जब जंगल के रखवाले चैन की नींद सो रहे थे… तब शिकारी कर रहे थे बाघों का बेरहमी से शिकार!
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों के शिकार की बड़ी घटना, जिम्मेदार प्रबंधन बाघों के संरक्षण में नाकाम, शिकार के बाद अब तलाश रहे शिकारी।
बंधवगढ़,ग्रामीण खबर mp:
हर वर्ष 29 जुलाई को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। इस दिन वन्यजीव संरक्षण, विशेषकर बाघों की सुरक्षा को लेकर अभियान चलाए जाते हैं, जागरूकता फैलाई जाती है और यह विश्वास दिलाया जाता है कि भारत जैसे देश बाघों के संरक्षण में अग्रणी हैं। लेकिन इस वर्ष का अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (बीटीआर) के लिए शर्मनाक सवालों और प्रबंधन की नाकामी का दस्तावेज बन गया है।
जब देशभर में बाघों को बचाने की बात हो रही थी, उसी समय बीटीआर में कम से कम एक नहीं, बल्कि दो बाघों को शिकारी बेरहमी से मार चुके थे। यह घटना न सिर्फ एक गंभीर वन्यजीव अपराध है, बल्कि पूरे संरक्षण तंत्र की पोल खोलने वाला मामला बनकर उभरा है।
कैसे हुआ खुलासा?
बाघों के शिकार की खबर सबसे पहले मुखबिर के जरिए वन विभाग तक पहुँची। उसके बाद बीटीआर की धमोखर रेंज अंतर्गत ग्राम रोहनिया में दबिश दी गई। यहां हरदुल बैगा नामक व्यक्ति के घर से बाघ के जबड़े, 13 नाखून, एक कैनाइन (दांत), और तीन अन्य दांत बरामद किए गए।
पूछताछ में हरदुल ने कबूल किया कि उसने और उसके चार साथियों ने दो बाघों का शिकार किया है। अब तक तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि दो फरार हैं। गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के लिए कोर्ट से कस्टडी भी ली गई है।
यह सिर्फ शिकार नहीं, संरक्षण व्यवस्था पर तमाचा है:
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में सैकड़ों की संख्या में कर्मचारी, वन रक्षक, फील्ड स्टाफ तैनात हैं। इसके बावजूद यदि किसी शिकारी को संरक्षित क्षेत्र में प्रवेश करने, करंट बिछाने, बाघ को मारने, अवशेष ले जाने और बेचने की तैयारी तक का समय मिल जाए, तो यह घटना अकेले शिकार नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता है।
क्या है अंदर की सच्चाई?
स्थानीय सूत्रों और चर्चाओं की मानें तो बीटीआर का मैदानी अमला बाघ संरक्षण से भटक चुका है। अब उनका फोकस रिसॉर्ट संचालकों, वीआईपी मेहमानों, और बड़े कारोबारियों को सुविधा पहुँचाने में ज्यादा है। आरोप है कि फील्ड डायरेक्टर अनुपम सहाय और डिप्टी डायरेक्टर पीके वर्मा जैसे वरिष्ठ अधिकारी भी अब संरक्षण कार्यों की जगह राजनीतिक व सामाजिक संबंधों को मजबूत करने में लगे हैं।
एनटीसीए की गाइडलाइन की धज्जियाँ उड़ाते हुए,बाघों के सुरक्षित इलाकों में निजी लोगों को प्रवेश दिलवाना,जिप्सी की मुफ्त सुविधा, और वीआईपी ट्रीटमेंट देने जैसी बातें अब आम हो चुकी हैं।
बाघ संरक्षण की प्राथमिकताएं उलट गईं,टाइगर रिजर्व की मूल प्राथमिकता होनी चाहिए –
1.बाघों की सुरक्षा
2.आवास की रक्षा
3.मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकना
4.जैव विविधता का संरक्षण
5.पारिस्थितिक पर्यटन
लेकिन वर्तमान हालात में लगता है कि बीटीआर प्रबंधन ने 5वीं प्राथमिकता को पहली बना लिया है, और बाकी चार सिर्फ कागजों में रह गई हैं।
अधिकारी का बयान भी संदिग्ध:
फील्ड डायरेक्टर अनुपम सहाय ने मामले की पुष्टि करते हुए कहा “बफर जोन के रोहनिया गांव में हरदुल बैगा को बाघ के अवशेष के साथ गिरफ्तार किया गया है। तीन आरोपियों की गिरफ्तारी हुई है, दो फरार हैं। पूछताछ में विद्युत करंट से शिकार की बात कही गई है, लेकिन जांच रिपोर्ट के बाद ही पूरी पुष्टि की जा सकेगी।”
हालांकि ये बयान ही यह दिखाता है कि प्रबंधन अब भी पूरी जानकारी जुटाने की स्थिति में नहीं है, जबकि अपराध घटित हुए कई दिन बीत चुके हैं।
शिकार हुआ, शिकारी पकड़ा गया,पर सवाल बरकरार:
अगर शिकारी इतने लंबे समय से सक्रिय थे तो उनकी जानकारी बीटीआर को पहले क्यों नहीं मिली?
करंट बिछाने, बाघ के मरने और उसके अंगों को ले जाने की पूरी प्रक्रिया में प्रबंधन क्या कर रहा था?
– क्या यह संभव है कि मैदानी कर्मचारियों या उच्च अधिकारियों की मिलीभगत न हो?
– अगर नहीं, तो फिर इतनी बड़ी चूक क्यों और कैसे हुई?
निष्कर्ष: संकट में है जंगल का राजा:
यह घटना केवल एक शिकार नहीं,बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की विश्वसनीयता पर सवाल है। यह जंगल बाघों के लिए जाना जाता है, देश के लिए गौरव का प्रतीक रहा है। लेकिन अगर प्रबंधन समय रहते चेत नहीं पाया, तो यह पहचान ही खत्म हो सकती है।
भारत सरकार का "प्रोजेक्ट टाइगर", "एनटीसीए", और लाखों का बजट तब तक सार्थक नहीं हो सकते जब तक **मैदानी अमला जवाबदेह न बने और अधिकारी संरक्षण के मूल कर्तव्य पर वापस न लौटें।
प्रधान संपादक:अज्जू सोनी,ग्रामीण खबर MP
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