भारत-अमेरिका की साझेदारी ने रचा नया इतिहास,GSLV-F16 से NISAR की सफल लॉन्चिंग।

 भारत-अमेरिका की साझेदारी ने रचा नया इतिहास,GSLV-F16 से NISAR की सफल लॉन्चिंग।

जलवायु परिवर्तन की निगरानी, आपदा पूर्वानुमान और पृथ्वी अध्ययन में NISAR बनेगा वैश्विक परिवर्तन का सूत्रधार।

कटनी,ग्रामीण खबर mp:

भारत की अंतरिक्ष विज्ञान यात्रा में 30 जुलाई 2025 को एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज हुई, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के सहयोग से विकसित अत्याधुनिक उपग्रह NISAR को GSLV-F16 रॉकेट के माध्यम से सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया। यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से निर्धारित समय पर शाम 5:40 बजे हुआ, जिसे पूरे विश्व में लाइव देखा गया और व्यापक रूप से सराहा गया।

NISAR यानी NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar एक संयुक्त परियोजना है जो पृथ्वी की सतह के उच्च-सटीकता वाले अध्ययन हेतु तैयार की गई है। यह उपग्रह दोहरी बैंड रडार तकनीक से युक्त है, जिसमें NASA द्वारा निर्मित L-बैंड और ISRO द्वारा निर्मित S-बैंड सेंसर लगे हैं। इस तकनीक की मदद से यह उपग्रह दिन-रात, बादलों के बीच, और किसी भी मौसम में पृथ्वी पर हो रहे बेहद सूक्ष्म परिवर्तनों की निगरानी करने में सक्षम है।

यह उपग्रह करीब 2,400 किलोग्राम वजनी है और इसे सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा (Sun-Synchronous Orbit) में स्थापित किया गया है, जो पृथ्वी से लगभग 743 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह हर 12 दिन में पृथ्वी की पूरी सतह को स्कैन करेगा और प्राप्त आंकड़े वैज्ञानिकों को भूकंप, भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, हिमनदों के पिघलने, समुद्र तटों के कटाव और कृषि भूमि की दशा जैसी प्राकृतिक व मानवजनित गतिविधियों की निगरानी में मदद करेंगे।

NISAR मिशन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके आंकड़े आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने और उनका समाधान निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उदाहरणस्वरूप, जंगलों में आग लगने की प्रारंभिक चेतावनी, बाढ़ की संभावना, सूखा पूर्वानुमान, और जलवायु-संवेदनशील फसलों की निगरानी संभव हो सकेगी। इस तरह NISAR न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में क्रांति लाएगा, बल्कि आम जनजीवन की सुरक्षा और आजीविका को भी नई दिशा देगा।

उल्लेखनीय है कि यह उपग्रह अब तक का सबसे महंगा पृथ्वी-अवलोकन मिशन है, जिसकी कुल लागत लगभग 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर आंकी गई है। यह उपग्रह इस मायने में भी विशिष्ट है कि इसके द्वारा एकत्र आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाएगा, जिससे दुनियाभर के वैज्ञानिक, शोधकर्ता, पर्यावरणविद्, और नीति-निर्माता लाभान्वित होंगे।

भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने इस परियोजना पर लगभग एक दशक तक मिलकर कार्य किया है। NASA द्वारा विकसित रडार उपकरणों को अमेरिका से भारत लाया गया और ISRO ने उसे उपग्रह बस (satellite bus) में एकीकृत किया। यह मिशन दोनों देशों के बीच न केवल वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग का प्रतीक है, बल्कि वैश्विक समस्याओं के समाधान में एकजुटता का भी परिचायक है।

ISRO के अध्यक्ष ने इस मिशन की सफलता को भारत के लिए एक "वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता की दिशा में निर्णायक कदम" बताया, वहीं NASA के प्रशासक ने इसे "अंतरिक्ष सहयोग की नई ऊँचाई" कहा। दोनों ही संस्थानों ने इस ऐतिहासिक मिशन को मानवता के भविष्य के लिए समर्पित बताया है।

इस मिशन की सफलता ने भारत की तकनीकी सक्षमता, वैज्ञानिक सोच और वैश्विक मंच पर प्रभावशाली उपस्थिति को और भी प्रबल किया है। भारत अब उन चुनिंदा देशों की सूची में शुमार हो गया है जो इस स्तर की जटिल उपग्रह प्रणाली का निर्माण और संचालन करने में सक्षम हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में NISAR से प्राप्त आंकड़े न केवल पर्यावरणीय और आपदा-संबंधी नीतियों को प्रभावी बनाएंगे, बल्कि जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौती से निपटने में भारत को नेतृत्व प्रदान करने में सहायक होंगे।

यह प्रक्षेपण नई पीढ़ी को विज्ञान, नवाचार और वैश्विक सहयोग की प्रेरणा देता है। यह मिशन इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जब दो राष्ट्र साझा उद्देश्य और मानवता की भलाई को केंद्र में रखकर एक साथ काम करते हैं, तो परिणाम अभूतपूर्व होते हैं।

NISAR न केवल एक उपग्रह है, बल्कि यह भारत की वैज्ञानिक सोच, आत्मनिर्भरता और वैश्विक कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता का आकाश में चमकता हुआ प्रतीक है।

प्रधान संपादक:अज्जू सोनी,ग्रामीण खबर mp

संपर्क सूत्र:9977110734

Post a Comment

Previous Post Next Post