तहसील पनागर में संयुक्त किसान मोर्चा का ऐतिहासिक किसान महाआंदोलन।
कृषि कानूनों और किसानों की बुनियादी समस्याओं को लेकर गरजा पनागर,हजारों किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकालकर सौंपा ज्ञापन।
पनागर,ग्रामीण खबर MP।
तहसील पनागर का आज का दिन किसान आंदोलन के इतिहास में एक मील का पत्थर बन गया। जब अखिल भारतीय ओबीसी महासभा और ओबीसी एससी एसटी संयुक्त मोर्चा के बैनर तले हजारों किसानों ने एक स्वर में अपनी समस्याओं को लेकर सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। किसानों की आवाज आज पूरे क्षेत्र में गूंज उठी, जब बस स्टैंड पनागर में तीन दिवसीय धरना प्रदर्शन का समापन हुआ।
इस विशाल आंदोलन का नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट इंद्रकुमार पटेल, समाजसेवी डॉ. सतेन्द्र यादव, और ओबीसी जिलाध्यक्ष जितेन्द्र कुमार कुर्मी ने किया। तीन दिनों तक लगातार धरना, जनसभा, और जनसंपर्क कार्यक्रम चलाए गए, जिनमें किसानों की बड़ी संख्या में भागीदारी रही। आंदोलन के अंतिम दिन यानी 29 अक्टूबर को किसानों ने मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री के नाम से अनुविभागीय अधिकारी पनागर को ज्ञापन सौंपा।
ज्ञापन में किसानों ने कृषि व्यवस्था से जुड़ी कई महत्वपूर्ण और जमीनी मांगें रखीं —
1.धान की पराली जलाने पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाया जाए, क्योंकि वर्तमान स्थिति में किसानों के पास इसका कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है।
2.कृषि पंपों में बढ़ाए गए हार्सपावर लोड को तुरंत सुधारा जाए, ताकि किसानों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ न पड़े।
3.भूमि अधिग्रहण बिल को रद्द किया जाए, जिससे किसानों की जमीनों पर अनावश्यक कब्जा न हो सके।
4.अनाज की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप से लागू किया जाए, ताकि किसानों को उचित दाम की गारंटी मिल सके।
5.खाद, बीज और बिजली की पर्याप्त व समय पर आपूर्ति की जाए, जिससे फसलों की बुवाई और उत्पादन में कोई बाधा न आए।
6.कृषि अनुदान और सब्सिडी ट्रांसफार्मर योजना को पुनः चालू किया जाए, जिससे किसानों को आर्थिक राहत मिल सके।
7.नहरों की मरम्मत कर उन पर सड़क निर्माण कराया जाए, जिससे खेतों तक सिंचाई और आवागमन दोनों में सुविधा हो।
8.कृषि राजस्व से जुड़े कार्यों को सरल बनाया जाए, ताकि किसानों को अनावश्यक सरकारी दफ्तरों के चक्कर न लगाने पड़ें।
इन मांगों को लेकर जब हजारों की संख्या में किसान अपने-अपने ट्रैक्टर लेकर पनागर की सड़कों पर उतरे, तो पूरा क्षेत्र "किसान एकता ज़िंदाबाद" और "हमारा हक हमें दो" जैसे नारों से गूंज उठा। आंदोलन स्थल पर किसानों का जनसैलाब उमड़ पड़ा, जिसमें हर वर्ग, हर उम्र के किसान भाई शामिल थे।
धरने के दौरान प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट इंद्रकुमार पटेल ने कहा कि सरकार को अब किसानों की आवाज को सुनना ही होगा। उन्होंने कहा कि धान, गेहूं, सोयाबीन जैसे मुख्य फसलों के दाम लगातार गिर रहे हैं, वहीं खेती की लागत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर एमएसपी को कानूनी रूप नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में किसान खेती से पूरी तरह टूट जाएगा।
समाजसेवी डॉ. सतेन्द्र यादव ने अपने संबोधन में कहा कि यह आंदोलन केवल किसानों के अधिकारों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत की आत्मा को बचाने का संघर्ष है। उन्होंने कहा कि जब तक किसान मजबूत नहीं होगा, तब तक देश की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं हो सकती।
जिलाध्यक्ष जितेन्द्र कुमार कुर्मी ने कहा कि पनागर की यह भूमि हमेशा से संघर्ष और एकता की प्रतीक रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने किसानों की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया, तो आंदोलन को राज्यव्यापी स्वरूप दिया जाएगा।
धरना स्थल पर किसानों ने संकल्प लिया कि जब तक उनकी मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं होती, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा। इस अवसर पर ग्रामीण अंचल से हजारों किसानों ने भागीदारी की। उनके जोश और उत्साह से पूरा पनागर क्षेत्र आंदोलन के नारों से गूंजता रहा।
इस ऐतिहासिक महाआंदोलन में क्षेत्र के प्रमुख किसान प्रतिनिधियों में नोकेलाल प्रजापति, दीपक यादव, राजेश यादव, दिलीप काछी, विनोद पटेल, प्रदीप पटेल, संतकुमार पटेल, ललित पटेल, प्रमोद पटेल, मिथुन पटेल, नीरज पटेल, उमेश पटेल, अनिल पटेल, मुकेश पटेल, लखन पटेल, कन्हैयालाल जाटव, दीपक पटेल, अनूप पटेल, गणेश पटेल, रंजीत पटेल, सौरभ पटेल, हरिओम पटेल, अजीत पटेल, अनुज पटेल, सुनील विश्वकर्मा, प्रदोष पटेल, रोहित पटेल, श्याम साहु, राजकुमार पटेल, अमित विश्वकर्मा, मदन पटेल, बीरेंद्र पटेल, संदीप कप्तान, गोकुल, राजेश पटेल सहित बड़ी संख्या में किसान उपस्थित रहे।
धरना स्थल पर वातावरण पूरी तरह जनआंदोलन के रंग में रंगा नजर आया। किसान नेता मंच से लगातार किसानों को जागरूक करते रहे और आने वाले समय में इस आंदोलन को जिला और राज्य स्तर तक ले जाने की रणनीति पर भी चर्चा की गई।
कार्यक्रम के अंत में सभी किसानों ने एकजुट होकर शपथ ली कि चाहे संघर्ष कितना भी लंबा क्यों न हो, वे अपने हक की लड़ाई जारी रखेंगे। पनागर में हुआ यह ऐतिहासिक महाआंदोलन अब किसानों के नए अध्याय की शुरुआत बन गया है, जिसने सरकार को किसानों की वास्तविक समस्याओं पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है।
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