हिजाब पर फिर भड़की बहस: परीक्षा केंद्रों से संसद तक उठे सवाल, फिल्मी जगत की टिप्पणियाँ भी बनीं चर्चा का हिस्सा।

 हिजाब पर फिर भड़की बहस: परीक्षा केंद्रों से संसद तक उठे सवाल, फिल्मी जगत की टिप्पणियाँ भी बनीं चर्चा का हिस्सा।

कोलकाता में NEET परीक्षा में छात्रा को हिजाब के कारण रोके जाने पर मचा बवाल, कर्नाटक विवाद की फिर हुई याद, कंगना, शबाना और हेमा की पुरानी प्रतिक्रियाएं फिर सुर्खियों मैं।

कटनी,ग्रामीण खबर mp:

देश में एक बार फिर हिजाब को लेकर बहस तेज हो गई है। इस बार यह बहस कोलकाता के एक परीक्षा केंद्र से शुरू हुई, जहां NEET-UG परीक्षा देने पहुँची एक मुस्लिम छात्रा फरहीन खान को हिजाब पहनने की वजह से परीक्षा हॉल में प्रवेश नहीं दिया गया। छात्रा के अनुसार परीक्षा केंद्र के कर्मियों ने उसे यह कहते हुए रोक दिया कि जब तक वह हिजाब नहीं उतारती, उसे अंदर प्रवेश नहीं दिया जाएगा। जबकि राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि कोई परीक्षार्थी धार्मिक परिधान धारण करता है, तो उसे अतिरिक्त समय पर बुलाकर अलग से जांच की अनुमति होती है। इस प्रकरण का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही देशभर में बहस छिड़ गई।

इस घटना ने लोगों को 2022 में कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब को लेकर उपजे विवाद की याद दिला दी। उस समय कई सरकारी कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनकर कक्षा में प्रवेश करने से रोका गया था। इस निर्णय के विरुद्ध मामला कर्नाटक हाईकोर्ट में पहुँचा, जहां अदालत ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, जहाँ दो जजों की पीठ में मतभेद होने के कारण यह मुद्दा अब एक बड़ी पीठ को सौंपा गया है, जिसकी सुनवाई अभी लंबित है।

हिजाब पर उठे इस नए विवाद के बाद फिल्मी जगत की कुछ चर्चित हस्तियों की पुरानी प्रतिक्रियाएं भी सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों की सुर्खियों में लौट आई हैं। वर्ष 2022 में अभिनेत्री कंगना रनौत ने कर्नाटक प्रकरण पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अगर किसी को साहस दिखाना है तो अफगानिस्तान में बिना बुर्का पहने बाहर निकलकर दिखाएं। भारत जैसे देश में इस प्रकार की बहस करना दुर्भाग्यपूर्ण है। उनके इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ अभिनेत्री शबाना आज़मी ने कहा था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है, और अफगानिस्तान जैसे धार्मिक राष्ट्र से उसकी तुलना करना पूर्णतः अनुचित है। उन्होंने यह भी कहा था कि महिलाओं को अपनी धार्मिक पहचान के अनुसार कपड़े पहनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

वहीं, भाजपा सांसद और अभिनेत्री हेमा मालिनी ने भी वर्ष 2022 में स्पष्ट रूप से यह कहा था कि स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों में ड्रेस कोड का पालन अनिवार्य होना चाहिए। उनके अनुसार, धार्मिक परिधान पहनना व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन विद्यालयों में नियमों का पालन सभी छात्रों के लिए समान रूप से होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि धार्मिक पहनावे को स्कूल के बाहर पहना जा सकता है, लेकिन शैक्षणिक अनुशासन और एकरूपता बनाए रखने के लिए विद्यालयों में ड्रेस कोड का पालन आवश्यक है।

कोलकाता के NEET प्रकरण ने एक बार फिर इन चर्चाओं को जगा दिया है कि क्या धार्मिक स्वतंत्रता और शिक्षा व्यवस्था एक-दूसरे के विरोध में हैं या एक साथ चल सकती हैं। देशभर में बुद्धिजीवी वर्ग, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल और आम नागरिक इस पर अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। एक ओर जहाँ कई लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान में प्रदत्त अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन और समानता की बात करते हुए ड्रेस कोड के समर्थन में खड़े हैं।

यह भी महत्वपूर्ण है कि अभी तक इस मामले को लेकर कोई औपचारिक न्यायिक कार्यवाही प्रारंभ नहीं हुई है, लेकिन परीक्षा एजेंसी NTA से इस विषय पर स्पष्टीकरण की मांग की जा रही है। दूसरी ओर, शिक्षा मंत्रालय पर भी यह दबाव बढ़ रहा है कि वह परीक्षा केंद्रों में धार्मिक परिधान से जुड़े दिशा-निर्देशों को स्पष्ट रूप से लागू करने की प्रक्रिया बनाए। सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ में लंबित कर्नाटक हिजाब मामला भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिसके निर्णय से भविष्य में ऐसे विवादों के लिए स्पष्ट दिशा निर्धारित हो सकती है।

सामाजिक दृष्टिकोण से भी यह बहस केवल एक वेशभूषा तक सीमित नहीं है। यह एक गहरे विमर्श का विषय बन चुकी है, जिसमें धार्मिक अधिकार, महिला स्वतंत्रता, शिक्षा का चरित्र, और धर्मनिरपेक्षता के मूल्य टकरा रहे हैं। मीडिया, सोशल मीडिया, अदालतें और राजनीतिक मंच सभी इस बहस का हिस्सा बन चुके हैं। यह देखना अब बेहद महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले समय में इस विषय पर सरकार, अदालत और समाज किस दिशा में आगे बढ़ते हैं, और क्या धार्मिक पहचान और शैक्षणिक अनुशासन के बीच कोई संतुलन स्थापित हो पाता है या नहीं।

यह विवाद अब केवल परीक्षा केंद्रों की दीवारों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह राष्ट्रीय विमर्श का एक संवेदनशील और गूढ़ विषय बन गया है, जो आने वाले वर्षों में भी समय-समय पर उभरता रहेगा।


प्रधान संपादक:अज्जू सोनी,ग्रामीण खबर mp
संपर्क सूत्र:9977110734

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