एमपी में 1100 से ज्यादा तहसीलदार-नायब तहसीलदार पर सरकारी कार्रवाई की तलवार।

 एमपी में 1100 से ज्यादा तहसीलदार-नायब तहसीलदार पर सरकारी कार्रवाई की तलवार।

कार्य में लापरवाही और विरोध के चलते नोटिस, वेतन कटौती तक की कार्रवाई; 90 हजार से अधिक प्रकरण हुए लंबित, हड़ताल खत्म कर अफसर लौटे काम पर।

भोपाल,ग्रामीण खबर MP:

मध्यप्रदेश मैं प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर इन दिनों बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। प्रदेश के 1100 से अधिक तहसीलदार और नायब तहसीलदार सरकारी कार्रवाई की जद में आ गए। वजह बनी उनकी हड़ताल और कार्यों में लापरवाही। 6 अगस्त से इन अधिकारियों ने राजस्व कार्यों—जैसे नामांतरण, बंटवारा, सीमांकन, विवाद समाधान आदि—को पूरी तरह रोक दिया था। परिणामस्वरूप हजारों ग्रामीण और शहरी नागरिकों को छोटे-छोटे कामों के लिए भी भटकना पड़ा। आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में करीब 90 हजार से अधिक प्रकरण लंबित हो गए, जिनमें से केवल भोपाल में ही दो हजार से ज्यादा मामले फंस गए।

अधिकारियों का कहना था कि वे न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्यों के विभाजन से असंतुष्ट हैं, क्योंकि इससे उनके अधिकार और जिम्मेदारियों में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है। वहीं सरकार का तर्क था कि जनता के काम में किसी भी प्रकार की बाधा स्वीकार्य नहीं होगी। इसी बीच इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने कड़ा रुख अपनाते हुए हड़ताल पर बैठे 42 तहसीलदार और नायब तहसीलदारों का एक दिन का वेतन काटने का आदेश जारी कर दिया। राज्य सरकार ने भी सभी जिलों के अधिकारियों को नोटिस थमाने और कठोर कार्रवाई करने के संकेत दे दिए थे।

लगातार चेतावनियों, वेतन कटौती और जनता की बढ़ती नाराजगी ने अंततः अधिकारियों को झुकने पर मजबूर कर दिया। 18 अगस्त की देर रात प्रदेश स्तर पर बैठक के बाद तहसीलदार और नायब तहसीलदार संघ ने हड़ताल समाप्त करने की घोषणा की। 19 अगस्त की सुबह से सभी अधिकारी अपने-अपने कार्यालयों में लौट आए और रुके हुए प्रकरणों पर सुनवाई तथा निपटारा शुरू कर दिया।

राज्य शासन ने इस पूरे घटनाक्रम को बेहद गंभीर माना है। सरकार का कहना है कि भविष्य में यदि कोई अधिकारी अपने कर्तव्यों से विमुख होता है और जनता के कामकाज को रोकता है तो उसके विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। प्रशासनिक सख्ती के इस संदेश से अब राजस्व विभाग में अनुशासन और जवाबदेही सुनिश्चित करने की कवायद तेज हो गई है।

जनता की उम्मीदें अब सरकार और अधिकारियों दोनों से जुड़ गई हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के हजारों लोग चाहते हैं कि उनके अटके हुए नामांतरण, सीमांकन और बंटवारे जैसे कार्य समय पर पूरे हों। किसान वर्ग को विशेष तौर पर इस विरोध से सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा है क्योंकि भूमि संबंधी विवाद और आवश्यक दस्तावेजों के अभाव में उनकी कई योजनाओं पर असर पड़ा।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना सरकार और प्रशासन दोनों के लिए सबक है। एक ओर अधिकारियों को समझना होगा कि वे जनता के सेवक हैं और उनकी जिम्मेदारी सबसे पहले जनसुविधा है, दूसरी ओर सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि अधिकारियों की वास्तविक समस्याओं और कार्यभार का समाधान हो। तभी भविष्य में ऐसे टकराव से बचा जा सकेगा।

फिलहाल हड़ताल समाप्त होने के बाद आम लोगों में राहत की लहर है। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में लंबित प्रकरणों का तेजी से निपटारा किया जाएगा और जनता को फिर से सामान्य सेवाएं मिलनी शुरू हो जाएंगी।

ग्रामीण खबर MP-

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