एफएमडी बीमारी का बढ़ता कहर,खुरपका-मुंहपका संक्रमण से बेहाल चौपाया,धीमी टीकाकरण रफ्तार से टूट रही पशुपालकों की कमर।

 एफएमडी बीमारी का बढ़ता कहर,खुरपका-मुंहपका संक्रमण से बेहाल चौपाया,धीमी टीकाकरण रफ्तार से टूट रही पशुपालकों की कमर।

सिहोरा तहसील के गांव-गांव में फैल रही महामारी,दूध उत्पादन में भारी गिरावट,कई मवेशियों की मौत,पशुपालन विभाग की लापरवाही से आक्रोशित ग्रामीण।

गोसलपुर,ग्रामीण खबर MP।

जबलपुर जिले की सिहोरा तहसील के अंतर्गत संचालित 14 वेटरनरी संस्थानों के तहत आने वाले गांवों में इस समय चौपाया जानवरों में खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) बीमारी का प्रकोप तेजी से फैल रहा है। गांव-गांव में बीमार पड़े मवेशियों को देखकर पशुपालकों में भय और चिंता का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि इस बार पशुपालन विभाग ने समय पर टीकाकरण नहीं कराया, जिससे संक्रमण ने विकराल रूप धारण कर लिया है।

पशुपालकों ने बताया कि एफएमडी एक अत्यंत संक्रामक वायरल रोग है, जो गाय, भैंस, बकरी, सूअर, भेड़ और हिरन जैसे दो खुर वाले जानवरों को प्रभावित करता है। इस बीमारी में जानवरों के मुंह, जीभ, मसूड़ों, थनों और पैरों पर छाले बन जाते हैं, जिससे वे खाना-पीना छोड़ देते हैं। मुंह से लगातार लार बहती रहती है और जानवरों को चलने-फिरने में भी अत्यधिक दर्द होता है। परिणामस्वरूप दूध उत्पादन में भारी गिरावट आती है और कई बार स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि जानवरों की मौत तक हो जाती है।

जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार के राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत इस बीमारी से बचाव के लिए हर साल मई और अक्टूबर में टीकाकरण किया जाना अनिवार्य है। लेकिन इस वर्ष सिहोरा ब्लॉक की सभी 14 वेटरनरी संस्थाओं में वैक्सीन लगभग एक सप्ताह की देरी से पहुंची। इस लापरवाही के कारण बीमारी ने कई गांवों में तेजी से पैर पसार लिए। चिकित्सकों का कहना है कि संक्रमित पशुओं को टीका लगाना और भी खतरनाक हो सकता है, इसलिए रोकथाम में लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए।

स्थानीय पशुपालक राकेश सिंह ठाकुर, रजनीश दुबे, विकास यादव और बृजेश यादव ने बताया कि यह बीमारी काबू में लाने के लिए उन्हें बहुत महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं। कस्बों में ये दवाइयां आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं, जिससे उन्हें कई किलोमीटर दूर जाकर दवा लानी पड़ती है। मवेशियों के बीमार पड़ने और दूध उत्पादन में कमी से उनकी आर्थिक स्थिति पर भारी असर पड़ा है। कई गांवों में युवा मवेशियों की मृत्यु दर बढ़ने और गर्भपात जैसी घटनाओं की भी जानकारी मिली है।

ग्रामीणों का कहना है कि अगर पशुपालन विभाग समय पर टीकाकरण करता, तो इतनी बड़ी संख्या में पशु बीमार नहीं पड़ते। अब कई पशुपालक देसी नुस्खों और घरेलू उपचारों का सहारा ले रहे हैं, लेकिन बीमारी से उबरने में दो सप्ताह तक का समय लग रहा है। पशु ठीक होने के बाद भी दूध उत्पादन पहले जैसा नहीं रह जाता, जिससे पशुपालकों की आय में भारी गिरावट आई है।

जहां एक ओर मध्यप्रदेश सरकार पशुपालन को प्रोत्साहन देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर पर पशुपालकों की समस्याएं अनदेखी की जा रही हैं। अधिकांश वेटरनरी संस्थानों में साधारण दवाइयों से लेकर गंभीर बीमारियों की दवाइयों का स्टॉक खत्म पड़ा है। पशुपालक मजबूर होकर निजी दवा दुकानों से महंगे दामों पर दवाइयां खरीद रहे हैं।

अभी हाल ही में क्षेत्र में लंपी बीमारी का भी असर देखा गया था, जिससे मवेशियों की बड़ी संख्या प्रभावित हुई थी। अब एफएमडी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले पशुधन को गहरी चोट पहुंचाई है।

इस संबंध में पशुपालकों ने जिला प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है ताकि समय पर टीकाकरण, दवाइयों की आपूर्ति और उपचार व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके। उनका कहना है कि अगर जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में पशुधन हानि और भी बढ़ सकती है।

इस विषय पर विकासखंड पशु चिकित्सा अधिकारी सिहोरा डॉ. संजय शर्मा ने बताया —

“एफएमडी बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण का कार्य ब्लॉक में तेजी से चल रहा है। फिलहाल कितने प्रतिशत टीकाकरण हुआ है, इसकी जानकारी लेकर बताया जाएगा। संस्थानों में आवश्यक दवाइयां उपलब्ध हैं, जिन पशुपालकों को दवा न मिले, वे सीधे मुझसे संपर्क कर सकते हैं।”

ग्रामीण खबर MP-

जनमानस की निष्पक्ष आवाज

प्रधान संपादक:अज्जू सोनी |संपर्क:9977110734

Post a Comment

Previous Post Next Post