दोनों नगर परिषदों में निर्विरोध विजय,भाजपा की एकजुटता और नेतृत्व पर जनता की मुहर।

 दोनों नगर परिषदों में निर्विरोध विजय,भाजपा की एकजुटता और नेतृत्व पर जनता की मुहर।

विधायक संजय पाठक के वादे पर मुहर, कांग्रेस मैदान में नहीं उतार सकी प्रत्याशी, संजय पाठक ने मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष को समर्पित की जीत।

विजयराघवगढ़ (ग्रामीण खबर MP)

विजयराघवगढ़ विधानसभा क्षेत्र ने आज एक बार फिर इतिहास रच दिया। ढाई वर्षों के अंतराल के बाद आयोजित नगर परिषद अध्यक्ष पद के चुनाव में विजयराघवगढ़ एवं कैमोर – दोनों नगर परिषदों में निर्विरोध निर्वाचन हुआ। भारतीय जनता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी राजेश्वरी दुबे (विजयराघवगढ़) और पलक ग्रोवर (कैमोर) को निर्विरोध रूप से अध्यक्ष चुना गया। यह राजनीतिक परिपक्वता, संगठनात्मक रणनीति और लोकप्रिय नेतृत्व का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

आज सुबह दोनों नगर परिषद सभागारों में निर्वाचन प्रक्रिया प्रारंभ हुई। निर्धारित समय सीमा में केवल एक-एक नामांकन पत्र भाजपा प्रत्याशियों के ही जमा हुए। कैमोर में संयुक्त कलेक्टर महेश मंडलोई तथा विजयराघवगढ़ में संस्कृति शर्मा ने निर्वाचन प्रक्रिया का संचालन किया। नामांकन पत्रों की गहन जांच के उपरांत उन्हें वैध पाया गया और दोनों प्रत्याशियों को निर्विरोध निर्वाचित घोषित करते हुए प्रमाणपत्र प्रदान किए गए। इस अवसर पर विधायक संजय पाठक, भाजपा जिलाध्यक्ष दीपक सोनी टंडन, मंडल अध्यक्ष, चुनाव प्रभारी व कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

इस ऐतिहासिक अवसर पर विधायक संजय पाठक ने अपने उद्बोधन में इस सफलता को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, क्षेत्रीय सांसद वीडी शर्मा और भाजपा के संगठन को समर्पित करते हुए कहा कि यह जीत समर्पण, संगठन और सेवा की जीत है। उन्होंने कहा कि पर्सदों ने भाजपा पर दोबारा भरोसा जताया है, और यह भाजपा नेतृत्व की विश्वसनीयता का प्रमाण है। संजय पाठक ने कहा कि उन्होंने पहले ही वादा किया था कि क्षेत्र की जनता को योग्य नेतृत्व मिलेगा, और आज उनका वह वादा पूर्ण हुआ है।

उन्होंने निर्वाचित पार्षदों, पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं, मंडल अध्यक्षों तथा हर उस व्यक्ति का धन्यवाद ज्ञापित किया जिन्होंने इस सफलता में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दिया। उन्होंने विशेष रूप से पार्षदों की एकजुटता की सराहना की और कहा कि इसी संगठनात्मक एकता के चलते भाजपा ने एक और ऐतिहासिक जीत दर्ज की है।

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी की स्थिति एक बार फिर हास्यास्पद एवं चिंताजनक रही। दोनों नगर परिषदों में कांग्रेस पार्टी एक भी प्रत्याशी खड़ा करने में असफल रही। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है – ढाई साल पूर्व जब जिला पंचायत, जनपद पंचायत एवं नगर परिषदों के चुनाव हुए थे, तब भी कांग्रेस प्रत्याशी नहीं उतार पाई थी। गली मोहल्लों से लेकर सोशल मीडिया तक कांग्रेस की इस राजनीतिक असमर्थता और संगठनात्मक कमजोरी पर तीव्र चर्चा हो रही है। यह परिदृश्य कांग्रेस की जमीनी हकीकत को उजागर करता है और यह दर्शाता है कि पार्टी नेतृत्व एवं जनसम्पर्क के स्तर पर पूरी तरह से विफल हो चुकी है।

कैमोर एवं विजयराघवगढ़ में निर्विरोध निर्वाचन की यह घटना भाजपा के लिए केवल एक चुनावी जीत नहीं बल्कि एक रणनीतिक विजय है जो आने वाले समय के लिए संगठन को और मजबूत करेगी। इससे क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं का मनोबल भी उच्च स्तर पर पहुंचा है।

निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान क्षेत्रीय भाजपा नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। प्रमुख रूप से उपस्थित नेताओं में भजपा जिलाध्यक्ष दीपक सोनी टंडन, सतीश तिवारी, निगमाध्यक्ष मनीष पाठक, उदयराज सिंह चौहान, सुरेश सोनी, आशीष गुप्ता, मनीष देव मिश्रा, अजय शर्मा, रंगलाल पटेल, पीयूष अग्रवाल, अरविंद बड़गैया, हरिओम बर्मन, संतोष केवट, गुरदीप बेदी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन सभी ने एकजुट होकर इस राजनीतिक उपलब्धि को संभव बनाया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा द्वारा इस तरह का निर्विरोध निर्वाचन प्राप्त करना, केवल राजनीतिक समीकरणों का परिणाम नहीं बल्कि पार्सदों के विश्वास और संगठन की धरातली मजबूती का परिणाम है। इस घटना से यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा न केवल क्षेत्र में संगठनात्मक दृष्टि से सशक्त है, बल्कि जनता के बीच उसकी स्वीकार्यता भी निरंतर बढ़ रही है।

जनता के बीच यह चर्चा भी तेज है कि जिस प्रकार विधायक संजय पाठक ने लगातार जनसेवा, विकास और संगठनात्मक मजबूती को प्राथमिकता दी, उसका असर आज के चुनावी परिणाम में साफ दिखाई देता है। उनकी कार्यशैली, समर्पण और नेतृत्व में जनता का विश्वास लगातार प्रगाढ़ होता जा रहा है।

यह निर्विरोध निर्वाचन केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं बल्कि विजयराघवगढ़ विधानसभा के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करने वाला मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे संपूर्ण क्षेत्र में भाजपा का राजनीतिक वर्चस्व और सुदृढ़ होगा, साथ ही अन्य दलों के लिए यह एक चेतावनी भी है कि यदि संगठनात्मक मजबूती, नेतृत्व की स्पष्टता और जनता से संवाद में वे पिछड़ते हैं, तो चुनावी राजनीति में उनकी प्रासंगिकता समाप्त होती जाएगी।

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