बरसात में दलदल में तब्दील हुआ किसान मार्ग, हर दिन संघर्ष करती किसान जिंदगियाँ, खेत पहुंचना बना बड़ी चुनौती।

बरसात में दलदल में तब्दील हुआ किसान मार्ग, हर दिन संघर्ष करती किसान जिंदगियाँ, खेत पहुंचना बना बड़ी चुनौती।

विदिशा जिले की खैरई पंचायत के ग्राम बेला नारा में बदहाल कच्चा रास्ता बना किसानों की पीड़ा का कारण, मजबूर होकर आधा किलोमीटर की फसल को 6 किलोमीटर घुमकर लाते हैं कृषक।

विदिशा,ग्रामीण खबर mp:

गांवों की तस्वीर बदलने और अंतिम छोर तक विकास पहुँचाने के दावे अक्सर कागज़ों तक ही सीमित रह जाते हैं। इसकी एक बानगी है विदिशा जिले के नटेरन जनपद की ग्राम पंचायत खैरई के अंतर्गत आने वाला ग्राम बेला नारा, जहां खेतों की ओर जाने वाला मुख्य मार्ग वर्षों से उपेक्षित पड़ा है। हर साल बरसात में यह रास्ता दलदल में तब्दील हो जाता है और किसानों के लिए खेतों तक पहुंचना एक चुनौतीपूर्ण काम बन जाता है।

यह कच्चा मार्ग ग्राम घिनोचि की ओर जाता है, जिससे न सिर्फ बेला नारा के किसानों को बल्कि आसपास के ग्रामों के भी अनेक कृषकों और श्रमिकों को आना-जाना होता है। इस दलदली रास्ते से न केवल पैदल चलना मुश्किल होता है बल्कि किसी भी प्रकार की साइकिल, बाइक, बैलगाड़ी या ट्रैक्टर से गुजरना जोखिम भरा बन जाता है।

इसी मार्ग पर खिलन सिंह जाटव का कृषि फार्म स्थित है, जिनके पास बड़ी संख्या में गाय-भैंस हैं और उन्हें दिन में कम से कम चार बार इस रास्ते से आना-जाना पड़ता है। वहीं, आशुतोष रघुवंशी  का कृषि फार्म भी इसी क्षेत्र में है, जहां बाहर से आई हुई लेबर निवास करती है। इन मजदूरों को भी कीचड़ भरे इस रास्ते से रोज गुजरना पड़ता है, जिससे उनका काम प्रभावित होता है।

ओमकार जाटव, जो पूरे वर्ष इसी रास्ते के पास अपने मकान में निवास करते हैं, बताते हैं कि यह समस्या केवल उनकी नहीं बल्कि पूरे गांव और क्षेत्र की है। बरसात के मौसम में घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाता है। कीचड़ इतना गहरा हो जाता है कि पैदल निकलना भी जोखिमपूर्ण होता है।

यह मार्ग केवल बेला नारा के किसानों के लिए नहीं, बल्कि आसपास के कई ग्रामों के कृषकों के लिए भी जीवनरेखा है। इस मार्ग से प्रतिदिन गुजरने वालों में शामिल हैं:
मुकेश रघुवंशी (खैराई), प्रीतम सिंह (हथोड़ा), हिम्मत सिंह रघुवंशी (खैराई), गजेंद्र सिंह रघुवंशी (खैराई), हरि सिंह कुशवाहा, रतन सिंह जाटव, राम सिंह वंशकार, गंगाराम जाटव, लक्ष्मण जाटव, मोतीलाल जाटव, ग्यासी लाल जाटव, मुन्ना लाल, लखन जाटव, हरेत देसवरी, सुरेश देसवरी, उधम जाटव, रामगोपाल कुशवाहा और भोगी राम जाटव। इनके अलावा अन्य कई किसान भी इसी मार्ग से होकर खेतों तक जाते हैं और प्रतिवर्ष बारिश के मौसम में इन्हें भीषण परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

सबसे गंभीर बात यह है कि यह मार्ग इतना खराब हो चुका है कि किसान जो फसल खेत से अपने घर तक आधा किलोमीटर की दूरी पर लाना चाहते हैं, उन्हें मजबूरन 6 किलोमीटर का चक्कर लगाकर दूसरे गांवों से होकर वह फसल लानी पड़ती है। इससे न केवल समय और श्रम की हानि होती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता और लागत पर भी विपरीत असर पड़ता है।

ग्रामवासियों का कहना है कि उन्होंने कई बार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से इस मार्ग के निर्माण की मांग की, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। क्षेत्रीय प्रशासन की अनदेखी और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता पर गांव के लोग आक्रोशित हैं और अब सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे को उठाने को मजबूर हुए हैं।

ग्रामवासियों की ओर से ओमकार जाटव और अन्य किसानों ने शासन-प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों से पुनः निवेदन किया है कि इस महत्वपूर्ण मार्ग का शीघ्र निर्माण कराया जाए, ताकि खेतों तक पहुंचने के लिए लोगों को दलदल से न गुजरना पड़े और खेती-किसानी सुचारू रूप से चल सके।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा बार-बार ग्रामों के अंतिम छोर तक विकास पहुंचाने की जो बात कही जाती है, वह तभी सार्थक होगी जब ऐसे बुनियादी मुद्दों पर प्राथमिकता से कार्य किया जाएगा। किसान देश की रीढ़ हैं, और यदि वे ही प्रताड़ित रहेंगे, तो आत्मनिर्भर भारत का सपना अधूरा रह जाएगा।

ग्रामीण खबर एमपी से विशेष संवाददाता - हाकम सिंह रघुवंशी की खास रिपोर्ट।

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