सिलौंडी बस स्टैंड में मूलभूत सुविधाओं का अभाव,प्रशासन की चुप्पी से बढ़ रहा अतिक्रमण।
महिला जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी के बावजूद प्रसाधन जैसी सुविधा नहीं, ग्रामीणों ने आंदोलन की चेतावनी दी।
सिलौंडी,ग्रामीण खबर MP:
कटनी जिले का दूसरा सबसे बड़ा बस स्टैंड, सिलौंडी, लगातार बदहाली और प्रशासनिक लापरवाही की तस्वीर पेश कर रहा है। जिस बस स्टैंड से प्रतिदिन सैकड़ों यात्री आवाजाही करते हैं, वहां न तो बसों के खड़े होने की व्यवस्थित जगह है, न यात्रियों के बैठने की उचित सुविधा, न पीने के पानी का प्रबंध और न ही प्रसाधन की व्यवस्था। इन बुनियादी सुविधाओं के अभाव में आम लोगों की मुश्किलें बढ़ रही हैं, लेकिन प्रशासनिक तंत्र शिकायतों के बावजूद खामोश बना हुआ है।
ग्रामीणों ने बताया कि बस स्टैंड से सटी सरकारी भूमि पर दबंग लोगों ने कब्जा कर लिया है। खसरा नंबर 494 में भूमि शासकीय होने के स्पष्ट प्रमाण मौजूद हैं। नायब तहसीलदार ने इस पर पहले नोटिस जारी किया था और जुर्माना भी वसूला था, लेकिन अब सत्ता संरक्षण और दबाव के चलते कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि दुकानदार अपनी दुकान के सामने की जमीन और सरकारी नालों तक पर कब्जा जमाते जा रहे हैं। अधिकारी केवल “पटवारी प्रतिवेदन” की बात कहकर लोगों को टाल रहे हैं।
इस लापरवाही का सबसे बड़ा खामियाजा महिलाओं और कॉलेज में पढ़ने वाली बालिकाओं को उठाना पड़ रहा है। प्रसाधन की सुविधा न होने से उन्हें मजबूरी में खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि यह स्थिति उनकी इज्जत और सुरक्षा दोनों पर गहरा सवाल खड़ा करती है। उनका कहना है कि सरकारी नाले के ऊपर प्रसाधन का निर्माण आसानी से किया जा सकता है, मगर राजनीतिक दबाव और पैसों के लेन-देन ने प्रशासन को चुप करा रखा है।
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही सिलौंडी बस स्टैंड पर प्रसाधन सहित सभी मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था नहीं की गई तो वे उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि क्षेत्र में महिला सांसद, जनपद पंचायत अध्यक्ष, जिला पंचायत अध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य, जनपद सदस्य, सरपंच और 13 महिला पंच होने के बावजूद महिलाओं के लिए एक प्रसाधन तक की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है। यह न केवल प्रशासन की नाकामी है बल्कि महिला सम्मान पर सीधा प्रहार है।
नायब तहसीलदार नरेंद्र खरे का कहना है कि वे अभी हाल ही में सिलौंडी पदस्थ हुए हैं और पटवारी प्रतिवेदन लेकर आगे की कार्रवाई करेंगे। लेकिन लगातार लटकी फाइलें और अधिकारियों का टालमटोल रवैया अब ग्रामीणों के सब्र का बांध तोड़ने लगा है। लोग साफ कह रहे हैं कि यदि प्रशासन ने आंखें बंद रखना जारी रखा तो आंदोलन की गूंज पूरे जिले में सुनाई देगी।
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