विद्यार्थियों को जीरो बजट फार्मिंग का विशेष प्रशिक्षण,कम लागत तकनीकी से अधिक उत्पादन और जैविक खेती के महत्व पर दिया गया जोर।

 विद्यार्थियों को जीरो बजट फार्मिंग का विशेष प्रशिक्षण,कम लागत तकनीकी से अधिक उत्पादन और जैविक खेती के महत्व पर दिया गया जोर।

भारतीय परंपरागत कृषि पद्धतियों को आधुनिक विज्ञान से जोड़ने का प्रयास, विद्यार्थियों ने सीखे गोबर-गोमूत्र आधारित खाद और जैविक कीटनाशक बनाने के तरीके।

कटनी,ग्रामीण खबर MP:

शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पहाड़ी निवार में विद्यार्थियों को जीरो बजट फार्मिंग की कम लागत तकनीकी से अधिक उत्पादन का विशेष प्रशिक्षण दिया गया। यह प्रशिक्षण विद्यालय के प्राचार्य आलोक पाठक के मार्गदर्शन में जैविक कृषि विशेषज्ञ रामसुख दुबे द्वारा प्रदान किया गया। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य विद्यार्थियों को रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से अवगत कराना और उन्हें जैविक पद्धति पर आधारित खेती की ओर प्रेरित करना रहा।

प्रशिक्षण के दौरान बताया गया कि जैविक खेती कोई नई पद्धति नहीं है, बल्कि यह भारत की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं पर आधारित है। प्राचीन काल से ही भारतीय किसान गोबर, गोमूत्र और फसल अवशेषों का उपयोग करके भूमि की उर्वरता को बनाए रखते थे। आधुनिक काल में वैज्ञानिक शोधों के साथ इन पद्धतियों को और अधिक प्रभावी बनाया गया है। आज जब रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से भोजन, जल, वायु और मृदा में विषैले तत्व प्रवेश कर चुके हैं, तब जैविक खेती ही एकमात्र समाधान है।

जैविक कृषि विशेषज्ञ रामसुख दुबे ने विद्यार्थियों को समझाया कि कीटनाशकों और रासायनिक खादों के अनियंत्रित प्रयोग से न केवल मृदा की उर्वरता कम होती है, बल्कि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण भी प्रभावित होता है। कीटों की पुनः उत्पत्ति, महामारियों का खतरा, मित्र कीटों की हानि और पर्यावरण प्रदूषण जैसी गंभीर समस्याएं इसी कारण सामने आ रही हैं।

प्रशिक्षण में विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार की जैविक खाद बनाने की विधियां बताई गईं। इनमें गोबर खाद, कंपोस्ट, नाडेप टांका खाद, हरी खाद, फसल अवशेष प्रबंधन, केंचुआ खाद और कार्बनिक खाद शामिल रहे। साथ ही जैविक कीटनाशकों के निर्माण और उनके प्रयोग की जानकारी भी दी गई। उन्होंने कहा कि गोबर और गोमूत्र का उचित उपयोग करके किसान बिना किसी अतिरिक्त लागत के अपनी फसलों की रक्षा कर सकते हैं।

विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि जैविक खेती में फसल चक्र, मिश्रित खेती, बहु फसलीय प्रणाली और अंतरवर्तीय कृषि का प्रयोग करने से भूमि की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है। इसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट, सुपाच्य और गुणकारी होते हैं। विद्यार्थियों को यह भी बताया गया कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, भूमि का विवेकपूर्ण उपयोग और पर्यावरणीय मित्रवत प्रौद्योगिकियों का प्रयोग भविष्य की टिकाऊ कृषि के लिए आवश्यक है।

प्रशिक्षण सत्र के दौरान विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और व्यावहारिक तौर पर जैविक खाद और कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया को देखा। उन्हें यह समझाया गया कि कैसे किसान कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और किस तरह विषमुक्त व स्वास्थ्यवर्धक खाद्य सामग्री का उत्पादन कर समाज की सेवा कर सकते हैं।

इस अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य आलोक पाठक ने भी विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आने वाला समय जैविक खेती का है। यदि विद्यार्थी अभी से ऐसी तकनीकियों को समझेंगे और उन्हें व्यवहारिक रूप से अपनाएंगे तो भविष्य में कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव संभव है।

प्रशिक्षण को सफल बनाने में नरेंद्र कुमार कुशवाहा और सावन ठाकरे का विशेष सहयोग रहा। कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों ने जैविक खेती की तकनीक को अपनाने का संकल्प लिया और प्रशिक्षकों के प्रति आभार प्रकट किया।

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