मालेगांव ब्लास्ट मामले में सभी आरोपी बरी,17 वर्षों के बाद न्याय की राह आसान।
साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित समेत सातों आरोपियों को पूरी तरह दोषमुक्त; उमा भारती ने दी बधाई, विपक्ष व पीड़ित परिवारों में गहरा असंतोष।
मुंबई,ग्रामीण खबर mp:
31 जुलाई 2025 को विशेष एनआईए अदालत ने 2008 में मालेगांव में हुए बम हमले के सभी सात आरोपियों को अदालत में पेश किए गए सुबूतों की कमी और अपर्याप्त प्रमाणों के आधार पर दोषमुक्त कर दिया है। इस फैसले को अभूतपूर्व माना गया क्योंकि इसमें साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।
अदालत ने क्या कहा:
अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ने आरोपों को सिद्ध करने के लिए विश्वसनीय और ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए। विशेष न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने स्पष्ट किया कि "केवल संदेह के आधार पर व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता"। उन्होंने अभियुक्तों को संशय का लाभ देते हुए बरी करने का निर्णय सुनाया।
आरोपियों की प्रतिक्रिया:
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कानूनी लड़ाई के बाद भावनात्मक पल साझा किए और इसे "हिंदुत्व की विजय" बताया। उन्होंने कहा कि "भगवा का सत्य विजयी हुआ" और न्याय व्यवस्था पर उनका विश्वास पुनः मजबूत हुआ। लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने कहा कि उन्हें देशप्रेम करने पर मानसिक एवं सामाजिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी, लेकिन वह न्याय प्रक्रिया पर विश्वास बनाए रखे हुए थे।
उमा भारती की प्रतिक्रिया:
गृह राज्यसभा नेता एवं वरिष्ठ भाजपा नेता उमा भारती ने साध्वी प्रज्ञा को बधाई दी और कहा कि कोर्ट ने उन्हें "साबित निर्दोष" कर दिखाया। उनका कहना था कि आज न्याय की जीत हुई और पीड़ितों को इस फैसले पर भरोसा लौटना चाहिए।
विपक्षी और पीड़ितों की प्रतिक्रिया:
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि छह नमाज़ियों की हत्या हुई थी, उन्हें निशाना बनाया गया — यह सवाल कि दोषी कौन हैं, आज भी अधूरा है। उन्होंने अभियोजन और जांच कार्रवाई की निष्पक्षता पर सवाल उठाए और पूछा कि क्या सरकार इसे उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
पीड़ित परिवारों ने भी गहरा दुःख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि 17 वर्षों से न्याय की आस लिए बैठे थे, लेकिन अब उनका विश्वास टूट गया है। एक परिवार के सदस्य ने यह भी कहा कि उन्हें फिर कभी शांति नहीं मिलेगी।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया:
भाजपा और शिवसेना नेताओं ने निर्णय की ओर झुकाव किया। भाजपा नेता ने कहा कि दोषी ठहराए गए आरोपियों पर राजनीतिक रूप से प्रहार किया गया था, जो अब सिद्ध हुआ। शिवसेना ने कहा कि "सत्य की जीत हुई", जबकि कांग्रेस सांसदों ने न्याय व्यवस्था पर भरोसा बनाए रखने की अपील की।
कानूनी व सामाजिक मायने:
यह फैसला सिर्फ कानूनी मोर्चे पर महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं के लिए भी नए प्रश्न लेकर आया है। भगवा आतंकवाद की थीसिस, जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता, और धार्मिक विचारधारा से प्रभावित पुलिस-पक्ष की गतिविधियों की समीक्षा का विषय बन गया है।
17 वर्षों तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दस्तावेज में बरी करने का निर्णय न्याय व्यवस्था को एक संवेदनशील मुकाम पर खड़ा करता है। अब प्रमुख सवाल यह है कि क्या केंद्र या राज्य सरकार इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे, या मामला यहीं समाप्त हो जाएगा।
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