खितौला सिहोरा में मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ससंघ का हुआ भव्य स्वागत, धर्म ध्वजा और पाद प्रक्षालन के साथ हुआ मंगल प्रवेश।
धर्म सभा में मुनिश्री ने कर्म बंधन से मुक्ति हेतु धर्म साधना पर दिया जोर, नवयुवकों को माता-पिता की आज्ञा पालन का लिया संकल्प।
खितौला:
आज खितौला बाज़ार सिहोरा का वातावरण आध्यात्मिक उल्लास से सराबोर हो उठा जब मुनि पुंगव श्री सुधा सागर महाराज का ससंघ आगमन हुआ। मुनिश्री के खितौला में प्रवेश के अवसर पर पेट्रोल पंप तिराहे पर जैन समाज के नवयुवकों, महिलाओं तथा पुरुषों ने उत्साहपूर्वक उनकी भव्य अगवानी की। धर्म ध्वजा के साथ गूंजते बैंड-बाजों की सुमधुर ध्वनि और श्रद्धालुओं की पुष्प वर्षा से वातावरण आनंदमय हो गया। मार्ग में विभिन्न स्थानों पर श्रद्धालुओं द्वारा मुनिश्री का पाद प्रक्षालन कर पुण्य लाभ प्राप्त किया गया।
खितौला स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर प्रांगण में मुनिश्री के चरण कमलों का पाद प्रक्षालन, चरण वंदन एवं अभिनंदन कर अत्यंत श्रद्धा भाव से स्वागत किया गया। इसके पश्चात विशाल धर्म सभा का आयोजन हुआ जिसमें मुनि श्री सुधा सागर जी ने अपने ज्ञानामृत से श्रद्धालुओं को अभिसिंचित किया।
मुनिश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि यह संसार कर्म के आधीन है। प्रत्येक जीव अपने-अपने कर्मों के अनुसार इस संसार रूपी रंगमंच पर अभिनय कर रहा है। उन्होंने कहा कि यदि हमें इस जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा पाना है तो हमें धर्म की ओर उन्मुख होना होगा। धर्म ही वह माध्यम है जिससे हम अपने कर्मों के प्रभाव को कम कर सकते हैं और आत्मा को शुद्ध बना सकते हैं।
रामायण का उदाहरण देते हुए मुनिश्री ने कहा कि रावण अत्यंत विद्वान और शक्तिशाली था, किंतु वह भी अपने कर्मों के अधीन था, जिसके कारण उसने सीता जी का हरण कर लिया और अंततः विनाश को प्राप्त हुआ। व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो, यदि वह धर्म से विमुख हो जाए तो उसका पतन निश्चित है।
नवयुवकों को विशेष रूप से संबोधित करते हुए मुनिश्री ने उन्हें प्रेरित किया कि वे अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करें और उनके बताए मार्ग पर चलें। उन्होंने कहा कि जो युवक अपने माता-पिता की सेवा करता है और उनकी बातों का सम्मान करता है, वह जीवन में कभी असफल नहीं होता। मुनिश्री ने उपस्थित युवाओं से संकल्प लेने का आग्रह किया कि वे अपने जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जो उनके माता-पिता की आज्ञा के विपरीत हो। उन्होंने कहा कि जीवन में धर्म कार्यों के प्रति भावना को उच्च बनाए रखें, तभी जीवन सच्चे अर्थों में सफल और आनंदमय बन सकता है।
अपने प्रवचन के अंतिम चरण में मुनिश्री ने कहा कि “अन्न का कण और मुनि की शरण” ये दोनों अत्यंत अमूल्य हैं। इनका दुरुपयोग नहीं बल्कि सदुपयोग करना चाहिए। अन्न का अपमान और मुनिराजों की सेवा में कमी हमें पाप के भागी बना सकती है, अतः हमें इन दोनों का सम्मान करना चाहिए।
मुनिश्री की आहार चर्या खितौला में ही सम्पन्न हुई। इस पुण्य अवसर पर मुनि श्री को आहार देने का सौभाग्य खितौला निवासी महेंद्र कुमार एवं मनोज कुमार जैन के परिवार को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर श्रद्धालुओं में उत्साह और भक्ति का अनुपम संगम देखने को मिला।
शाम 6 बजे मंदिर प्रांगण में मुनिश्री के शंका समाधान कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें समाजजनों ने विभिन्न आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया। इस अवसर पर श्रद्धालु देर शाम तक धर्ममय वातावरण में लीन रहे।