भारत पाकिस्तान संघर्षविराम समझौता,उपमहाद्वीप में शांति की बहाली की ओर एक निर्णायक मोड़

 भारत पाकिस्तान संघर्षविराम समझौता,उपमहाद्वीप में शांति की बहाली की ओर एक निर्णायक मोड़

तीन सप्ताह की सैन्य झड़पों और दर्जनों जानों की क्षति के बाद भारत और पाकिस्तान में अमेरिका की मध्यस्थता से हुआ पूर्ण युद्धविराम, वैश्विक समुदाय ने किया स्वागत।

कटनी,ग्रामीण खबर mp:

उपमहाद्वीप में चल रही अशांति और तीन सप्ताह तक चले भीषण संघर्ष के बाद भारत और पाकिस्तान ने एक बार फिर कूटनीतिक समझदारी का परिचय देते हुए संघर्षविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह ऐतिहासिक पहल 10 मई को अमेरिका की मध्यस्थता से संभव हो सकी, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने निर्णायक भूमिका निभाई। समझौते को लेकर भारत और पाकिस्तान दोनों सरकारों ने पुष्टि की है कि वे तत्काल प्रभाव से सभी सैन्य अभियानों को रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

इस संघर्ष की पृष्ठभूमि में 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ एक भीषण आतंकी हमला था, जिसमें 26 भारतीय नागरिक मारे गए। इसके बाद भारत की ओर से सीमापार आतंकवाद के विरुद्ध सख्त सैन्य प्रतिक्रिया दी गई, जिसे ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया गया। जवाब में पाकिस्तान ने भी कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। परिणामस्वरूप, दोनों देशों में तनाव अपने चरम पर पहुंच गया और युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।

घटनाक्रम को देखते हुए वैश्विक समुदाय विशेषकर संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, चीन और सऊदी अरब ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए तुरंत पहल की। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की मध्यस्थता में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच कई दौर की वार्ताएं हुईं, जिनके परिणामस्वरूप अंततः संघर्षविराम की सहमति बनी।

समझौते के अंतर्गत दोनों पक्ष सीमा पर सभी प्रकार की सैन्य गतिविधियों को तुरंत रोकने, हवाई हमलों और ड्रोन अभियानों पर नियंत्रण रखने, और भविष्य में किसी भी विवाद को शांतिपूर्ण वार्ता से सुलझाने के लिए सहमत हुए हैं। इस कदम की संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, यूरोपीय संघ, ओआईसी और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने सराहना की है। संयुक्त राष्ट्र ने इस समझौते को “क्षेत्रीय शांति की दिशा में एक निर्णायक कदम” बताया है।

हालांकि संघर्षविराम के कुछ ही घंटों बाद जम्मू और श्रीनगर में कुछ विस्फोटों की खबरें सामने आईं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि जमीनी हालात अभी पूरी तरह स्थिर नहीं हैं। भारत ने पाकिस्तान पर संघर्षविराम उल्लंघन का आरोप लगाया, जबकि पाकिस्तान ने इससे इनकार किया है। ऐसे में समझौते का क्रियान्वयन कितना प्रभावशाली होगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव, युद्ध और संघर्षों के बीच यह संघर्षविराम समझौता एक संभावित मोड़ की तरह देखा जा रहा है। यदि यह समझौता विश्वास और पारदर्शिता के साथ लागू होता है, तो इससे केवल भारत और पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि समूचे दक्षिण एशियाई क्षेत्र को दीर्घकालिक शांति और आर्थिक विकास का मार्ग मिल सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अब यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि दोनों देश अपने-अपने आंतरिक राजनीतिक दबावों और कट्टरपंथी ताकतों के प्रभाव से ऊपर उठकर इस समझौते को स्थायित्व दें। सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा, व्यापार और आवागमन पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही, संयुक्त सैन्य आयोग की स्थापना और द्विपक्षीय वार्ता को नियमित करने की योजनाएं भी इस समझौते का हिस्सा हैं।

भारत-पाकिस्तान के संबंधों का इतिहास काफी जटिल और संघर्षपूर्ण रहा है, लेकिन हर बार जब भी कूटनीति ने मोर्चा संभाला, शांति की संभावना बनी है। यह संघर्षविराम भी ऐसे ही एक मोड़ पर खड़ा है, जहाँ आगे बढ़ने के लिए संकल्प, संयम और संवाद आवश्यक है।

यह समझौता उपमहाद्वीप की 1.5 अरब से अधिक जनसंख्या को शांति, स्थिरता और सुरक्षा की नयी आशा प्रदान करता है। यदि यह प्रयास सफल होता है, तो आने वाली पीढ़ियाँ इसे एक ऐतिहासिक मोड़ के रूप में याद रखेंगी—जहाँ दो शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों ने युद्ध नहीं, संवाद को चुना।


प्रधान संपादक:अज्जू सोनी,ग्रामीण खबर mp
संपर्क सूत्र:9977110734

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