बड़वारा का सरकारी अस्पताल बना बीमारियों की फैक्ट्री, चारों ओर गंदगी, दुर्गंध और मवेशियों का राज।
वार्डों में फैली सड़ांध, बेड पर नहीं बिछती चादरें, खुलेआम घूमते कुत्ते और गाय-बैल, जिम्मेदार अफसरों ने साधी चुप्पी।
बड़वारा,ग्रामीण खबर mp:
एक ओर सरकार ‘स्वस्थ भारत’ और ‘स्वच्छ भारत’ की योजनाओं पर करोड़ों खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। बड़वारा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इन दावों को ठेंगा दिखाता हुआ खुद बीमारियों का केंद्र बन चुका है। यह अस्पताल अब इलाज के लिए नहीं, बल्कि लापरवाही, गंदगी और बदइंतजामी के लिए बदनाम होता जा रहा है।
अस्पताल परिसर में कदम रखते ही मरीज और उनके परिजन जैसे नरक में आ जाते हैं। चारों ओर गंदगी फैली है, बदबू इतनी जबर्दस्त है कि सांस लेना भी दूभर हो जाता है। वार्डों की हालत देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे वर्षों से सफाई नहीं हुई हो। मरीज जिन बेडों पर भर्ती होते हैं, वे न केवल टूटे-फूटे हैं बल्कि उन पर गद्दे भी बेहद गंदे हैं। चादर मिलना तो जैसे किसी सौभाग्य की बात हो। ज़्यादातर मरीज अपने घर से चादर लाकर बिछाने पर मजबूर हैं, और कई बार तो उन्हें जमीन पर ही लेटना पड़ता है।
सबसे गंभीर बात यह है कि अस्पताल के अंदर और आसपास आवारा कुत्तों, गायों और बैलों का जमावड़ा बना रहता है। कई बार कुत्तों को वार्डों में अंदर जाते हुए भी देखा गया है, जिससे मरीजों और स्टाफ की सुरक्षा खतरे में पड़ती है। वहीं, गाय और बैल अस्पताल परिसर में खुलेआम घूमते रहते हैं, शौच करते हैं और जगह-जगह गंदगी फैला देते हैं।
आश्चर्यजनक यह है कि इन सारी समस्याओं के बावजूद संबंधित जिम्मेदार अधिकारी पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। न तो कोई निरीक्षण हो रहा है और न ही किसी प्रकार की सफाई व्यवस्था। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन नतीजा शून्य रहा। अस्पताल स्टाफ भी खुद को असहाय महसूस करता है और व्यवस्था की लापरवाही का ठीकरा ऊपर बैठे अधिकारियों पर फोड़ता है।
मरीजों के परिजनों का कहना है कि बड़वारा अस्पताल में मरीज बीमारी से पहले गंदगी और संक्रमण से मरने के कगार पर पहुंच जाते हैं। कई बार तो ऐसा देखा गया है कि एक मरीज का इलाज चल रहा होता है और ठीक बगल में कुत्ते आराम फरमा रहे होते हैं। यह स्थिति न केवल शर्मनाक है, बल्कि इंसानियत पर भी सवाल खड़े करती है।
स्थानीय समाजसेवी संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने कई बार प्रशासन से अपील की, लेकिन सुधार के नाम पर कुछ भी ठोस नहीं हुआ। अस्पताल की यह दुर्दशा दर्शाती है कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति का घोर अभाव है। यह हाल तब है जब बड़वारा जैसे कस्बों के सरकारी अस्पताल ही ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए जीवन रेखा माने जाते हैं।
ग्रामीणों की यह भी मांग है कि बड़वारा अस्पताल का निरीक्षण कर उसकी व्यवस्था को सुधारने हेतु तत्काल सख्त कार्रवाई की जाए। सफाई कर्मचारियों की उपस्थिति सुनिश्चित हो, आवारा मवेशियों से अस्पताल को मुक्त किया जाए और मरीजों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएँ।
यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो यह लापरवाही एक बड़े जन स्वास्थ्य संकट का कारण बन सकती है। स्वास्थ्य विभाग, जिला प्रशासन और शासन को यह समझना होगा कि अस्पताल इलाज का स्थान है, संक्रमण और जानलेवा गंदगी का नहीं।
प्रधान संपादक:अज्जू सोनी,ग्रामीण खबर mp
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