दो साल पहले स्वीकृति के बावजूद अब तक नहीं बना आदिवासी बालिका छात्रावास, सिलौंडी क्षेत्र की बेटियों का भविष्य अधर में।
जिला पंचायत सदस्य कविता पंकज राय ने कराई थी 2.60 करोड़ की स्वीकृति, भूमि चयन के बाद भी नहीं शुरू हुआ निर्माण कार्य।
सिलौंडी,ग्रामीण खबर MP:
सिलौंडी क्षेत्र की आदिवासी बालिकाओं के लिए शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहल के तहत दो साल पूर्व स्वीकृत आदिवासी बालिका छात्रावास भवन आज भी निर्माण की प्रतीक्षा में है। यह भवन उन सैकड़ों बालिकाओं के लिए जीवन बदलने वाला अवसर हो सकता था जो कक्षा 8 के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उचित सुविधा और सुरक्षित वातावरण के अभाव में शिक्षा बीच में छोड़ने को विवश हैं।
जिला पंचायत सदस्य कविता पंकज राय द्वारा 11 दिसंबर 2023 को इस छात्रावास भवन के लिए 2 करोड़ 60 लाख रुपये की राशि स्वीकृत कराई गई थी। उनका उद्देश्य था कि सिलौंडी क्षेत्र की आदिवासी बालिकाएं भी कक्षा 9 से 12 तक की पढ़ाई निर्बाध रूप से कर सकें। लेकिन आज, जब स्वीकृति को दो वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, भवन निर्माण की दिशा में एक भी ईंट नहीं रखी गई है।
कविता पंकज राय ने बताया कि सिलौंडी में उपयुक्त भूमि उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्होंने नेगाई ग्राम में लगभग तीन एकड़ भूमि का चयन कराया था, ताकि आने वाले वर्षों में यदि छात्राओं की संख्या बढ़े तो उनके लिए भी पर्याप्त स्थान उपलब्ध रहे। उन्होंने कहा कि वर्तमान योजना में 150 बालिकाओं के लिए छात्रावास प्रस्तावित है, लेकिन भविष्य में यह संख्या 500 तक पहुँच सकती है। ऐसे में एक सुव्यवस्थित, सुरक्षित और सुविधायुक्त छात्रावास की आवश्यकता अत्यंत आवश्यक है।
भारत सरकार की योजना के अंतर्गत ऐसे छात्रावासों में खेल मैदान, आउटडोर व इंडोर गेम्स की सुविधाएं भी सम्मिलित होती हैं, जिससे छात्राओं को शिक्षा के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक विकास का अवसर भी मिल सके। लेकिन स्थानीय प्रशासन की उदासीनता और राजनीतिक असंवेदनशीलता के कारण यह सपना अब तक अधूरा है।
उन्होंने कहा कि सिलौंडी क्षेत्र की कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास, जो कक्षा 6 से 8 तक की छात्राओं के लिए स्वीकृत है, उसी में मजबूरीवश कक्षा 9 से 12 तक की भी छात्राएं रह रही हैं। क्षमता से दोगुना भार इस भवन पर आ चुका है। एक कमरे में जहां तीन बालिकाओं के रहने की व्यवस्था होनी चाहिए, वहां छह छात्राएं किसी तरह समा रही हैं। इससे न केवल उन्हें असुविधा हो रही है बल्कि उनके स्वास्थ्य, अध्ययन और मानसिक स्थिति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
जिला पंचायत सदस्य ने बताया कि वर्तमान व्यवस्था के कारण अनेक बालिकाएं जो नेगाई, कचनारी, भैसवाही, झारापानी, पाली जैसे दूरदराज के गांवों से आती हैं, उन्हें छात्रावास में जगह नहीं मिलने पर वापस अपने गांव लौटना पड़ता है। इससे उनकी पढ़ाई छूट जाती है और वे पुनः घरेलू जिम्मेदारियों या विवाह के दबाव में आ जाती हैं। यह स्थिति न केवल उनके भविष्य के लिए बल्कि समाज के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है।
कविता पंकज राय ने यह भी सवाल उठाया कि जब दो साल पहले 2.60 करोड़ की लागत में यह भवन तैयार हो सकता था, तो अब निर्माण में हो रही लागत वृद्धि का जिम्मेदार कौन होगा? यदि समय पर निर्माण कार्य शुरू हो गया होता तो आज सैकड़ों आदिवासी बालिकाएं बेहतर माहौल में पढ़ाई कर रही होतीं।
उन्होंने बताया कि इस विषय को लेकर उन्होंने मध्यप्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और कटनी कलेक्टर को पत्र लिखे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई है। बुधवार को उन्होंने पुनः कलेक्टर कटनी को पत्र सौंपकर अनुरोध किया है कि नेगाई में चयनित भूमि पर छात्रावास निर्माण कार्य को तत्काल प्रभाव से शुरू किया जाए ताकि आदिवासी बेटियों को शिक्षा का अवसर और सम्मानपूर्ण जीवन मिल सके।
सिलौंडी क्षेत्र के आम नागरिकों और सामाजिक संगठनों में भी इस विषय को लेकर असंतोष व्याप्त है। लोगों का कहना है कि सरकार यदि वास्तव में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारों को जमीन पर उतारना चाहती है, तो उसे ऐसी परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी।