गंगा नदी का भविष्य संकट में,वैज्ञानिकों ने जताई गहरी चिंता,ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने, प्रदूषण की बढ़ती मार और नदी तटों के कटाव ने जीवनदायिनी धारा का अस्तित्व संकट में डाला।

 गंगा नदी का भविष्य संकट में,वैज्ञानिकों ने जताई गहरी चिंता,ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने, प्रदूषण की बढ़ती मार और नदी तटों के कटाव ने जीवनदायिनी धारा का अस्तित्व संकट में डाला।

गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक खतरे की लहर, जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक कचरा, प्लास्टिक प्रदूषण और बांधों ने गंगा की धार को कमजोर किया, नमामि गंगे मिशन उम्मीद की किरण।

कटनी,ग्रामीण खबर MP:

भारत की सबसे पवित्र और जीवनदायिनी नदी गंगा आज गंभीर संकट से जूझ रही है। करोड़ों लोगों की आस्था, आजीविका और जीवन का आधार मानी जाने वाली यह नदी अब अस्तित्व के खतरे का सामना कर रही है। वैज्ञानिक शोध और पर्यावरण विशेषज्ञों की ताज़ा रिपोर्टें साफ़ संकेत दे रही हैं कि अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो आने वाले दशकों में गंगा का प्रवाह और उसकी पवित्रता दोनों ही गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।

गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर पिछले चालीस वर्षों में लगभग दस प्रतिशत सिकुड़ चुका है। यह बदलाव केवल हिमालय के बर्फीले इलाकों में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत के जल चक्र को प्रभावित कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फ समय से पहले पिघल रही है और नदी का पीक फ्लो अब अगस्त की जगह जुलाई में दर्ज किया जाने लगा है। इसका सीधा असर खेती, जलविद्युत परियोजनाओं और भूजल स्तर पर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में यदि ग्लेशियरों का यही हाल रहा तो गंगा का जल प्रवाह बेहद कम हो जाएगा और यह लाखों लोगों की प्यास बुझाने में सक्षम नहीं रहेगी।

प्रदूषण भी गंगा की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। प्रतिदिन लाखों लीटर सीवेज और औद्योगिक कचरा बिना उपचार के सीधे गंगा में बहा दिया जाता है। इसके अलावा प्लास्टिक और रसायनों का जमाव नदी की जैव विविधता को नष्ट कर रहा है। गंगा डॉल्फिन जैसी दुर्लभ प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुकी हैं। प्रदूषण का असर सिर्फ़ नदी तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे मानव स्वास्थ्य पर भी गहरा खतरा मंडरा रहा है।

गंगा की धारा को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए बड़े-बड़े बांधों ने भी स्थिति को जटिल बना दिया है। फरक्का बांध और अन्य जल परियोजनाओं ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किया, जिसके कारण पश्चिम बंगाल और बिहार के कई जिलों में ज़मीन कटाव की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। हज़ारों हेक्टेयर उपजाऊ भूमि नदी में समा चुकी है और लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं। बाढ़ की तीव्रता भी पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है।

इतिहास यह भी बताता है कि लगभग ढाई हज़ार साल पहले एक भीषण भूकंप ने गंगा का रुख बदल दिया था। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि भविष्य में इस प्रकार का कोई बड़ा भूकंप आया तो नदी की धारा एक बार फिर बदल सकती है और इसके प्रभावों की कल्पना करना भी कठिन होगा।

इन तमाम संकटों के बीच केंद्र सरकार ने गंगा को बचाने के लिए नमामि गंगे अभियान की शुरुआत की है। इसके तहत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, नदी किनारों का संरक्षण, औद्योगिक अपशिष्ट नियंत्रण और जैव विविधता को बढ़ावा देने जैसी योजनाएँ चलाई जा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस अभियान की सराहना हो रही है और इसे एक आदर्श मॉडल माना जा रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गंगा किनारे अवैध खनन और प्रदूषणकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं, जिसे नदी संरक्षण के प्रयासों के लिए सकारात्मक कदम माना जा रहा है।

गंगा केवल एक नदी नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता और आध्यात्मिकता की धारा है। करोड़ों लोग अपनी आस्था, जीवन और जीविका के लिए इस पर निर्भर हैं। यदि समय रहते ठोस और कठोर कदम नहीं उठाए गए तो यह जीवनरेखा धीरे-धीरे दम तोड़ सकती है। आने वाली पीढ़ियों को गंगा उसी स्वरूप में मिले या न मिले, यह आज लिए गए हमारे निर्णयों पर निर्भर करेगा।

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