कटनी में खनन माफियाओं का तांडव,मजदूरों का शोषण और अवैध ब्लास्टिंग से क्षेत्र की दुर्दशा।

 कटनी में खनन माफियाओं का तांडव,मजदूरों का शोषण और अवैध ब्लास्टिंग से क्षेत्र की दुर्दशा।

विजयराघवगढ़ क्षेत्र में पंजीयन रहित मजदूरों से काम,सुरक्षा के नाम पर शून्य व्यवस्था,कैमूर पहाड़ी की ऐतिहासिक धरोहर और वन्य जीवों पर संकट, विभागों की लापरवाही से कंपनियों के हौसले बुलंद।

कटनी,ग्रामीण खबर MP।

कटनी जिले के खनन क्षेत्रों में अवैध गतिविधियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। जिले का विजयराघवगढ़ क्षेत्र इस समय खनन माफियाओं के आतंक से कराह रहा है। यहां की खदानों में मजदूरों का शोषण खुलेआम किया जा रहा है, जबकि प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। बिस्तरा और आसपास की खदानों में बिना किसी पंजीयन, सुरक्षा उपकरण या बीमा सुविधा के मजदूरों से दिन-रात काम करवाया जा रहा है। ये मजदूर बेहद कठिन परिस्थितियों में, धूल, पत्थर और धमाकों के बीच अपनी जान जोखिम में डालकर रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं।

इन मजदूरों के पास न पहचान कार्ड है, न किसी प्रकार की स्वास्थ्य सुरक्षा। जब कभी खदानों में हादसा होता है, तो कंपनियां उन्हें काम से निकाल देती हैं और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं। कई बार ऐसे मामलों में घायल मजदूरों को इलाज तक के पैसे नहीं दिए जाते। यह पूरा खेल ऐसे चलता है, मानो कानून नाम की कोई चीज़ यहां मौजूद ही नहीं।

खनन कंपनियां नियमों को ताक पर रखकर खुलेआम अवैध ब्लास्टिंग कर रही हैं। इन ब्लास्टिंगों का असर इतना भयंकर है कि आसपास के गांवों के घरों में दरारें आ गई हैं। लोगों ने कई बार जिला प्रशासन और खनिज विभाग से शिकायत की, लेकिन हर बार केवल जांच का आश्वासन मिला। वास्तविक कार्रवाई आज तक नहीं हुई। नतीजा यह है कि कंपनियों के हौसले और भी बुलंद हो गए हैं।

मजदूरों की हालत बेहद चिंताजनक।

खनन क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी हर दिन एक जंग की तरह होती है। कई मजदूर बिना जूते, दस्ताने या मास्क के खदानों में काम करते हैं। उन्हें न तो पीने के पानी की सुविधा दी जाती है, न शौचालय की। मजदूरों की मजदूरी भी समय पर नहीं दी जाती। कई बार महीनों तक वे बकाया वेतन के लिए ठेकेदारों के चक्कर लगाते रहते हैं।

इन परिस्थितियों के कारण मजदूरों के परिवार आर्थिक संकट में फंस गए हैं। गरीबी और बीमारी का दोहरा बोझ उन पर पड़ा है। क्षेत्र में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी के कारण मजदूरों को छोटे-छोटे संक्रमणों से लेकर गंभीर बीमारियों तक का इलाज नहीं मिल पाता। कई सामाजिक संगठनों ने इन मुद्दों को उठाया है, लेकिन कंपनियों और प्रशासन की मिलीभगत के कारण कोई ठोस परिणाम नहीं निकल सका है।

कैमूर की ऐतिहासिक धरोहर पर संकट।

कटनी जिले की पहचान रही कैमूर की ऐतिहासिक पहाड़ी आज अपनी प्राकृतिक गरिमा खोने की कगार पर है। यह पहाड़ी वह क्षेत्र है, जहाँ कभी घने जंगल, झरने और अनेक वन्य जीव पाए जाते थे। मगर अवैध खनन और लगातार हो रही ब्लास्टिंग के कारण अब न तो जंगल वैसे रहे और न ही जीव-जंतु। आसपास के ग्रामीणों का कहना है कि पहाड़ी के नीचे के हिस्सों में की जा रही लगातार ब्लास्टिंग से जमीन दरकने लगी है और कई बार कंपनियों के ट्रक वन क्षेत्र में घुसकर पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

वन्य जीव जैसे नीलगाय, लोमड़ी, सियार और मोर अब इस क्षेत्र से पलायन कर चुके हैं। पहाड़ी की चट्टानों में जगह-जगह दरारें देखी जा सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह सिलसिला नहीं रुका, तो आने वाले वर्षों में कैमूर का पारिस्थितिक संतुलन पूरी तरह बिगड़ जाएगा और यह इलाका भूकंपीय दृष्टि से भी असुरक्षित बन सकता है।

जिम्मेदार विभागों की चुप्पी सवालों के घेरे में।

खनन और वन विभाग की लापरवाही ने पूरे तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब अवैध खनन इतनी बड़ी मात्रा में हो रहा है, तो आखिर निरीक्षण दल क्या कर रहा है? क्या यह सब बिना संरक्षण के संभव है? स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह अवैध कारोबार संभव नहीं है। यही वजह है कि वर्षों से यह गैरकानूनी काम बिना किसी डर के जारी है।

कटनी जिले में अवैध खनन का यह नेटवर्क इतना मजबूत है कि कोई भी मजदूर या ग्रामीण खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। विरोध करने वालों को नौकरी से निकाल दिया जाता है या धमकाया जाता है। यह भय का माहौल प्रशासन की निष्क्रियता का परिणाम है।

प्रशासन और शासन से उम्मीदें।

अब समय आ गया है कि शासन और प्रशासन इस गंभीर समस्या की अनदेखी बंद करे। खनन कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई आवश्यक है। मजदूरों का पंजीयन अनिवार्य किया जाए और उन्हें सुरक्षा उपकरण, बीमा, एवं स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।

इसके साथ ही कैमूर क्षेत्र में हो रही अवैध ब्लास्टिंग पर तत्काल रोक लगाई जाए। पर्यावरण विभाग और वन विभाग को संयुक्त रूप से सर्वे कर क्षेत्र में हुए नुकसान का आकलन करना चाहिए और जिन अधिकारियों की लापरवाही सामने आए, उन्हें तत्काल निलंबित किया जाना चाहिए।

सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों का यह भी कहना है कि अगर इस दिशा में अब कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में यह केवल मजदूरों की समस्या नहीं रहेगी, बल्कि कटनी जिले के पर्यावरण, पर्यटन और सामाजिक संरचना पर गहरा संकट बन जाएगी।

निष्कर्ष।

कटनी में खनन माफियाओं का यह तांडव केवल आर्थिक या सामाजिक शोषण की कहानी नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था की संवेदनहीनता का प्रतीक भी बन चुका है। मजदूर, वन्य जीव, पहाड़, पर्यावरण — सब कुछ खनन के लालच में बलि चढ़ रहे हैं। यदि शासन ने अब भी कठोर रुख नहीं अपनाया, तो यह समस्या एक स्थानीय मुद्दा न रहकर पूरे प्रदेश की चिंता का विषय बन जाएगी।

कटनी की धरती अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए पुकार रही है — अब जरूरत है कि उसकी यह पुकार सत्ता के कानों तक पहुँचे और न्याय के रूप में कोई ठोस जवाब मिले।

ग्रामीण खबर MP-

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