उत्तरकाशी के धराली गांव में फटा कहर बनकर बादल, तेज बहाव ने उजाड़ा पूरा गांव, लोग रह गए हक्के-बक्के।
बिना चेतावनी आई तबाही में बह गई ज़िंदगी की बुनियादें,4 मौतें, कई लापता, सेना, SDRF और प्रशासन कर रहे राहत कार्य।
कटनी,ग्रामीण खबर MP:
उत्तराखंड की पर्वतीय घाटियों में प्रकृति एक बार फिर रौद्र रूप में सामने आई है। उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में सोमवार दोपहर बाद अचानक बादल फटने की घटना ने न केवल जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया, बल्कि पूरे गांव की रफ्तार और शांति को पल भर में निगल लिया। खीरगंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में घटित इस प्राकृतिक आपदा ने कई परिवारों की जिंदगियों को छिन्न-भिन्न कर दिया।
यह घटना लगभग दोपहर 1:30 बजे की बताई जा रही है। मौसम सामान्य था, लोग अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे। तभी अचानक तेज बिजली कड़कने लगी और घने काले बादल घाटी के ऊपर मंडराने लगे। कुछ ही मिनटों में मूसलाधार बारिश शुरू हुई, जिसके साथ मलबे और चट्टानों की भयावह गर्जना सुनाई दी। नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ा और देखते ही देखते उसने रास्ते में आए हर रुकावट को अपने साथ बहा लिया।
धराली गांव में बने लगभग एक दर्जन से अधिक होटल, होमस्टे, दुकानें और रिहायशी मकान चंद मिनटों में मलबे में तब्दील हो गए। सड़कें उखड़ गईं, पुल टूट गए, संचार नेटवर्क पूरी तरह ठप हो गया और गांव बाहरी दुनिया से कट गया।
स्थानीय लोग बताते हैं कि कई परिवारों को तो यह भी पता नहीं चला कि कब उनके परिजन इस सैलाब में बह गए। गांव की गलियों में सिर्फ तबाही का मंजर और लोगों की चीख-पुकार सुनाई दे रही है।
प्रशासन द्वारा जारी सूचना के अनुसार अब तक चार लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं, जबकि 40 से अधिक लोग अब भी लापता हैं। SDRF, NDRF और ITBP की टीमें राहत और बचाव कार्य में पूरी तत्परता से जुटी हैं। हेलीकॉप्टरों की मदद से घायलों को एयरलिफ्ट किया जा रहा है। सेना के जवान भी ग्रामीणों की मदद में लगे हुए हैं। अब तक करीब 20 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस त्रासदी को ‘गंभीर आपदा’ करार देते हुए सभी संबंधित एजेंसियों को 'वॉर फुटिंग' पर कार्य करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी पीड़ित को सहायता से वंचित नहीं रहने दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्थिति की जानकारी ली और हरसंभव मदद का भरोसा दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित अतिक्रमण, और अंधाधुंध निर्माण कार्यों ने हिमालयी क्षेत्र की नाजुक पारिस्थिति को खतरे में डाल दिया है। धराली जैसे शांत और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध गांव में इस प्रकार की आपदा प्रकृति की चेतावनी से कम नहीं मानी जा सकती।
धराली में रह रहे ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें अब भी विश्वास नहीं हो रहा कि उनका पूरा जीवन एक झटके में उजड़ गया। जिनके घर बचे हैं, वे बेसहारा लोगों को शरण दे रहे हैं। पीने के पानी, बिजली, दवाइयों और खाने की सामग्री का अभाव है। कई लोग अब भी मलबे में दबे होने की आशंका है।
बचाव कार्य में सबसे बड़ी चुनौती भारी मलबा और टूटी हुई सड़कों के कारण सामने आ रही है। गांव तक राहत सामग्री पहुंचाना मुश्किल हो रहा है। बावजूद इसके, प्रशासन युद्ध स्तर पर कार्य कर रहा है।
धराली की यह त्रासदी हमें यह सोचने पर विवश करती है कि प्रकृति के साथ संतुलन न बनाए रखने की कितनी भयानक कीमत समाज को चुकानी पड़ सकती है। आने वाले समय में यदि हिमालयी क्षेत्रों में सतर्कता, ठोस नीति निर्माण और जन-जागरूकता नहीं बढ़ाई गई, तो ऐसी आपदाएं सामान्य होती चली जाएंगी।
यह समय एकजुटता और सहानुभूति का है। देशभर से सहायता की आवश्यकता है ताकि पीड़ित परिवारों को दोबारा जीवन की सामान्य धारा में लौटाया जा सके। सरकार, प्रशासन, समाजसेवी संस्थाएं और आम जन – सभी को मिलकर धराली को फिर से बसाने के लिए आगे आना होगा।
धराली की गलियों में भले ही अभी सन्नाटा पसरा हो, लेकिन उम्मीद है कि एक दिन फिर वहां बच्चों की किलकारी गूंजेगी, लोग हँसते-गाते दिखाई देंगे और प्रकृति भी उस पर रहम करेगी।
ग्रामीण खबर MP-
जनमानस की निष्पक्ष आवाज
प्रधान संपादक:अज्जू सोनी |संपर्क:9977110734