महिला एवं बाल विकास विभाग की तत्परता से बाल विवाह पर लगी रोक, परिजनों ने दी लिखित सहमति।
नाबालिग बालिका का विवाह रोका गया।
विदिशा:
जिले के ग्राम काफ, जो थाना सिविल लाइन की सीमा में आता है, वहां एक नाबालिग बालिका के विवाह की सूचना महिला एवं बाल विकास विभाग को प्राप्त हुई। सूचना के अनुसार बालिका का विवाह ग्राम जोहद, तहसील गंजबासौदा में 30 अप्रैल 2025 को प्रस्तावित था। जैसे ही यह जानकारी विभाग के पास पहुँची, तुरंत कार्रवाई करते हुए संबंधित अधिकारियों ने डायल 100 की सहायता से मौके पर पहुंचने का निर्णय लिया।
टीम द्वारा मौके पर पहुँचकर बालिका के परिवारजनों से चर्चा की गई और दस्तावेजों के आधार पर बालिका की उम्र का सत्यापन किया गया। जांच के दौरान बालिका की जन्मतिथि 30 अक्टूबर 2010 पाई गई, जिससे यह पुष्टि हो गई कि वह बालिग नहीं है और उसका विवाह बाल विवाह की श्रेणी में आता है।
नाबालिग होने के कारण विभाग की टीम ने विवाह को तुरंत प्रभाव से रुकवाया और परिजनों को बाल विवाह की कानूनी और सामाजिक दुष्परिणामों के बारे में जागरूक किया। टीम द्वारा परिजनों को यह स्पष्ट रूप से समझाया गया कि बाल विवाह केवल कानूनन अपराध ही नहीं, बल्कि यह बालिका के मानसिक, शारीरिक और शैक्षणिक विकास के लिए भी अत्यंत हानिकारक है। उपस्थित रिश्तेदारों और ग्रामीणजनों को भी बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की जानकारी दी गई और यह बताया गया कि यदि कोई नाबालिग का विवाह करता है तो उसे दंडात्मक कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है।
इस समझाइश के उपरांत बालिका के माता-पिता ने यह लिखित में सहमति दी कि वे अपनी पुत्री का विवाह तब तक नहीं करेंगे जब तक वह 18 वर्ष की कानूनी आयु पूरी नहीं कर लेती। विभाग ने यह लिखित आश्वासन अपने रिकॉर्ड में सुरक्षित कर लिया है।
महिला एवं बाल विकास विभाग की इस तत्परता और संवेदनशीलता की स्थानीय समुदाय द्वारा सराहना की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार की त्वरित और प्रभावी कार्यवाही से न केवल बाल विवाह की घटनाएं रोकी जा रही हैं, बल्कि समाज में जागरूकता भी बढ़ रही है। विभाग ने यह भी संकेत दिया है कि इस क्षेत्र में आगे भी बाल विवाह की रोकथाम के लिए निरंतर निगरानी और जनजागरूकता अभियान चलाए जाएंगे।
इस कार्यवाही से यह सिद्ध होता है कि यदि सरकारी तंत्र सजग और संवेदनशील होकर कार्य करे तो सामाजिक कुरीतियों पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है। बाल विवाह जैसी समस्याएं केवल कानून से नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता और सहभागिता से ही समाप्त की जा सकती हैं।