78 वर्षों की आज़ादी के बाद भी ग्रामीण भारत का एक गांव सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित,बेलानारा के बच्चे जान जोखिम में डालकर पहुंचते हैं स्कूल।

 78 वर्षों की आज़ादी के बाद भी ग्रामीण भारत का एक गांव सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित,बेलानारा के बच्चे जान जोखिम में डालकर पहुंचते हैं स्कूल।

घटवाई से बेलानारा तक जोखिम भरे कच्चे रास्ते पर हर दिन स्कूली बच्चों और ग्रामीणों की जान से खिलवाड़, 2017 से लगातार मांगों के बावजूद आज भी शासन-प्रशासन मौन।

विदिशा,ग्रामीण खबर MP:

आज़ादी के 78 वर्ष पूरे होने के बाद भी देश के कई ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं जहां विकास की रोशनी अब तक नहीं पहुंच सकी है। ऐसा ही एक उदाहरण है मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के जनपद पंचायत नटेरन के अंतर्गत आने वाला ग्राम बेलानारा। यह गांव आज भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है।

यह क्षेत्र ग्राम पंचायत घटवाई के अधीन आता है, जहां से हाईवे पर स्थित घटवाई बस स्टॉप से ग्राम बेलानारा को जोड़ने वाला लगभग 1 किलोमीटर लंबा मार्ग पूरी तरह से जर्जर और असुरक्षित है। यह रास्ता कीचड़, गड्ढों और दलदल से भरा रहता है, जिस पर न केवल दोपहिया वाहन चलाना मुश्किल है, बल्कि पैदल चलना भी खतरे से खाली नहीं।

इस रास्ते से प्रतिदिन ग्राम बेलानारा के लगभग 30 छात्र-छात्राएं नटेरन स्थित शासकीय सीएमराईज स्कूल पढ़ने के लिए आते-जाते हैं। इन बच्चों को 3 किलोमीटर पैदल चलकर घटवाई बस स्टॉप तक पहुंचना पड़ता है, जहां से वे स्कूल बस पकड़ते हैं। इस दौरान उन्हें कई बार फिसलन, गड्ढों, एवं कीचड़ में गिरने जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है।

9वीं कक्षा के छात्र कोक सिंह जाटव ने बताया कि “हम रोज़ सड़क के नाम पर बने इस नाले जैसे रास्ते से गुजरते हैं, जरा सी बारिश हो जाए तो पूरा रास्ता दलदल बन जाता है। अगर बस सीधे हमारे गांव तक आए तो हमें न समय की दिक्कत होगी, न गिरने का डर रहेगा।”

गांव के अन्य बच्चों और अभिभावकों ने भी बताया कि कई बार बच्चे बीमार होकर स्कूल नहीं जा पाते, तो कई बार समय पर स्कूल न पहुंच पाने के कारण उन्हें सजा मिलती है। इससे बच्चों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ता है।

ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने 2017 से लेकर अब तक दर्जनों बार पंचायत स्तर से लेकर जनपद, जिला और विधानसभा स्तर तक अपनी शिकायतें और मांगें पहुंचाईं। इसके बावजूद कोई समाधान नहीं निकला। ग्रामवासियों ने चक्का जाम, धरना प्रदर्शन जैसी शांतिपूर्ण गतिविधियों के माध्यम से भी शासन का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की, मगर हर बार उन्हें आश्वासन ही मिला — हकीकत में आज तक रोड नहीं बनाई गई।

गांव की बुजुर्ग महिला महिलाओं ने बताया कि "हमारे पोते स्कूल जाते हैं, लेकिन हर दिन डर लगा रहता है कि कहीं रास्ते में गिर न जाएं, कुछ हो न जाए। हम लोग तो अब थक गए हैं मांग करते-करते, अब तो विश्वास भी उठ गया है ऊपर वालों से।"

बेलानारा न केवल सड़क के अभाव से जूझ रहा है, बल्कि बिजली, स्वास्थ्य सेवा और स्वच्छ जल जैसी अन्य आधारभूत सुविधाओं की भी भारी कमी से प्रभावित है। यह गाँव आज भी मानो स्वतंत्र भारत की परछाई में जी रहा है, जहां विकास एक सपना बनकर रह गया है।

जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता और पंचायत की उदासीनता ने ग्रामीणों के भीतर भारी असंतोष भर दिया है। युवा वर्ग भी अब सवाल उठाने लगा है कि "क्या सिर्फ चुनावी घोषणा पत्रों में ही गांव का नाम आता है?"

अब समय आ गया है कि शासन और प्रशासन इस ओर गंभीरता से ध्यान दे। ग्राम बेलानारा के लोगों को भी अन्य नागरिकों की तरह सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। उन्हें भी सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा जैसी सुविधाएं मिलनी चाहिए — न कि केवल आश्वासन और उपेक्षा।

ग्रामीण खबर MP-

जनमानस की निष्पक्ष आवाज

विशेष संवाददाता:हाकम सिंह रघुवंशी

Post a Comment

Previous Post Next Post