भगवान जगन्नाथ के मेले में सीमित साधनों के बावजूद सीहोद गांव के युवक ने हजारों श्रद्धालुओं को कराया निःस्वार्थ भाव से भोजन।
विदिशा जिले के मनोरा मेले में खुशाल सिंह राजपूत द्वारा बिना प्रचार और लाभ की इच्छा से की गई सेवा कार्य ने दिलों को छू लिया।
विदिशा,ग्रामीण खबर mp:
आज के समय में समाज सेवा एक ऐसा शब्द बन गया है जिसका इस्तेमाल बहुत से लोग केवल दिखावे के लिए करते हैं। कोई राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से समाज सेवा करता है, कोई अपना नाम चमकाने के लिए, तो कोई आर्थिक सहायता या अन्य व्यक्तिगत स्वार्थ साधने के लिए। किंतु इसी समाज में कुछ ऐसे विरले लोग भी हैं जो सच्चे अर्थों में सेवा को धर्म मानते हैं और निःस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं।
ऐसा ही एक प्रेरणादायी उदाहरण देखने को मिला मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के एक छोटे से गांव सीहोद में, जहां रहने वाले युवक खुशाल सिंह राजपूत ने भगवान जगन्नाथ के पावन मेले के अवसर पर हजारों लोगों के लिए भोजन भंडारे की निःस्वार्थ व्यवस्था की। उल्लेखनीय बात यह है कि सीहोद गांव एक छोटा, साधारण गांव है, जिसका नाम बहुत से लोग शायद जानते भी नहीं होंगे, लेकिन इस गांव के एक युवा ने जो कार्य कर दिखाया, वह पूरे समाज के लिए प्रेरणा बन गया।
मनोरा में प्रतिवर्ष भगवान जगन्नाथ का विशाल मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस बार जब मेला प्रारंभ हुआ, तब गर्मी और भीड़ के बीच बहुत से लोग भोजन की तलाश में परेशान होते देखे गए। ऐसे में खुशाल सिंह राजपूत ने अपने सीमित संसाधनों और सामर्थ्य के बावजूद भोजन भंडारे की व्यवस्था की, जिसमें पूड़ी, सब्जी और अचार का स्वादिष्ट एवं पवित्र प्रसाद श्रद्धालुओं को नि:शुल्क परोसा गया।
इस सेवा कार्य में उनके गांव के अन्य युवा, महिलाएं और बुजुर्ग भी निःस्वार्थ भाव से जुटे रहे। किसी ने आटा गूंथा, किसी ने पूड़ियां तलीं, तो कोई भोजन परोसने में सहयोग करता रहा। उल्लेखनीय है कि किसी ने भी इस कार्य के लिए मेहनताना नहीं लिया। पूरा माहौल सेवा, भक्ति और सौहार्द से परिपूर्ण था।
खुशाल सिंह स्वयं लगातार गर्मी और भीड़ के बीच भोजन परोसते रहे। जब उन्होंने देखा कि भोजन ग्रहण करने के बाद लोगों के चेहरों पर तृप्ति और संतोष की झलक है, तो उनके भीतर सेवा का उत्साह और भी बढ़ गया। छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी ने इस सेवा के लिए आशीर्वाद दिया और सच्चे मन से कहा कि यह भोजन उन्हें किसी दुकान या होटल में नहीं, बल्कि भगवान के प्रसाद के रूप में मिला है।
इस पूरे आयोजन में न कोई दिखावा था, न मंच, न बैनर और न ही किसी तरह का प्रचार। सेवा की भावना इतनी गहरी और सच्ची थी कि वहां उपस्थित हर व्यक्ति अभिभूत हो उठा। जब हमने स्वयं भी उस भंडारे में भोजन ग्रहण किया, तो वह स्वाद और अनुभूति किसी बड़े आयोजन से कहीं अधिक संतोषजनक और आध्यात्मिक प्रतीत हुई।
खुशाल सिंह ने बातचीत में बताया कि यह सेवा उन्होंने केवल भगवान की कृपा और प्रेरणा से की है। उनके अनुसार, सेवा में जो आनंद है, वह किसी पुरस्कार या प्रशंसा से कहीं ऊपर है। उन्होंने कहा कि वे इस कार्य को हर वर्ष करते रहेंगे और यदि अन्य लोग भी इसमें सहयोग करना चाहें, तो उनका स्वागत है, लेकिन शर्त यह होगी कि सेवा बिना किसी स्वार्थ के ही की जाए।
इस पुण्य कार्य के समय जिला जनसंपर्क अधिकारी बी.डी. अहिरवाल एवं उनका परिवार भी वहां उपस्थित था। उन्होंने भी इस निःस्वार्थ सेवा की मुक्तकंठ से सराहना की और कहा कि यदि समाज में ऐसे लोग बढ़ें, तो न केवल धार्मिक आयोजनों की गरिमा बढ़ेगी, बल्कि सामाजिक समरसता और करुणा की भावना भी विकसित होगी।
इस आयोजन में न तो किसी प्रकार की अव्यवस्था हुई और न ही भोजन सामग्री की कोई कमी महसूस हुई। श्रद्धालुओं का कहना था कि यह सब भगवान जगन्नाथ की कृपा और ऐसे सेवाभावी युवाओं के कारण संभव हो सका है, जो आज भी सच्चे मन से समाज की सेवा करना जानते हैं।
यह घटना एक बार फिर यह सिद्ध करती है कि जब सेवा भावना सच्ची हो और मन में केवल दूसरों के कल्याण का भाव हो, तो सीमित साधनों में भी बड़े कार्य संपन्न हो सकते हैं। भगवान जगन्नाथ की कृपा से यह कार्य पूरी श्रद्धा, निष्ठा और संतोषपूर्वक संपन्न हुआ।
इस प्रकार का आयोजन समाज के उन युवाओं के लिए उदाहरण है जो केवल नाम या प्रसिद्धि के लिए कार्य करते हैं। खुशाल सिंह राजपूत जैसे लोगों को देखकर समाज को यह सीख मिलती है कि निस्वार्थ सेवा ही सच्चा धर्म है, और ऐसे लोगों को ईश्वर स्वयं शक्ति और अवसर प्रदान करता है।
ग्रामीण खबर एमपी, विदिशा
जिला सह ब्यूरो चीफ–मायावती अहिरवार