महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय में ‘IPR’ विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न।

 महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय में ‘IPR’ विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न।

शैक्षणिक संस्थानों में उद्योगोन्मुख नवाचार और बौद्धिक संपदा अधिकार पर देशभर के विशेषज्ञों ने रखे विचार।

कटनी,ग्रामीण खबर MP।

महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग द्वारा दिनांक 13 एवं 14 दिसंबर 2025 को विश्वविद्यालय के केंद्रीय सभागार में “बौद्धिक संपदा अधिकार एवं शैक्षणिक संस्थानों में उद्योगोन्मुख नवाचारात्मक प्रथाएँ” विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों में बौद्धिक संपदा अधिकारों के महत्व को रेखांकित करना, नवाचार को संरक्षण प्रदान करने की प्रक्रिया को समझाना तथा शिक्षा और उद्योग के बीच सशक्त समन्वय स्थापित करने पर विमर्श करना रहा।

संगोष्ठी के प्रथम दिवस का कार्यक्रम चार सत्रों में आयोजित किया गया, जिसमें एक उद्घाटन सत्र एवं तीन तकनीकी सत्र सम्मिलित रहे। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के माननीय कुलगुरु प्रो. प्रमोद कुमार वर्मा द्वारा की गई। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. एन.के. चौबे, पूर्व वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक, मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रमोद सक्सेना, पूर्व सरकारी अधिवक्ता, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर तथा डॉ. जे.पी. शुक्ल, प्रोफेसर, सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली विभाग मंचासीन रहे। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. के.के. त्रिपाठी, विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी द्वारा संगोष्ठी की रूपरेखा, उद्देश्य एवं आयोजन की पृष्ठभूमि पर विस्तार से प्रकाश डाला गया।

उद्घाटन सत्र में वक्ताओं ने बौद्धिक संपदा अधिकारों की वर्तमान प्रासंगिकता, शिक्षा जगत में शोध एवं नवाचार के संरक्षण की आवश्यकता तथा वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारतीय शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किए। कुलगुरु प्रो. प्रमोद कुमार वर्मा ने कहा कि बौद्धिक संपदा अधिकार न केवल शोधकर्ताओं और नवप्रवर्तकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, बल्कि नवाचार को सामाजिक और आर्थिक विकास से जोड़ने का प्रभावी माध्यम भी हैं।

प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ. एन.के. चौबे एवं प्रमोद सक्सेना द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकारों के वैज्ञानिक, कानूनी एवं व्यावहारिक पक्षों पर विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत किए गए। इस सत्र में पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क तथा डिज़ाइन से संबंधित प्रक्रियाओं, चुनौतियों एवं अवसरों पर सार्थक चर्चा हुई। द्वितीय एवं तृतीय तकनीकी सत्र में आभासी माध्यम से प्रो. नीलिमा वर्मा, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, शासकीय माधव महाविद्यालय उज्जैन, प्रो. एस.एस. संधू, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, जैविक विज्ञान विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर तथा डॉ. अमित दूबे, छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा अपने-अपने विषयों पर विशेषज्ञ व्याख्यान दिए गए। वक्ताओं ने शैक्षणिक संस्थानों में उद्योगोन्मुख अनुसंधान, नवाचार आधारित पाठ्यक्रम तथा शोध परिणामों के व्यावसायीकरण की संभावनाओं पर विशेष जोर दिया।

प्रथम दिवस का अंतिम सत्र पूर्णतः शोध पत्र वाचन हेतु समर्पित रहा। इस सत्र में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं शोध संस्थानों से आए शोधार्थियों एवं शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से कुल 25 शोध पत्रों की प्रस्तुति की गई। प्रस्तुत शोध पत्रों में बौद्धिक संपदा अधिकार, नवाचार प्रबंधन, शिक्षा एवं उद्योग के बीच समन्वय तथा ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था जैसे विषयों पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किए गए।

कार्यक्रम के द्वितीय दिवस, 14 दिसंबर 2025 को वैदिक परंपरा के अनुरूप गुरुपूजन एवं मंगलाचरण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर प्रांजलि द्विवेदी एवं  रागिनी पटेल द्वारा सरस्वती वंदना तथा अभिलाषा द्वारा स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। द्वितीय दिवस के कार्यक्रम की अध्यक्षता पुनः कुलगुरु प्रो. प्रमोद कुमार वर्मा द्वारा की गई। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. एन.के. चौबे मंचासीन रहे।

द्वितीय दिवस में आभासी माध्यम से कार्यक्रम के सारस्वत वक्ता डॉ. हरीश पाण्डेय, सहायक प्राध्यापक, शिक्षा संकाय, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकारों को शिक्षा और अनुसंधान से जोड़ने के विविध आयामों पर विचार व्यक्त किए गए। इसके साथ ही डॉ. आरती सोनकर (धुर्वे), प्राचार्य, शासकीय महाविद्यालय उमरियापान, कटनी द्वारा प्रतिभागियों को आशीर्वचन एवं प्रेरक संबोधन प्रदान किया गया।

इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रत्यक्ष एवं आभासी माध्यम से देशभर से कुल 240 से अधिक प्रतिभागियों ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई। संगोष्ठी के दौरान विचार-विमर्श, प्रश्नोत्तर सत्र एवं शोध प्रस्तुतियों के माध्यम से शैक्षणिक एवं शोध जगत के लिए उपयोगी निष्कर्ष सामने आए। इस अवसर पर संगोष्ठी से संबंधित एक स्मारिका का विमोचन भी किया गया, जिसमें चयनित शोध लेखों एवं संगोष्ठी की गतिविधियों का संकलन किया गया।

कार्यक्रम के सफल आयोजन में कार्यक्रम सचिव के रूप में डॉ. सूरज पाण्डेय, सहायक प्राध्यापक, शिक्षा विभाग तथा सह-सचिव के रूप में उमाकांत त्रिपाठी, सहायक प्राध्यापक, कंप्यूटर विभाग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुरुपूजन में जी.एस. चौधरी, बृजेश मिश्रा, स्वतंत्र द्विवेदी, पुष्पलता द्विवेदी एवं अन्य वैदिक विद्वानों का विशेष योगदान रहा। तकनीकी संयोजन का दायित्व सीमान्त शर्मा एवं डॉ. अंकित कैलाशी राठौड़ द्वारा कुशलतापूर्वक निभाया गया।

विभिन्न सत्रों का संचालन उद्घाटन सत्र में उमाकांत त्रिपाठी, प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ. रत्नेश वर्मा, द्वितीय तकनीकी सत्र में डॉ. नवीन चौबे, तृतीय सत्र में डॉ. अंकित राठौर तथा चतुर्थ तकनीकी एवं समापन सत्र में डॉ. मोनिका वर्मा द्वारा किया गया। समापन अवसर पर विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य प्रो. मानवेन्द्र पाण्डेय द्वारा सभी अतिथियों, वक्ताओं, प्रतिभागियों एवं आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए संगोष्ठी की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त की गई।

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी को सफल बनाने में डॉ. शशि ओझा, डॉ. आलोक चन्द्र परिड़ा, डॉ. नित्येश्वर चतुर्वेदी, डॉ. खुशेन्द्र चतुर्वेदी,अशोक सिंह,कपीश कबीर सहित विश्वविद्यालय के समस्त आचार्य, सह-आचार्य, सहायक आचार्य, विद्यार्थी एवं कर्मचारियों का सराहनीय योगदान रहा, जिनके सहयोग से यह आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

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