ढीमरखेड़ा के जंगलों में वन अमले पर हमला: अतिक्रमण रोकने पहुंचे कर्मचारियों पर बरसी लाठियां।
बिहरिया बीट में 20 एकड़ वन भूमि पर कब्जे का प्रयास, विरोध करने पर वन कर्मियों से की गई मारपीट, विभाग ने दर्ज कराई रिपोर्ट।
ढीमरखेड़ा,ग्रामीण खबर mp।
वनों की रक्षा केवल पर्यावरण संतुलन का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा से जुड़ा अहम दायित्व है। लेकिन जब जंगल की भूमि पर अतिक्रमण करने वालों का दुस्साहस इतना बढ़ जाए कि वे वन विभाग की टीम पर ही हमला कर दें, तो यह न सिर्फ कानून व्यवस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता है, बल्कि वन संरक्षण की दिशा में लगे कर्मियों के मनोबल पर भी गहरा प्रहार करता है।
ऐसी ही एक चौंकाने वाली घटना मध्य प्रदेश के कटनी जिले के ढीमरखेड़ा थाना क्षेत्र अंतर्गत बिहरिया बीट से सामने आई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, बिहरिया बीट में पिछले कुछ समय से लगातार वन भूमि पर अतिक्रमण की शिकायतें मिल रही थीं। रेंजर अजय मिश्रा और उनकी टीम को सूचना मिली कि कुछ स्थानीय लोग करीब 20 एकड़ क्षेत्रफल में वन भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर खेती करने का प्रयास कर रहे हैं।
इस पर विभागीय टीम मौके पर पहुंची और अतिक्रमण रोकने की कार्रवाई शुरू की। लेकिन मौके की स्थिति बेहद तनावपूर्ण हो गई, जब अतिक्रमणकारियों ने समझाइश के बावजूद वन कर्मचारियों पर लाठियों और डंडों से हमला कर दिया। यह हमला अचानक और सुनियोजित प्रतीत हुआ।
वन विभाग के कर्मचारियों ने तत्काल इस हमले की सूचना थाना ढीमरखेड़ा को दी और एक लिखित रिपोर्ट भी प्रस्तुत की, जिसमें हमलावरों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की गई है। विभाग का कहना है कि यह घटना केवल शासकीय कार्य में बाधा नहीं है, बल्कि यह वन संरक्षण अधिनियम एवं भारतीय दंड संहिता के गंभीर उल्लंघन की श्रेणी में आती है।
बिहरिया बीट वह क्षेत्र है जो अपनी जैव विविधता, घने जंगलों और वन्यजीवों के लिए विख्यात है। पिछले कुछ वर्षों से यहां धीरे-धीरे संगठित तरीके से अतिक्रमण हो रहा है। 20 एकड़ से अधिक भूमि पर अब तक अवैध खेती और निर्माण के प्रयास सामने आ चुके हैं।
वन विभाग लगातार इस तरह के अतिक्रमणों को रोकने का प्रयास कर रहा है, लेकिन विभागीय कर्मचारियों को केवल वन तस्करों या अतिक्रमणकारियों से नहीं, बल्कि स्थानीय सामाजिक, राजनीतिक और माफिया दबावों से भी जूझना पड़ता है।
राजनीति और तंत्र की विफलता का परिणाम:
बिहरिया बीट की घटना यह स्पष्ट करती है कि अब अतिक्रमण केवल भूख और ज़रूरत का नहीं, बल्कि एक संगठित और संरक्षित तंत्र का हिस्सा बन चुका है। अक्सर नेता वोट बैंक की राजनीति के चलते आदिवासियों के नाम पर यह कहकर घोषणा करते हैं कि "जल-जंगल-जमीन तुम्हारी है", लेकिन बाद में उसी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए वन विभाग को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है।
पूर्व में रामपुर क्षेत्र की घटना इसका प्रमाण रही है, जब आदिवासी समुदाय के कुछ लोगों ने परिंदों का शिकार करने वाले आरोपियों को वन विभाग की गिरफ्त से छुड़ा लिया था। उस समय न केवल वन कर्मियों से मारपीट की गई थी, बल्कि आरोपियों को बचाने वालों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई — उलटे तत्कालीन वनकर्मी को निलंबित कर दिया गया, जिसे बाद में बहाल किया गया।
क्या वनों की रक्षा करने वालों को मिलेगा न्याय?
यह सवाल आज पूरे राज्य के सामने खड़ा है कि जब एक वर्दीधारी वनकर्मी ही सुरक्षित नहीं है, तो आम नागरिक कैसे खुद को सुरक्षित महसूस करेगा? यह घटना सिर्फ एक बीट या एक थाने की नहीं, बल्कि पूरे राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह है।
सरकार और प्रशासन को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि वन विभाग के कर्मचारी केवल जंगल की रक्षा में न लगे रहें, बल्कि उन्हें सुरक्षा, अधिकार और न्याय भी मिले। अन्यथा, जंगलों का यह चुपचाप होता दोहन एक दिन पूरे प्रदेश के पर्यावरण और व्यवस्था को नष्ट कर देगा।
(प्रधान संपादक:अज्जू सोनी,ग्रामीण खबर mp)
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