मुख्यालय पटवारी दान सिंह के फर्जी सीमांकन,मृतकों के हस्ताक्षर और शासकीय भूमि कब्जे की जांच से उजागर हो सकते हैं प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कई राज।

 मुख्यालय पटवारी दान सिंह के फर्जी सीमांकन,मृतकों के हस्ताक्षर और शासकीय भूमि कब्जे की जांच से उजागर हो सकते हैं प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कई राज।

ढीमरखेड़ा में फर्जी सीमांकन कर कब्जा दिलाने, न्यायालय को गुमराह करने और दस्तावेजों की हेराफेरी जैसे गंभीर आरोपों से प्रशासन में मचा हड़कंप।

ढीमरखेड़ा,ग्रामीण खबर MP:

राजस्व विभाग के मुख्यालय पटवारी हल्का नंबर 36 के पटवारी दान सिंह पर गंभीर आरोपों की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के उपाध्यक्ष विवेक निधि रजक द्वारा की गई शिकायत में खुलासा हुआ है कि 25 मई 2025 को पटवारी द्वारा खसरा नंबर 141/3, रकबा 0.22 हेक्टेयर भूमि में से 1090 वर्ग फुट क्षेत्रफल का फर्जी सीमांकन कर खसरा नंबर 141/5, रकबा 0.01 हेक्टेयर जो शासकीय भू-जल नाला भूमि है, उसे निजी भूमि घोषित कर दिया गया।

यह सीमांकन चोरी-छुपे पैसे लेकर किया गया, जिसमें क्षेत्र के अन्य किसानों को किसी भी प्रकार की सूचना नहीं दी गई। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि सीमांकन दस्तावेजों में सभी किसानों के फर्जी हस्ताक्षर किए गए, जिनमें से कुछ तो मृतक हैं। यह तथ्य तब सामने आया जब शिकायतकर्ता ने तहसील कार्यालय से राजस्व प्रकरण क्रमांक 0069/अ-12/2025-26 की प्रतिलिपि निकलवाई।

इतना ही नहीं, यह मामला नया नहीं है। वर्ष 2017 में न्यायालय तहसीलदार ढीमरखेड़ा द्वारा पारित आदेश (प्रकरण क्रमांक 0016/अ-68/2017-18 दिनांक 7 दिसंबर 2017) के अनुसार गणेश राय द्वारा खसरा नंबर 141/5 पर स्थित 330 वर्ग फुट मकान शासकीय भू-जल नाला में निर्मित पाया गया था। न्यायालय ने उक्त निर्माण को अवैध घोषित करते हुए ₹1000 का जुर्माना लगाया और भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 248-A के अंतर्गत बेदखली का आदेश जारी किया था।

आश्चर्यजनक रूप से आज तक उस अवैध निर्माण पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, बल्कि पटवारी दान सिंह ने उसी भूमि को फर्जी रूप से सीमांकित कर जमुना बाई राय को भूमि स्वामी घोषित कर दिया। यह गंभीर प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का संकेत देता है।

शिकायत में यह भी बताया गया है कि खसरा नंबर 78, 262, 324, 407, 867, 794, 97 और 141/5 जैसी अन्य शासकीय भूमि पर भी अवैध कब्जे कराए गए हैं। आरोप है कि पटवारी द्वारा इन सभी मामलों में धन लेकर सीमांकन किया गया और अभी तक किसी के खिलाफ बेदखली आदेश जारी नहीं किए गए।

यदि इन सभी सीमांकनों की निष्पक्ष जांच की जाती है तो न केवल क्षेत्र के कई प्रभावशाली लोगों के नाम सामने आएंगे, बल्कि यह भी स्पष्ट होगा कि किस तरह एक ही हल्का क्षेत्र वर्षों से अवैध कार्यों का अड्डा बना हुआ है, जिसे प्रशासन की अनदेखी या मिलीभगत का भी समर्थन प्राप्त रहा है।

प्रकरण में भारतीय दंड संहिता की धाराएं 463 (जालसाजी), 464 (फर्जी दस्तावेज बनाना), 467 (महत्वपूर्ण दस्तावेजों की जालसाजी) और 471 (फर्जी दस्तावेज का उपयोग करना) जैसी धाराएं लागू होती हैं, जिनके तहत दोष सिद्ध होने पर कठोर दंड निर्धारित है।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या प्रशासन इस प्रकरण को गंभीरता से लेकर निष्पक्ष जांच कराएगा या यह मामला भी अन्य सरकारी भ्रष्टाचार की तरह फाइलों में दबा दिया जाएगा। क्षेत्र के नागरिकों और सामाजिक संगठनों की मांग है कि पटवारी दान सिंह को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर न्यायिक जांच की जाए, जिससे भविष्य में इस प्रकार के फर्जीवाड़ों पर अंकुश लगाया जा सके।

ग्रामीण खबर MP- 

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