करौंदी गांव,भारत का भौगोलिक केंद्र होने का गौरव, लेकिन उपेक्षा की मार से पहचान खोने की कगार पर।
1956 में जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के प्राचार्य एस.पी. चक्रवर्ती और छात्रों ने खोजा था केंद्र बिंदु, 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कराया स्मारक निर्माण, 2013 में पर्यटन मेगा सर्किट में शामिल होने के बाद भी नहीं मिला अपेक्षित विकास।
उमरिया पान,ग्रामीण खबर MP:
मध्यप्रदेश के कटनी जिले की ढीमरखेड़ा तहसील का मनोहर ग्राम करौंदी भले ही आज एक साधारण गांव के रूप में नजर आता हो, लेकिन वास्तव में यह पूरे देश की भौगोलिक धुरी है। यह वही स्थान है जिसे देश का भौगोलिक केंद्र बिंदु कहा जाता है। इस गौरवमयी पहचान की नींव वर्ष 1956 में पड़ी थी, जब जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के प्राचार्य एस.पी. चक्रवर्ती और उनके छात्रों ने वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर करौंदी गांव को भारत का केंद्र बिंदु घोषित किया।
इस खोज के बाद करौंदी अचानक राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना। वर्ष 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर जबलपुर पहुंचे और करौंदी का दौरा किया। यहां उन्होंने स्मारक निर्माण की घोषणा की और उसी वर्ष 15 दिसंबर को भारत के भौगोलिक केंद्र स्मारक का लोकार्पण भी हुआ। समुद्र तल से 389.31 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह स्मारक उस समय राष्ट्रीय गौरव और शोध का प्रतीक माना गया।
करौंदी ग्राम की खासियत यही नहीं है कि यह भारत का केंद्र बिंदु है, बल्कि इस स्थान से होकर कर्क रेखा भी गुजरती है। यही कारण है कि इसे भारत का "दिल" कहा जाने लगा। महज दो से तीन सौ की आबादी वाला यह छोटा सा गांव पूरे देश की भौगोलिक अस्मिता को अपने भीतर संजोए हुए है।
वर्ष 1995 में करौंदी के महत्व को देखते हुए महर्षि महेश योगी ने यहां विश्वस्तरीय महर्षि विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने वर्ष 2002 में यहां 124 मंजिला विश्व स्तरीय इमारत खड़ी करने का सपना भी देखा और आधारशिला रखी, किंतु रक्षा मंत्रालय की अनुमति न मिलने और भूकंप संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण यह योजना अधर में लटक गई।
सरकार ने वर्ष 2013 में करौंदी को पर्यटन मेगा सर्किट में शामिल किया। उम्मीद थी कि इस योजना से यहां व्यापक स्तर पर विकास कार्य होंगे और यह स्थल राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन का केंद्र बनेगा। लेकिन आज तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी। न स्मारक का जीर्णोद्धार हुआ, न ही पर्यटकों के लिए आवश्यक सुविधाएं विकसित हो सकीं।
आज हालत यह है कि भौगोलिक केंद्र का यह गौरवशाली स्थल उपेक्षा और लापरवाही के साये में अपनी पहचान खोने लगा है। स्मारक जर्जर हो रहा है और आसपास का क्षेत्र भी बदहाल स्थिति में है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि सरकार और प्रशासन गंभीर प्रयास करें, तो करौंदी को न केवल पर्यटन स्थल के रूप में बल्कि शोध और अध्ययन के अंतरराष्ट्रीय केंद्र के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि करौंदी के भौगोलिक महत्व को देखते हुए यहां भूगोल, खगोल और पर्यावरण अध्ययन का बड़ा संस्थान स्थापित किया जा सकता है। साथ ही यहां मूलभूत सुविधाएं विकसित कर इसे मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के गौरव का प्रतीक बनाया जा सकता है।
करौंदी ग्राम आज भी पूरे भारत की भौगोलिक धुरी है। जरूरत है तो केवल उसे उसकी खोई हुई पहचान और सम्मान लौटाने की।
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