कटनी कलेक्टर के प्रतिबंध आदेश की सरेआम अवहेलना,ढीमरखेड़ा में दिनदहाड़े चल रही अवैध बोरिंग मशीनें,प्रशासन की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में।

 कटनी कलेक्टर के प्रतिबंध आदेश की सरेआम अवहेलना,ढीमरखेड़ा में दिनदहाड़े चल रही अवैध बोरिंग मशीनें,प्रशासन की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में।

ढीमरखेड़ा तहसील में खुलेआम चल रही बोरिंग मशीनें, कलेक्टर के आदेशों को ठेंगा दिखा रहे एजेंट और मशीन मालिक, पुलिस थाने के पास खेत में भी हुआ बोरिंग कार्य।

ढीमरखेड़ा,ग्रामीण खबर mp:

कटनी जिले में भूमिगत जल स्रोतों के अत्यधिक दोहन और जल संकट की गंभीरता को देखते हुए जिला कलेक्टर द्वारा बोरिंग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके बावजूद जिले के ढीमरखेड़ा तहसील क्षेत्र में कलेक्टर के इस आदेश की सरेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। सबसे ताजा मामला सामने आया है ढीमरखेड़ा पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत मुख्य सड़क से लगे पप्पू लाला के खेत का, जहां राजा तिवारी नामक व्यक्ति की बोरिंग मशीन द्वारा दिनदहाड़े बोरिंग की गई।

यह न केवल प्रतिबंध की सीधी अवहेलना है, बल्कि प्रशासनिक निष्क्रियता और लापरवाही का स्पष्ट प्रमाण भी है। यह घटना क्षेत्र के आम नागरिकों के बीच आक्रोश का कारण बनती जा रही है, क्योंकि प्रतिबंध के बावजूद बोरिंग मशीनें बिना किसी भय के खुलेआम खेतों में गड्ढे खोद रही हैं और जलस्रोतों का अत्यधिक शोषण जारी है।

स्थानीय ग्रामीणों और प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि यह कोई पहला मामला नहीं है। ढीमरखेड़ा और आस-पास के इलाकों में आए दिन इस तरह की बोरिंग होती रहती है। मशीनें एजेंटों द्वारा गाँव-गाँव में चुपचाप नहीं, बल्कि खुलेआम लाई जाती हैं और सार्वजनिक रूप से बोरिंग का कार्य संपन्न किया जाता है। इससे यह संदेश जा रहा है कि प्रशासन या तो इस सब से अनभिज्ञ है या फिर कहीं न कहीं मिलीभगत की स्थिति बनी हुई है।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह बोरिंग कार्य ढीमरखेड़ा पुलिस थाने से कुछ ही दूरी पर, मुख्य मार्ग से लगे खेत में किया गया। यह सीधे तौर पर प्रशासनिक निष्क्रियता और आपसी तालमेल की कमी को दर्शाता है। सवाल यह भी उठता है कि क्या पुलिस और प्रशासन को इस बोरिंग की जानकारी नहीं थी, या जानबूझकर इस पर आँखें मूँद ली गईं?

कलेक्टर के आदेश की अवहेलना केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि जल संकट जैसी गंभीर समस्या को और बढ़ावा देना भी है। जब उच्चस्तरीय प्रशासनिक अधिकारी द्वारा कोई आदेश जारी किया जाता है, तो उसका पालन सुनिश्चित करना निचले स्तर के अधिकारियों की जिम्मेदारी बनती है। लेकिन जब उसी प्रशासन के नाक के नीचे यह सब हो रहा हो, तो जनमानस में यह भावना पनपना स्वाभाविक है कि नियम-कानून केवल दिखावे के लिए हैं।

यह स्थिति चिंताजनक है और प्रशासन की नीयत और कार्यशैली दोनों पर गहरे प्रश्नचिह्न लगाती है। बोरिंग जैसी गतिविधियाँ, जो कि पानी की बर्बादी और भूगर्भ जल स्तर में गिरावट की वजह बन रही हैं, उन पर प्रतिबंध लगाने के पीछे गंभीर वैज्ञानिक और पर्यावरणीय तर्क होते हैं। लेकिन जब ऐसे प्रतिबंधों की सरेआम धज्जियाँ उड़ती हैं, तो जिले के भविष्य को लेकर चिंता और गहराने लगती है।

अब देखना यह दिलचस्प और महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस समाचार के प्रकाश में आने के बाद जागता है या फिर एक बार फिर से आंख मूंद कर ऐसे ही मामलों को नज़रअंदाज़ करता रहेगा। क्या जिम्मेदारों पर कोई कार्यवाही होगी? क्या कलेक्टर के आदेशों को गंभीरता से लिया जाएगा? या फिर ढीमरखेड़ा और जिले के अन्य हिस्सों में इसी तरह अवैध बोरिंग का खेल चलता रहेगा, जिसमें आम जनता का भविष्य दांव पर लगा रहेगा।


प्रधान संपादक:अज्जू सोनी, ग्रामीण खबर mp
संपर्क सूत्र:9977110734

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