शिकायत और साक्ष्यों के बावजूद नहीं थमा गबन का खेल,ग्राम पंचायत मुरवारी के सरपंच और पुत्र पर गंभीर आरोप।
37 लाख रुपये के गबन की शिकायत के बाद भी कार्रवाई ठप,संदेहास्पद बिलों से जारी है भ्रष्टाचार,ग्रामीणों ने उच्चस्तरीय जांच की उठाई मांग।
ढीमरखेड़ा,ग्रामीण खबर MP:
जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत मुरवारी इन दिनों गबन और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को लेकर सुर्खियों में है। पंचायत के सरपंच और उनके पुत्र पर लाखों रुपये के गबन का आरोप लगाया गया है, जिसकी लिखित शिकायत 1 सितंबर 2025 को सीईओ ढीमरखेड़ा और एसडीएम ढीमरखेड़ा के पास पहुंची। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि सरपंच ने अपने पुत्र के साथ मिलकर लगभग 37 लाख रुपये का गबन किया है।
शिकायत में पंचायत दर्पण पोर्टल से प्राप्त पेमेंट एडवाइस और अन्य दस्तावेज भी अधिकारियों को सौंपे गए। दस्तावेजों की जांच करने पर स्पष्ट होता है कि कई बिल संदिग्ध हैं और सरपंच ने जानबूझकर सरकारी धन को अपने पुत्र के बैंक खाते और उसकी दुकान के नाम पर ट्रांसफर किया है। इससे यह प्रमाणित होता है कि गांव के विकास कार्यों में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं।
गंभीर साक्ष्य उपलब्ध होने के बावजूद प्रशासनिक स्तर पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यही कारण है कि ग्रामीणों का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि जब शिकायत और साक्ष्य अधिकारियों तक पहुंच चुके हैं, तब कार्रवाई में हो रही देरी कई संदेहों को जन्म देती है।
शिकायत दर्ज होने के बाद भी सरपंच के हौसले बुलंद रहे। 6 सितंबर 2025 को उन्होंने लगभग 10 संदेहास्पद बिल पास कराकर 49,900 रुपये का भुगतान फिर से करा लिया। सूत्रों का कहना है कि प्रत्येक बिल 4,990 रुपये का था, ताकि राशि 5,000 रुपये से कम रहे और यह किसी उच्चस्तरीय जांच एजेंसी की नजर से बच जाए। ग्रामीणों का मानना है कि यह तरीका सरपंच की सोची-समझी रणनीति है, जिससे भ्रष्टाचार को छुपाया जा सके और प्रशासन की आंखों में धूल झोंकी जा सके।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अधिकारी कार्रवाई करने से क्यों बच रहे हैं। क्या यह मात्र लापरवाही है या फिर कहीं न कहीं इस गबन की डोर जनपद स्तर तक जुड़ी हुई है? ग्रामीणों का कहना है कि यदि अधिकारियों की मिलीभगत नहीं होती तो इतने स्पष्ट साक्ष्य सामने आने के बाद भी सरपंच के खिलाफ कार्रवाई जरूर होती।
गांव के बुजुर्गों और युवाओं ने एकजुट होकर इस मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि यदि दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो भ्रष्टाचार की जड़ और गहरी हो जाएगी। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द जांच प्रारंभ नहीं हुई तो वे जन आंदोलन की राह अपनाने के लिए बाध्य होंगे।
इस प्रकरण ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारी तंत्र गंभीर है या फिर गबन करने वाले जनप्रतिनिधियों को संरक्षण दिया जा रहा है। मुरवारी पंचायत का यह मामला केवल एक गांव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है, जहां शिकायत और साक्ष्य होते हुए भी भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पाता। ग्रामीणों की निगाह अब उच्च प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर है कि आखिर कब तक इस गबन पर कार्रवाई को टाला जाता रहेगा।
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