जयपुर का ‘ज्वैल ऑफ इंडिया’ अपार्टमेंट अवैध, मुख्य सचिव सुधांश पंत समेत पांच IAS ने खरीदे फ्लैट।

 जयपुर का ‘ज्वैल ऑफ इंडिया’ अपार्टमेंट अवैध, मुख्य सचिव सुधांश पंत समेत पांच IAS ने खरीदे फ्लैट।

सरकारी जमीन पर निर्माण और भ्रष्टाचार की आशंका,फ्लैट बेचने के नाम पर अफसरों को फंसाने का आरोप।

कटनी,ग्रामीण खबर MP:

राजधानी जयपुर में बने बहुचर्चित ‘ज्वैल ऑफ इंडिया अपार्टमेंट’ को लेकर गंभीर आरोप सामने आए हैं। यह अपार्टमेंट सरकारी भूमि पर अवैध तरीके से निर्मित बताया जा रहा है। खास बात यह है कि इस परियोजना में प्रदेश के मुख्य सचिव सुधांश पंत समेत पांच वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों ने फ्लैट खरीदे हैं। इस खुलासे ने प्रशासनिक गलियारों से लेकर राजनीतिक हलकों तक हलचल मचा दी है।

सूत्रों के अनुसार, अपार्टमेंट का निर्माण बिना आवश्यक सरकारी मंजूरी और नियमों के उल्लंघन के साथ किया गया। बताया जाता है कि इस परियोजना के जरिए सरकारी भूमि पर कब्जा कर उसे निजी आवासीय कॉम्प्लेक्स में बदला गया। इस दौरान फ्लैट बेचने के नाम पर कई बड़े अफसरों को निवेश के लिए राजी किया गया। अब यह आरोप लग रहे हैं कि वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह कर इस घोटाले में फंसाया गया, ताकि निर्माण को वैधता का आभास मिल सके।

राजस्थान में अवैध कॉलोनियों और जमीन घोटालों के मामले पहले भी सामने आते रहे हैं, लेकिन इस बार मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि इसमें सीधे शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों का नाम जुड़ा हुआ है। यह पहली बार है जब मुख्य सचिव जैसे उच्च पदस्थ अधिकारी के फ्लैट खरीदने की जानकारी सार्वजनिक हुई है। इससे पूरे प्रशासनिक तंत्र पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर कैसे अवैध भूमि पर बने अपार्टमेंट में इतने वरिष्ठ अफसर निवेश करने के लिए तैयार हो गए।

जानकारों का कहना है कि यह प्रकरण केवल जमीन कब्जे का मामला नहीं है, बल्कि इसमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग की आशंका है। अगर जांच एजेंसियां इस मामले में गंभीरता से पड़ताल करती हैं तो कई बड़े नामों के खुलासे की संभावना है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अधिकारियों ने जानबूझकर इसमें निवेश किया या उन्हें भी गलत जानकारी देकर इस योजना का हिस्सा बनाया गया।

इस खबर के सामने आने के बाद प्रशासनिक हलकों में बेचैनी बढ़ गई है। विपक्षी दलों ने इस पूरे प्रकरण को बड़ा घोटाला बताते हुए सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि जब राज्य के सबसे वरिष्ठ अधिकारी ही अवैध प्रोजेक्ट्स में शामिल पाए जा रहे हैं तो आम जनता का क्या होगा। वहीं, सत्तारूढ़ दल पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस निर्माण की अनुमति और भूमि आवंटन में कहीं न कहीं राजनीतिक दबाव का इस्तेमाल हुआ।

वर्तमान में इस अपार्टमेंट और इसमें हुए लेनदेन की जांच की संभावना जताई जा रही है। यदि मामले को जांच एजेंसियों जैसे ईडी, एसीबी या विजिलेंस को सौंपा जाता है, तो कई ऐसे दस्तावेज और तथ्य सामने आ सकते हैं जो अब तक छिपाए गए थे। इससे यह भी तय हो सकता है कि यह महज धोखाधड़ी का मामला है या फिर इसमें बड़े स्तर पर तंत्र की मिलीभगत रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केवल जमीन और निर्माण का नहीं बल्कि सिस्टम पर जनता के भरोसे का भी है। जब आम लोग घर खरीदते हैं तो वे सरकार और प्रशासन की वैधता पर भरोसा करते हैं। अगर वही अधिकारी अवैध प्रोजेक्ट्स में निवेश करते हुए पाए जाते हैं, तो आम जनता का विश्वास पूरी तरह डगमगा सकता है।

अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार और प्रशासन इस पर क्या कदम उठाते हैं। क्या दोषियों पर कठोर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी अन्य विवादों की तरह समय के साथ दबा दिया जाएगा। फिलहाल यह प्रकरण जयपुर और पूरे प्रदेश में चर्चा का सबसे बड़ा विषय बन गया है और लोग यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि इस घोटाले का सच कब और कैसे सामने आएगा।

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