तीन पीढ़ियों से लगातार माता की सेवा में जुटे सिलौंडी के दो पांडो के परिवार,बड़ी मढिया और छोटी मढिया में आज भी जीवित है आस्था की परंपरा।

 तीन पीढ़ियों से लगातार माता की सेवा में जुटे सिलौंडी के दो पांडो के परिवार,बड़ी मढिया और छोटी मढिया में आज भी जीवित है आस्था की परंपरा।

बड़ी मढिया में शर्मा परिवार और छोटी मढिया में श्रीवास्तव परिवार निभा रहे परंपरा,भक्तों की आस्था का केंद्र बनीं माता मरही आसमानी।

सिलौंडी,ग्रामीण खबर MP।

सिलौंडी ग्राम में माता की आराधना और सेवा का इतिहास बहुत पुराना है। लगभग डेढ़ सौ वर्षों से यहां की बड़ी मढिया और छोटी मढिया में पांडो का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी माता की सेवा करता आ रहा है। यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर भी बन चुकी है।

ग्राम की बड़ी मढिया में स्वर्गीय कोदू लाल शर्मा ने अपने जीवन का अधिकांश समय माता की सेवा और आराधना में बिताया। वे अपने समय में न केवल पूजा-अर्चना करते थे,बल्कि भक्तों के बीच धार्मिक भावना जगाने का कार्य भी करते थे। उनके भाई बाबूलाल शर्मा का परिवार भी इस सेवा में साथ रहा। आज कोदू लाल शर्मा के दोनों पुत्र बड़ी श्रद्धा और निष्ठा के साथ माता की सेवा कर रहे हैं। बड़ी मढिया की ख्याति दूर-दूर तक है। नवरात्र सहित वर्षभर यहां पर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। ग्रामीणों का कहना है कि बड़ी मढिया में माता के दर्शन से हर प्रकार की मनोकामना पूरी होती है।

वहीं, छोटी मढिया की परंपरा भी कम गौरवशाली नहीं है। यहां सबसे पहले स्वर्गीय नवाब लाल श्रीवास्तव ने माता की सेवा की शुरुआत की थी। उन्होंने पूरे जीवन को इस परंपरा के नाम समर्पित कर दिया। उनके पश्चात उनके पुत्र विजय श्रीवास्तव ने लगभग 60 वर्षों तक लगातार माता की सेवा की और अपनी गहरी भक्ति से पूरे क्षेत्र में आस्था का केंद्र स्थापित किया। आज विजय श्रीवास्तव के पुत्र संदीप श्रीवास्तव पिछले 18 वर्षों से छोटी मढिया में माता की सेवा कर रहे हैं।

छोटी मढिया की माता मरही आसमानी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली माता के रूप में प्रसिद्ध हैं। भक्तों का मानना है कि माता के दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। हर नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष उत्सव का आयोजन होता है। अंतिम दिन ज्वारे का विसर्जन बड़े धूमधाम से किया जाता है। ग्रामीण और नगरवासी भारी संख्या में शामिल होकर मां के जयकारों से वातावरण गूंजा देते हैं।

विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि विजय श्रीवास्तव के बड़े पुत्र भले ही डॉक्टर बनकर शहर में बस गए हों, लेकिन नवरात्र के दिनों में वे हर बार अपने गांव लौटकर माता की सेवा में शामिल होते हैं। यह उदाहरण बताता है कि चाहे परिवार के सदस्य कितने भी आधुनिक जीवन में व्यस्त क्यों न हों, उनकी आस्था और परंपरा के प्रति निष्ठा अटूट बनी हुई है।

आज भी इन दोनों परिवारों की यह सेवा परंपरा गांव की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान है। भक्तों का मानना है कि यह परंपरा केवल पूजा-पाठ भर नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने और नई पीढ़ी को आस्था से परिचित कराने का माध्यम भी है। बड़ी मढिया और छोटी मढिया की यह अनवरत परंपरा आने वाले समय में भी पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहेगी और श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देती रहेगी।

इस प्रकार सिलौंडी गांव के शर्मा और श्रीवास्तव परिवारों की तीन पीढ़ियों से चल रही माता की सेवा केवल आस्था ही नहीं, बल्कि गांव की धरोहर बन चुकी है। यही कारण है कि दोनों मढियाओं में दूर-दूर से आने वाले भक्तों की भीड़ रहती है और माता मरही आसमानी आस्था का अद्वितीय केंद्र बनी हुई हैं।

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