जिला बनाने के वादे पर खामोशी,सिहोरा वासी सोशल मीडिया पर खोल रहे नेताओं की पोल।
सोशल मीडिया पर भाजपा नेताओं की पोस्ट पर तंज कस रहे सिहोरा वासी, जनता ने उठाए सवाल – सिहोरा जिले की मांग पर कब तक रहेगा सन्नाटा?
सिहोरा,ग्रामीण खबर MP:
सिहोरा को जिला बनाए जाने को लेकर वर्ष 2021 से चल रहे आंदोलन ने अब एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। उस समय लोगों को उम्मीद थी कि शिवराज सरकार सिहोरा को जिला बनाने की घोषणा करेगी, लेकिन यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी। चुनाव से पूर्व जनता को सिर्फ आश्वासन का झुनझुना पकड़ा दिया गया और भाजपा ने जाती हुई विधानसभा सीट को अपने पक्ष में कर लिया।
अब जबकि भाजपा विधायक बने लगभग दो वर्ष होने को हैं, सिहोरा जिले के मुद्दे पर स्थानीय नेता, विधायक, सांसद और यहां तक कि मुख्यमंत्री तक की चुप्पी बनी हुई है। इस स्थिति से नाराज सिहोरा वासी अब खुलकर सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी व्यक्त करने लगे हैं। इसका सीधा असर स्थानीय भाजपा नेताओं पर पड़ रहा है, जिन्हें जनता की तीखी टिप्पणियों का सामना करना पड़ रहा है।
जनमानस का कहना है कि स्थानीय नेता केवल अपने व्यवसाय और वाणिज्य तक ही सीमित रह गए हैं, जिसके चलते सिहोरा विकास की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है। कुछ दिनों पूर्व विरोध स्वरूप इन नेताओं के घर के बाहर शंख-घंटा बजाकर प्रदर्शन किया गया था, लेकिन स्थिति आज भी जस की तस है।
सोशल मीडिया पर लगातार ऐसे दृश्य देखने को मिल रहे हैं जहां स्थानीय नेता बड़े नेताओं के साथ फोटो साझा करते हैं और उसके बाद उन पोस्ट पर सैकड़ों की संख्या में सिहोरा वासी तंज भरे कमेंट्स करते हैं। हाल ही में जबलपुर के ओवर ब्रिज उद्घाटन की जानकारी साझा करने पर खितौला रेलवे फाटक के अधूरे ओवर ब्रिज को लेकर नेताओं को घेरा गया। इसी प्रकार सिहोरा रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों के ठहराव को लेकर भी सांसद समर्थक भाजपा नेताओं की आलोचना की गई।
कटनी से लौटते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव जब बहोरीबंद विधायक प्रणय पांडे के निवास पर रुके तो सिहोरा के स्थानीय नेताओं ने उनका जोरदार स्वागत किया और तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं। इन तस्वीरों पर भी जनता ने सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री से सिहोरा को जिला बनाए जाने या अन्य विकास कार्यों को लेकर क्या चर्चा हुई? किंतु किसी भी नेता ने जनता की आवाज का जवाब देना उचित नहीं समझा।
सोशल मीडिया पर हो रही लगातार टिप्पणियों से साफ संकेत मिल रहे हैं कि अब सिहोरा वासी चुप बैठने वाले नहीं हैं। जनता ने राजनेताओं की हर गतिविधि पर नजर रखना शुरू कर दिया है और क्षेत्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की मांग को लेकर मुखर हो गई है। अब देखना यह होगा कि स्थानीय नेता, विधायक और सांसद जनता के इस दबाव को कब गंभीरता से लेते हैं और अपने कार्य व्यवहार में कितना परिवर्तन लाते हैं।
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