एसीसी अडानी सीमेंट में मजदूरों की मौत का सिलसिला जारी, परिजनों ने शव रखकर किया प्रदर्शन।
उपचार सुविधा के अभाव में जा रही मजदूरों की जान, परिजनों को मिला 4 लाख का मुआवजा
कैमोर,ग्रामीण खबर MP:
कटनी जिले के कैमोर स्थित एसीसी अडानी सीमेंट प्लांट एक बार फिर से सवालों के घेरे में है। कंपनी में कार्यरत मजदूरों की लगातार हो रही मौतें अब चिंता का गंभीर विषय बन चुकी हैं। बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाली यह औद्योगिक इकाई, जो जिले में रोजगार का एक बड़ा स्रोत मानी जाती है, उसी के श्रमिक अब अपनी सुरक्षा और स्वास्थ्य के अधिकारों से वंचित दिखाई दे रहे हैं।
हालिया घटना में कंपनी के प्रोजेक्ट वर्क से जुड़े एक ठेका श्रमिक रामबहोरी दहिया, उम्र 45 वर्ष, की ड्यूटी के दौरान अचानक तबीयत बिगड़ गई। जानकारी के अनुसार रामबहोरी को काम करते समय सीने में तेज दर्द की शिकायत हुई, जिसके बाद उन्हें तत्काल विजयराघवगढ़ सिविल हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन वहां पहुंचते ही डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
इस दुखद घटना के बाद मृतक के परिजनों का आरोप है कि कंपनी परिसर में प्राथमिक उपचार की कोई सुविधा नहीं है, जिससे समय पर चिकित्सा नहीं मिल पाई और इसी कारण रामबहोरी की जान चली गई। परिजनों ने इस लापरवाही के विरोध में कंपनी के मुख्य गेट के सामने मृतक का शव रखकर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया, जो रातभर चलता रहा। परिजन कंपनी प्रबंधन से तत्काल मुआवजे और उचित स्वास्थ्य व्यवस्था की मांग कर रहे थे।
प्रदर्शन के दौरान परिजनों ने बताया कि यह पहली बार नहीं है जब किसी मजदूर की मृत्यु के बाद भी कंपनी ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई। कुछ ही दिन पूर्व ऑन ड्यूटी सिक्योरिटी गार्ड की भी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, और तब भी समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण उसकी जान गई थी। इन घटनाओं से यह साफ जाहिर होता है कि कंपनी में प्राथमिक चिकित्सा की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है और श्रमिकों की जान भगवान भरोसे छोड़ दी गई है।
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि मृतक की मौत के बाद भी एसीसी प्रबंधन ने सुबह तक कोई संवाद स्थापित नहीं किया, जिससे आक्रोश और अधिक बढ़ गया और प्रदर्शन उग्र हो गया। आखिरकार, भारी दबाव और जन आक्रोश के चलते एसीसी प्रबंधन ने मृतक के परिजनों को चार लाख रुपये की मुआवजा राशि देने पर सहमति जताई, तब जाकर स्थिति थोड़ी सामान्य हो सकी।
स्थानीय लोगों और श्रमिक संगठनों का कहना है कि इतनी बड़ी औद्योगिक इकाई में न तो कोई स्थायी स्वास्थ्य केंद्र है और न ही प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ, जिससे किसी भी आपात स्थिति में मजदूरों को मदद मिल सके। कंपनी का ध्यान केवल उत्पादन पर केंद्रित है जबकि श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकारों की पूरी तरह अनदेखी की जा रही है।
प्रशासन और श्रम विभाग की भी इस पूरे मामले में भूमिका पर सवाल उठते हैं। यदि समय-समय पर निरीक्षण और निगरानी होती, तो शायद कंपनी को श्रमिक हितों की अनदेखी करने की छूट न मिलती। अब आवश्यक है कि जिला प्रशासन और संबंधित विभाग इस मामले में संज्ञान लें और कंपनी को श्रमिकों के लिए समुचित स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने के निर्देश दें।
श्रमिक संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि कंपनी में मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था नहीं की गई और मृतक के परिवार को दी गई सहायता के अलावा स्थायी समाधान नहीं निकाला गया, तो आंदोलन और व्यापक रूप से होगा।
यह घटना फिर से इस बात की याद दिलाती है कि जब तक श्रमिकों को उनका अधिकार नहीं मिलेगा, तब तक ‘विकास’ की तस्वीर अधूरी रहेगी। उत्पादन की बुनियाद में जिन हाथों का पसीना है, अगर उन्हें सुरक्षा और सम्मान नहीं मिला, तो ऐसे विकास का क्या मूल्य?