तालाबों में बह रही गंदगी,जनप्रतिनिधि भी लाचार,बरही नगर परिषद के अफसरों की दबंगई चरम पर।

 तालाबों में बह रही गंदगी,जनप्रतिनिधि भी लाचार,बरही नगर परिषद के अफसरों की दबंगई चरम पर।

ऐतिहासिक बड़ा तालाब और डगी तालाब में सेप्टिक टैंक का पानी बहाया जा रहा,श्रद्धालुओं की भावनाओं को पहुंच रही ठेस,नगर परिषद बरही बनी मूकदर्शक।

बरही,ग्रामीण खबर MP।

बरही नगर की पहचान और शान रहे ऐतिहासिक बड़ा तालाब और डगी तालाब आज अपनी मूल सुंदरता और उपयोगिता खोते जा रहे हैं। कभी नगरवासियों के लिए जलस्रोत और धार्मिक आस्था के केंद्र रहे ये तालाब अब गंदगी, दुर्गंध और प्रदूषण के प्रतीक बन चुके हैं। नगर परिषद बरही की लापरवाही, जिम्मेदार अधिकारियों की मनमानी और व्यवस्था की निष्क्रियता ने इन प्राकृतिक धरोहरों को संकट में डाल दिया है।

डगी तालाब के आसपास रहने वाले कई लोगों ने अपने घरों की नालियों और सेप्टिक टैंकों का गंदा पानी सीधे तालाब में डालना शुरू कर दिया है। इस कारण तालाब का जल पूरी तरह दूषित हो गया है। चारों ओर फैली बदबू, मच्छरों का प्रकोप और संक्रमण की आशंका ने स्थानीय लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। कई परिवार बीमारियों के डर से तालाब के पास रहना तक छोड़ने की सोच रहे हैं।

बड़ा तालाब, जो कभी बरही नगर की पहचान माना जाता था, अब उसमें गाद, प्लास्टिक और नालियों का गंदा पानी भर गया है। गर्मी के मौसम में पानी सूखने पर यह तालाब मच्छरों और कीटों का breeding ground बन जाता है, जबकि बरसात में इसमें बहने वाली गंदगी पूरे क्षेत्र में दुर्गंध फैलाती है।

इन दोनों तालाबों के किनारे बने प्राचीन मंदिर आज भी नगर के श्रद्धालुओं के लिए पूजा-अर्चना का प्रमुख स्थल हैं। प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु यहां स्नान कर भगवान को जल अर्पित करते हैं। लेकिन अब वही जल, जो कभी पवित्र माना जाता था, गंदे और अशुद्ध रूप में बह रहा है। श्रद्धालुओं का कहना है कि यह केवल पर्यावरण का नहीं बल्कि धार्मिक भावनाओं का भी अपमान है। “हम यहां श्रद्धा से जल चढ़ाने आते हैं, पर अब यह जल गंदगी से भरा है। यह देखकर बहुत दुख होता है,” एक स्थानीय श्रद्धालु ने कहा।

नगर के जागरूक नागरिकों का कहना है कि यह सब नगर परिषद बरही के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से हो रहा है। परिषद में बैठे अधिकारी वर्षों से इस स्थिति से वाकिफ हैं, लेकिन कार्रवाई करने की जगह वे चुप्पी साधे हुए हैं। यहां तक कि नगर के निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी उनकी दबंगई के आगे लाचार दिख रहे हैं। कई पार्षदों ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि अधिकारी उनकी बात तक नहीं सुनते और हर शिकायत फाइलों में दबा दी जाती है।

बरही की सामाजिक संस्थाओं और पर्यावरण प्रेमियों ने चेतावनी दी है कि यदि स्थिति पर तत्काल नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में ये तालाब पूरी तरह नष्ट हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि एक समय ये तालाब बरही की पहचान थे,न केवल जल संरक्षण के लिए, बल्कि सामाजिक और धार्मिक समरसता के प्रतीक भी।

समाजसेवी संगठनों ने मांग की है कि प्रशासन तत्काल नगर परिषद बरही के जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे। साथ ही इन तालाबों की सफाई, सीवेज लाइन के नियमन, गाद निकासी और तट सौंदर्यीकरण का कार्य शीघ्र प्रारंभ किया जाए। इसके अतिरिक्त, तालाबों के चारों ओर सीवेज और गंदे पानी के निकास को रोकने के लिए स्थायी ड्रेनेज व्यवस्था बनाई जाए ताकि यह ऐतिहासिक जलाशय भविष्य में फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट सकें।

नगरवासियों का यह भी कहना है कि यदि प्रशासन और जनप्रतिनिधि मिलकर इच्छाशक्ति दिखाएं तो ये तालाब फिर से जीवंत हो सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले आवश्यक है कि नगर परिषद की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए और जनता को स्वच्छता एवं जल संरक्षण अभियान से जोड़ा जाए।

बरही के लोगों की मांग स्पष्ट है,यह केवल सफाई का नहीं, बल्कि नगर की अस्मिता का सवाल है। तालाबों को बचाना बरही की संस्कृति, धार्मिक आस्था और पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने की दिशा में पहला कदम होगा। अब देखना यह है कि प्रशासन और नगर परिषद इस आवाज़ को कब सुनते हैं।

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