कन्हवारा में मुरूम उत्खनन विवाद,खनिज विभाग ने ठेकेदार को दी क्लीनचिट,शिकायत को बताया विलोपन योग्य।

 कन्हवारा में मुरूम उत्खनन विवाद,खनिज विभाग ने ठेकेदार को दी क्लीनचिट,शिकायत को बताया विलोपन योग्य।

सीएम हेल्पलाइन में दर्ज ग्रामीणों की शिकायत पर जांच में ठेकेदार की मौखिक सफाई को माना प्रमाण,ग्रामीण बोले,“खनिज विभाग ठेकेदार के बचाव में जुटा”।

कटनी,ग्रामीण खबर MP।

ग्राम कन्हवारा में मुरूम के अवैध उत्खनन को लेकर उठे विवाद ने खनिज विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सीएम हेल्पलाइन में ग्रामीणों द्वारा की गई शिकायत के बाद विभाग ने जांच तो की, लेकिन नतीजा वही निकला जिसकी ग्रामीणों को आशंका थी,ठेकेदार को क्लीनचिट और शिकायत को विलोपन योग्य घोषित कर दिया गया।

ग्रामीण जियालाल कुशवाहा और उनके साथियों ने सीएम हेल्पलाइन में दर्ज शिकायत में आरोप लगाया था कि ग्राम कन्हवारा में शासकीय अस्पताल के निर्माण कार्य के दौरान ठेकेदार चड्ढा द्वारा निर्माण स्थल के पास से ही मुरूम की खुदाई कर उसका उपयोग भवन निर्माण में किया गया। ग्रामीणों का कहना था कि इस खुदाई के लिए न तो कोई वैध अनुमति ली गई थी और न ही रॉयल्टी का भुगतान किया गया, जिससे शासन को आर्थिक नुकसान पहुंचा।

शिकायत के आधार पर खनिज विभाग ने 13 अक्टूबर 2025 को जांच की, जिसमें शिकायतकर्ता जियालाल कुशवाहा सहित ग्रामवासी मौजूद थे। जांच के दौरान विभागीय अधिकारियों ने ठेकेदार से स्थल पर संपर्क करने के बजाय दूरभाष पर बातचीत की। ठेकेदार ने बताया कि शासकीय अस्पताल का निर्माण कार्य भोपाल स्थित एजेंसी के अनुबंध के तहत किया जा रहा है और निर्माण स्थल के खसरा नंबर 2031/1 के एक भाग में पार्किंग और शौचालय हेतु भूमि समतलीकरण किया गया था, जिससे निकले मुरूम का उपयोग उसी निर्माण में किया गया। ठेकेदार ने यह भी दावा किया कि मुरूम का परिवहन किसी अन्य स्थान पर नहीं हुआ है।

खनिज विभाग ने बिना किसी स्वतंत्र साक्ष्य या स्थलीय नापजोख के ठेकेदार के कथन को ही सत्य मान लिया और अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि उक्त कार्य अनुबंध नक्शे के अनुरूप है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि “मध्य प्रदेश गौण खनिज नियम 1996” के उपनियम 68 के तहत सरकारी निर्माण कार्यों में प्रयुक्त मुरूम पर रॉयल्टी छूट प्रदान की गई है। इसी आधार पर विभाग ने शिकायत को विलोपन योग्य करार दिया और प्रकरण का निस्तारण कर दिया।

हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि विभाग की यह जांच केवल औपचारिकता थी। ग्रामीणों के अनुसार अधिकारियों ने ठेकेदार से अनुमति पत्र, अनुबंध की प्रति या रॉयल्टी भुगतान प्रमाण पत्र तक नहीं मांगा। शिकायतकर्ता जियालाल कुशवाहा ने कहा कि जांच में निष्पक्षता का अभाव था और विभाग ने ठेकेदार के बचाव का पक्ष लिया। उन्होंने कहा, “हमारी शिकायत को बिना किसी ठोस प्रमाण के बंद कर दिया गया। यदि सब कुछ वैध था तो विभाग को ठेकेदार से दस्तावेजी साक्ष्य क्यों नहीं लिए गए? यह स्पष्ट रूप से मिलीभगत का मामला है।”

ग्रामीणों ने आगे कहा कि यदि यह कार्य वास्तव में सरकारी अनुबंध के तहत किया गया था तो उसकी प्रति सार्वजनिक क्यों नहीं की जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि विभागीय अधिकारियों ने ठेकेदार की मौखिक बातों को ही आधार बनाकर शिकायत का निपटारा किया, जबकि जांच के दौरान स्थल पर मुरूम के बड़े पैमाने पर उत्खनन के निशान दिखाई दे रहे थे। ग्रामीणों ने कहा कि ठेकेदार ने उत्खनन से निकली मुरूम का उपयोग केवल निर्माण में ही नहीं, बल्कि कुछ मात्रा में अन्यत्र परिवहन भी किया, लेकिन विभाग ने उसकी जांच करने की जरूरत तक नहीं समझी।

मामले से जुड़े एक वरिष्ठ ग्रामीण ने बताया कि यह पहला मौका नहीं है जब खनिज विभाग ने इस तरह की शिकायतों को विलोपन योग्य बताया हो। इससे पहले भी कई बार विभाग ने अवैध उत्खनन की शिकायतों पर ठेकेदारों या प्राइवेट एजेंसियों को राहत दी है। उनका कहना है कि “खनिज विभाग अब शिकायतों का समाधान नहीं करता, बल्कि ठेकेदारों को बचाने का कवच बन गया है।”

वहीं दूसरी ओर स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी विभाग की इस कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि विभाग को ठेकेदार के दावों की पुष्टि के लिए न केवल स्थल निरीक्षण करना चाहिए था, बल्कि भूमि समतलीकरण और निर्माण कार्य से संबंधित सभी स्वीकृतियां, भू-अभिलेख और अनुबंध दस्तावेजों की जांच करनी चाहिए थी। इसके साथ ही यह भी सत्यापित करना आवश्यक था कि उत्खनन से निकला मुरूम वास्तव में निर्माण स्थल पर ही उपयोग हुआ या अन्यत्र परिवहन किया गया।

क्या कहता है कानून:

मध्य प्रदेश गौण खनिज अधिनियम 1993 और गौण खनिज नियम 1996 के तहत किसी भी प्रकार के खनिज, चाहे वह सरकारी निर्माण कार्य के लिए ही क्यों न हो, का उपयोग तभी वैध माना जाता है जब संबंधित ठेकेदार के पास वैध खनिज डीलर लाइसेंस हो, रॉयल्टी का भुगतान किया गया हो और उपयोग का विवरण रजिस्टर में दर्ज हो। यदि कोई ठेकेदार इन शर्तों का पालन नहीं करता, तो उसे अवैध उत्खनन की श्रेणी में रखा जाता है और उसके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें जुर्माना और कारावास दोनों का प्रावधान है।

इस संदर्भ में विशेषज्ञों का मानना है कि खनिज विभाग का यह तर्क कि “सरकारी निर्माण में प्रयुक्त मुरूम पर रॉयल्टी छूट है” पूरी तरह से सशर्त है, क्योंकि यह छूट केवल तभी लागू होती है जब संबंधित उत्खनन सरकारी स्वीकृति और अनुबंध के नियमों के अंतर्गत किया गया हो। यदि ऐसा नहीं है, तो यह स्पष्ट रूप से अवैध उत्खनन माना जाएगा।

अब सवाल यह है कि जब शिकायतकर्ता और ग्रामीणों ने स्थल पर अवैध खुदाई के साक्ष्य प्रस्तुत किए थे, तब विभाग ने केवल एक दूरभाषिक बातचीत के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर शिकायत को विलोपन योग्य कैसे घोषित कर दिया? क्या यह जांच नियमों के अनुरूप हुई, या फिर इसे जानबूझकर ठेकेदार के हित में मोड़ दिया गया?

ग्रामीणों ने इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है और कहा है कि यदि न्याय नहीं मिला, तो वे इस मामले को जिला कलेक्टर, संभागायुक्त और लोकायुक्त तक ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि “हमारी मांग है कि इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच हो, क्योंकि खनिज विभाग का रवैया पूरी तरह पक्षपातपूर्ण और संदिग्ध है।”

अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस गंभीर मामले पर क्या कदम उठाता है — क्या ग्रामीणों को न्याय मिलेगा या यह मामला भी अन्य कई शिकायतों की तरह फाइलों के ढेर में दबकर रह जाएगा।

ग्रामीण खबर MP-

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