शासकीय महाविद्यालय सिलौड़ी में जैविक खेती एवं बागवानी प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न।
स्वामी विवेकानंद मार्गदर्शन योजना के अंतर्गत 25 दिनी प्रशिक्षण में 45 प्रतिभागियों को मिला प्रमाण पत्र।
सिलौड़ी,ग्रामीण खबर MP।
शासकीय महाविद्यालय सिलौड़ी में स्वामी विवेकानंद मार्गदर्शन योजना क्रमांक 7195 के अंतर्गत “जैविक खेती एवं बागवानी” पर आधारित अल्पावधि स्वरोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन 25 सितंबर 2025 को उत्साहपूर्वक मनाया गया। यह प्रशिक्षण 1 सितंबर से प्रारंभ होकर 25 दिन यानी कुल 60 घंटे चला। प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को स्वरोजगार के लिए सक्षम बनाना, उन्हें कौशल आधारित शिक्षा प्रदान करना और आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करना रहा।
समारोह की शुरुआत महाविद्यालय परिसर में सरस्वती पूजन से हुई। इसके बाद प्राचार्य रतिराम अहिरवार ने अपने स्वागत उद्बोधन में विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर भारत निर्माण की दिशा में ऐसे प्रशिक्षणों की महत्ता बताई। उन्होंने कहा कि आज के समय में कृषि और बागवानी में जैविक तकनीकों का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अधिक उपयोग मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है।
कार्यक्रम का सफल समन्वय स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ प्रभारी एवं टीपीओ डॉ. अंकुर ओमर द्वारा किया गया। उन्होंने पूरे प्रशिक्षण सत्र के दौरान न केवल विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया, बल्कि उन्हें बाजार की वास्तविकताओं और उद्यमिता की बारीकियों से भी परिचित कराया।
प्रशिक्षण की शुरुआत शकील अहमद चौधरी, सेडमैप जिला समन्वयक एवं ट्रेनर के व्याख्यान से हुई। उन्होंने जैविक खेती के विभिन्न प्रकार, मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के उपाय और हाईटेक नर्सरी प्रबंधन पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि किस प्रकार आधुनिक तकनीक का उपयोग कर परंपरागत खेती को लाभकारी बनाया जा सकता है। इसके बाद ट्रेनर सत्येंद्र ने परागण, बीज उपचार, फसल उत्पादन की तकनीक और पौधों की सुरक्षा के तरीकों पर उपयोगी जानकारियाँ साझा कीं।
प्रकोष्ठ प्रभारी डॉ. अंकुर ओमर ने विद्यार्थियों को रोग नियंत्रण, लागत विश्लेषण, मार्केटिंग और जैविक उत्पादों की ब्रांडिंग के विषय में विस्तार से समझाया। उन्होंने जोर दिया कि यदि युवा पीढ़ी इन तकनीकों को अपनाती है तो उन्हें न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलेगा, बल्कि वैश्विक बाजार में भी उनके उत्पादों की मांग बढ़ सकती है।
इस प्रशिक्षण के दौरान वर्मी कम्पोस्टिंग और कंपोस्टिंग जैसे विषयों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया। विद्यार्थियों ने प्रयोगात्मक सत्रों के माध्यम से सीखा कि किस प्रकार केंचुओं की मदद से उच्च गुणवत्ता वाली जैविक खाद तैयार की जा सकती है और उसे खेतों में किस तरह से उपयोग किया जाए। यह भी समझाया गया कि वर्मी कम्पोस्टिंग का सही उपयोग रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम करता है, जिससे किसानों को लागत में राहत मिलती है और उपभोक्ताओं को स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद प्राप्त होते हैं।
प्रशिक्षण के समापन अवसर पर 45 प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। सभी प्रतिभागियों ने अपने फीडबैक फॉर्म में इस प्रशिक्षण को अत्यंत उपयोगी बताया और महाविद्यालय प्रशासन से भविष्य में भी ऐसे प्रशिक्षण आयोजित करने की मांग की। विद्यार्थियों ने कहा कि उन्हें यहाँ से जो व्यावहारिक ज्ञान मिला, वह उनके जीवन में नई दिशा देने वाला है।
इस 60 घंटे के प्रशिक्षण को सफल बनाने में महाविद्यालय के सभी शिक्षक और कर्मचारियों ने अभूतपूर्व सहयोग दिया। प्राध्यापक पंकज मिश्र, डॉ. हेमंत, चंदन यादव, डॉ. रवित सिंह, डॉ. नीता मिश्रा, रश्मि सिंह, डॉ. सुदीपा जाना, डॉ. लक्ष्मी बागरी, भूपेंद्र शुक्ल और रमन ने अपने शैक्षणिक एवं तकनीकी सहयोग से कार्यक्रम की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
समारोह के अंत में महाविद्यालय परिवार ने यह संकल्प लिया कि भविष्य में विद्यार्थियों को स्वरोजगारोन्मुख शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए और भी अधिक ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, ताकि ग्रामीण अंचलों के युवाओं को न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का मार्ग भी प्रशस्त हो।
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