मासूमों की जान की कोई कीमत नहीं-हादसा नहीं,सरकार की लापरवाही का नतीजा।

 मासूमों की जान की कोई कीमत नहीं-हादसा नहीं,सरकार की लापरवाही का नतीजा।

परासिया में ज़हरीली कफ़ सिरप से 20 बच्चों की मौत, कांग्रेस ने उठाए गंभीर सवाल — दवा फैक्ट्री में फंगस वाला पानी, सरकार की जांच व्यवस्था पर उठे सवाल।

कटनी,ग्रामीण खबर MP।

परासिया में ज़हरीली कफ़ सिरप पीने से मरने वाले मासूम बच्चों की संख्या बीस तक पहुँच चुकी है, लेकिन राज्य सरकार की उदासीनता अब भी बनी हुई है। हर दिन नए खुलासे सामने आ रहे हैं, पर कार्रवाई के नाम पर केवल दिखावा किया जा रहा है। इस भीषण त्रासदी को लेकर जिला शहर एवं ग्रामीण कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष करण सिंह चौहान ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं और कहा है कि यह केवल हादसा नहीं, बल्कि सरकार की लापरवाही का परिणाम है।

उन्होंने कहा कि जांच में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि इंदौर की एक दवा फैक्ट्री में फंगस वाले दूषित पानी से कफ़ सिरप तैयार किया जा रहा था। यह खुलासा अपने आप में सरकार की निगरानी व्यवस्था की नाकामी को उजागर करता है। सोचने की बात है कि जिस पानी को कोई घर में छूना भी पसंद नहीं करेगा, उससे बच्चों की दवा तैयार की जा रही थी, और इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग और संबंधित मंत्री मौन बने हुए हैं।

इस पूरे मामले में अब तक किसी बड़े अधिकारी या मंत्री पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। श्री चौहान ने कहा कि जब पहले दस बच्चों की मौत हो चुकी थी, उसी समय तत्काल जांच और प्रतिबंधात्मक कदम उठाए जा सकते थे, लेकिन सरकार ने लापरवाही दिखाई। सैंपल डाक से भेजे गए जो तीन दिन बाद पहुँचे, और उसी देरी ने कई मासूमों की जान ले ली। उन्होंने कहा कि सरकार के लिए ये मौतें शायद आंकड़े भर हैं, क्योंकि अब तक किसी ने संवेदना तक प्रकट नहीं की।

श्री चौहान ने आगे कहा कि तमिलनाडु सरकार ने इस घटना से सबक लेते हुए संदिग्ध कफ़ सिरप पर तुरंत रोक लगाई, जबकि मध्यप्रदेश सरकार ने टालमटोल की नीति अपनाई। आखिर क्यों? क्या सरकार किसी दवा माफिया को बचाने में लगी है? जनता का यह सवाल अब पूरे प्रदेश में गूंज रहा है।

उन्होंने कहा कि यह घटना न केवल एक प्रशासनिक विफलता है, बल्कि एक मानवीय त्रासदी भी है, जिसमें गरीब और असहाय परिवारों के सपने, उम्मीदें और भविष्य एक झटके में खत्म हो गए। जो माता-पिता अपने बच्चों को खो चुके हैं, वे आज भी न्याय की प्रतीक्षा में दर-दर भटक रहे हैं, जबकि मंत्रीगण प्रेस कॉन्फ्रेंस और सफाई देने में व्यस्त हैं।

स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की जवाबदेही तय करने के बजाय उन्हें बचाने की कवायद चल रही है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री ने अब तक कोई ठोस बयान नहीं दिया है। यही चुप्पी बताती है कि संवेदनशील मुद्दों पर सत्ता का रवैया कितना कठोर और गैरजिम्मेदार हो गया है।

यह भी सवाल उठता है कि दवा उत्पादन और वितरण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने आखिर कैसे बिना जांच के सिरप को मंजूरी दे दी। यह स्पष्ट है कि दवा कंपनियों और सरकारी तंत्र के बीच मिलीभगत ने इस भयावह त्रासदी को जन्म दिया है।

पूर्व जिला अध्यक्ष श्री चौहान ने कहा कि जब सत्ता संवेदनहीन हो जाती है, तब सबसे बड़ी कीमत आम जनता को चुकानी पड़ती है। यह घटना केवल परासिया या छिंदवाड़ा की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल है। यदि सरकार ने समय रहते निगरानी तंत्र मजबूत किया होता और फैक्ट्रियों की नियमित जांच की होती, तो आज 20 मासूमों की जानें नहीं जातीं।

उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में कराई जानी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आए और दोषियों को सख्त सजा मिले। साथ ही पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा और न्याय मिलना चाहिए।

जनता अब जानना चाहती है कि आखिर इन मासूमों की मौत के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या उन अधिकारियों और नेताओं पर कोई कार्रवाई होगी जिन्होंने समय रहते कदम नहीं उठाए? या यह मामला भी अन्य घटनाओं की तरह फाइलों में दब जाएगा?

छिंदवाड़ा जिले के बीस घरों में मातम पसरा है। हर माँ की आंखों में सवाल है कि उसके बच्चे का कसूर क्या था। पिता अपने बच्चों की तस्वीरें देखकर खुद को कोस रहे हैं। लेकिन सरकार अब भी चुप है।

यह त्रासदी एक चेतावनी है कि जब प्रशासनिक तंत्र और राजनीतिक नेतृत्व जनता की पीड़ा से विमुख हो जाता है, तब ऐसी घटनाएं बार-बार होती हैं। अब वक्त है कि सरकार जवाब दे — आखिर इन मासूमों की मौत का जिम्मेदार कौन है और कब तक जनता को ऐसी मौतों की कीमत चुकानी पड़ेगी?

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