गया जी में श्राद्ध से सात पीढ़ियों तक के पितरों को मिलता है मोक्ष, पितृपक्ष में उमड़ती लाखों श्रद्धालुओं की भीड़।

 गया जी में श्राद्ध से सात पीढ़ियों तक के पितरों को मिलता है मोक्ष, पितृपक्ष में उमड़ती लाखों श्रद्धालुओं की भीड़।

गयासुर की कथा से जुड़ी है मान्यता, भगवान विष्णु ने इस भूमि को दिया था मोक्षभूमि का वरदान, फल्गु नदी, अक्षयवट और विष्णुपद मंदिर पर पिंडदान का विशेष महत्व।

कटनी,ग्रामीण खबर MP:

बिहार का गया धार्मिक दृष्टि से संपूर्ण भारत में सबसे पवित्र स्थलों में गिना जाता है। यहाँ श्राद्ध और पिंडदान करने की परंपरा इतनी प्राचीन है कि इसका उल्लेख वेदों और पुराणों में भी मिलता है। मान्यता है कि गया जी में किया गया श्राद्ध केवल पितरों को तृप्त ही नहीं करता बल्कि उन्हें सीधे मोक्ष भी प्रदान करता है। यही कारण है कि देश और दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष पितृपक्ष के दौरान यहाँ पहुँचते हैं और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं।

गया जी का महत्व गयासुर की कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि गयासुर नामक असुर ने घोर तपस्या कर देवताओं को भयभीत कर दिया था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वरदान माँगा कि वह अपना शरीर धरती के रूप में समर्पित कर दे ताकि मनुष्य जाति अपने पितरों का श्राद्ध कर उन्हें मोक्ष दिला सके। गयासुर ने सहर्ष यह वरदान दे दिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने चरण इस पवित्र भूमि पर रखकर इसे मोक्षभूमि घोषित कर दिया। तभी से गया जी को पितरों की मुक्ति का द्वार माना जाने लगा।

धार्मिक मान्यता है कि गया जी में किया गया पिंडदान सात पीढ़ियों तक के पितरों को मोक्ष प्रदान करता है। इतना ही नहीं, यहाँ पिंडदान करने से श्राद्धकर्ता को भी पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके जीवन से पितृदोष का निवारण होता है।

गया जी में पिंडदान के लिए कई विशेष स्थल चिन्हित हैं। इनमें फल्गु नदी, अक्षयवट वृक्ष, विष्णुपद मंदिर और प्रेतशिला प्रमुख हैं। फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने का विशेष महत्व है। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के चरणचिह्न दर्शनों का लाभ मिलता है। अक्षयवट के नीचे किया गया पिंडदान कभी निष्फल नहीं होता, ऐसी मान्यता है। वहीं प्रेतशिला पर पिंडदान करने से मृत आत्माओं की मुक्ति होती है।

शास्त्रों के अनुसार, अन्य स्थानों पर किया गया श्राद्ध धीरे-धीरे पितरों तक पहुँचता है लेकिन गया जी में किया गया श्राद्ध तत्काल प्रभाव से पितरों तक पहुँचता है और उन्हें मोक्ष प्रदान करता है। यही कारण है कि इसे पितरों का काशी कहा जाता है।

महाभारत और विभिन्न पुराणों में गया श्राद्ध का महत्व वर्णित है। महाभारत में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को गया श्राद्ध का महत्व समझाते हुए इसे पितृमोक्ष का सर्वोत्तम स्थान बताया है।

हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या से शुरू होकर पितृपक्ष की समाप्ति तक गया जी में विशाल मेला लगता है। इस दौरान देश ही नहीं बल्कि नेपाल, भूटान, श्रीलंका और अन्य देशों से भी लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं। गलियों और मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। घाटों पर पंडे-ब्राह्मण विधि-विधान से पिंडदान कराते हैं और श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए आहुति देते हैं। पूरे शहर का वातावरण धार्मिक आस्था और श्रद्धा से सराबोर हो जाता है।

गया जी का पितृपक्ष मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। इन दिनों यहाँ होटल, धर्मशालाओं और लॉज में जगह पाना कठिन हो जाता है। सड़क से लेकर मंदिरों तक हर ओर आस्था का सैलाब दिखाई देता है।

श्रद्धालुओं का मानना है कि गया जी में पिंडदान के बिना श्राद्ध पूर्ण नहीं होता। यहाँ आकर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष और वंशजों को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं और इसे जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य मानते हैं।

गया जी का श्राद्ध केवल एक धार्मिक क्रिया न होकर भारतीय संस्कृति और आस्था का जीवंत प्रतीक है। पितरों की आत्मा की मुक्ति और सात पीढ़ियों तक की शांति के लिए गया जी में किया गया पिंडदान न केवल भारतीय जनमानस की आस्था का केंद्र है बल्कि यह स्थल पूरे विश्व में अद्वितीय और अप्रतिम है।

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