उत्तरकाशी में प्रलय की आंधी,तबाही के 66 घंटे बाद भी राहत और रेस्क्यू का संघर्ष जारी।

 उत्तरकाशी में प्रलय की आंधी,तबाही के 66 घंटे बाद भी राहत और रेस्क्यू का संघर्ष जारी।

धराली गांव पूरी तरह मलबे में तब्दील,प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने जताया शोक,युद्धस्तर पर चल रहा है राहत और पुनर्वास अभियान।

कटनी,ग्रामीण खबर MP:

उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में बीते दिनों आई भीषण आपदा ने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया है। बादल फटने, भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ ने जिले के धराली गांव समेत कई इलाकों को अपनी चपेट में ले लिया। इस आपदा को बीते अब 66 घंटे हो चुके हैं, लेकिन राहत और बचाव का कार्य अब भी युद्धस्तर पर जारी है। राहतकर्मी मलबे और टूटे हुए रास्तों के बीच से गुजरते हुए हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि फंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके और ज़रूरतमंदों तक मदद पहुँचाई जा सके।

धराली गांव, जो कभी पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए विश्राम का शांत स्थल था, आज पूरी तरह से तबाह हो चुका है। इसरो की सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि करीब 20 से 36 हेक्टेयर का क्षेत्र पूरी तरह मलबे में दब चुका है। न केवल गाँव का अस्तित्व मिट गया, बल्कि नदी ने भी अपना रास्ता बदल लिया है। यह तस्वीरें एक बार फिर यह चेतावनी देती हैं कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का परिणाम कितना भीषण हो सकता है।

सरकारी स्तर पर लगातार राहत प्रयास किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया और अधिकारियों के साथ लगातार बैठकें कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की कि आपदा में जान गंवाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के परिजनों को ₹4 लाख की आर्थिक सहायता दी जाएगी, वहीं घायलों के इलाज और बेघर हुए लोगों के लिए स्थायी आवास योजना चलाई जाएगी। सरकार ने केंद्र से अतिरिक्त राहत कोष और संसाधनों की माँग की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना पर गहरा शोक जताते हुए कहा कि केंद्र सरकार उत्तराखंड के साथ खड़ी है और हरसंभव सहायता प्रदान की जाएगी। रक्षा मंत्रालय के निर्देश पर सेना की टुकड़ियाँ, हेलीकॉप्टर, और इंजीनियरिंग टीमों को तैनात किया गया है जो न केवल राहत पहुँचा रही हैं बल्कि क्षतिग्रस्त सड़कों और पुलों की अस्थायी मरम्मत भी कर रही हैं।

एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी और स्थानीय प्रशासन की टीमें दिन-रात एक करके सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी हैं। खतरनाक और दुर्गम पहाड़ी रास्तों में मलबे के ढेरों को पार करते हुए सैकड़ों लोगों को सुरक्षित निकाला गया है। वहीं घायलों को हेली रेस्क्यू कर अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।

आपदा का सबसे बड़ा संकट संचार और संपर्क मार्गों का टूट जाना रहा। दूर-दराज के गांवों तक न बिजली पहुँची, न ही मोबाइल नेटवर्क। बावजूद इसके प्रशासन ने सैटेलाइट फोन, अस्थायी ब्रिज और आपातकालीन टेली-कॉम यंत्रों से व्यवस्था संभालने की कोशिश की।

गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से आए तीर्थयात्री और पर्यटक बड़ी संख्या में फंसे हुए थे। इन राज्यों की सरकारों ने उत्तराखंड प्रशासन से समन्वय स्थापित कर विशेष हेल्पलाइन नंबर जारी किए और फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए विशेष विमान और बसों की व्यवस्था कराई।

इस त्रासदी को लेकर विपक्ष ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस ने सरकार से पूछा है कि ऐसी आपदाओं की पूर्व चेतावनी व्यवस्था क्यों विफल हो रही है? साथ ही केंद्र सरकार से आपदा प्रबंधन तंत्र को सुदृढ़ करने की मांग की है। वहीं समाजसेवी संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर राशन, कपड़े, मेडिकल सहायता और स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं की टीम भेजकर बड़ा सहयोग किया है।

स्थानीय लोगों की मानें तो केवल 40 सेकंड में पूरी घाटी तबाह हो गई थी। तेज गर्जना, भीषण बारिश और ऊपर से नीचे आती मिट्टी–पत्थर की लहरों ने सब कुछ नष्ट कर दिया। कुछ लोगों ने वीडियो बनाकर इस तबाही की गवाही भी दुनिया के सामने रखी है, जो आज सोशल मीडिया पर वायरल हैं।

राहत कार्यों के साथ पुनर्वास की ज़िम्मेदारी अब और भी बड़ी हो चुकी है। सरकार ने कहा है कि प्रभावित गांवों का पुर्ननिर्माण एक सुनियोजित योजना के तहत किया जाएगा जिसमें पर्यावरणीय संतुलन और आपदा रोधी निर्माण तकनीक को अपनाया जाएगा।

इस आपदा ने हमें एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर किया है कि पर्वतीय क्षेत्रों में अंधाधुंध निर्माण, पेड़ों की कटाई, और नदियों के बहाव में अवरोध किस हद तक घातक साबित हो सकते हैं। भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय समुदाय की भागीदारी, वैज्ञानिक चेतावनी प्रणाली और प्रशासनिक तैयारी का समावेश हो।

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