष्य भी जबलपुर भेजे जा रहे हैं।

प्रदेश पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी मान रहे हैं कि यह मामला पुलिस प्रशासन में जवाबदेही और पारदर्शिता की नई मिसाल बनेगा। पहले जहां विभागीय जांचें अक्सर कागजी कार्रवाई तक सीमित रह जाती थीं, वहीं अब मुख्यमंत्री और डीजीपी स्तर पर सीधे हस्तक्षेप से यह स्पष्ट संदेश गया है कि सत्ता किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेगी।

प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में इस समय सबसे बड़ा सवाल यही गूंज रहा है — आखिर हवाला लूटकांड में बरामद हुआ पैसा किसका था, और उसे गायब करने की साजिश में कौन-कौन शामिल था? यह सवाल अब राज्य की पुलिस छवि और विश्वसनीयता के केंद्र में आ गया है।

जनता में इस घटनाक्रम को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। आम लोगों का कहना है कि अगर सरकार ने ईमानदारी से इस मामले को अंजाम तक पहुंचाया, तो यह पुलिस सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कदम साबित होगा। वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव का यह फैसला पुलिस विभाग में नई अनुशासन संस्कृति की शुरुआत कर सकता है।

मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सभी आरोपित पुलिसकर्मियों को फिलहाल पद से हटाने और निलंबन की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी की जा रही है। उधर, जांच टीम ने संबंधित अधिकारियों और गवाहों के बयान दर्ज करना प्रारंभ कर दिया है।

राज्य के पुलिस इतिहास में यह मामला न केवल अनुशासन और पारदर्शिता की परीक्षा है, बल्कि यह भी तय करेगा कि क्या मप्र की पुलिस व्यवस्था भ्रष्टाचार से खुद को मुक्त कर पाने में सफल होगी या नहीं। एक बार फिर जनता का वही सवाल सुर्खियों में है —

“हवाला कांड में बरामद हुआ पैसा आखिर किसका था?”

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