आईसीएआर की भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ केवीके कर्मचारियों का राष्ट्रव्यापी आंदोलन।

 आईसीएआर की भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ केवीके कर्मचारियों का राष्ट्रव्यापी आंदोलन।

वन नेशन वन केवीके नीति लागू करने की मांग तेज वेतन,पदोन्नति और सेवा शर्तों में समानता को लेकर देशभर में प्रदर्शन।

सिहोरा,ग्रामीण खबर MP।

17 नवंबर 2025 को पूरे देश में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के कर्मचारियों ने आईसीएआर की कथित भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन किया। गैर-आईसीएआर होस्ट संस्थानों के अधीन कार्यरत कर्मचारियों ने “कलम बंद हड़ताल एवं प्रदर्शन” कर अपनी नाराजगी जताई। उनका मुख्य आग्रह है कि परौदा उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के अनुरूप “वन नेशन, वन केवीके” नीति को तत्काल लागू किया जाए और आईसीएआर द्वारा किए जा रहे भेदभाव को समाप्त किया जाए।

कर्मचारियों का आरोप है कि आईसीएआर के अधीन संचालित केवीके की तुलना में उन्हें वेतनमान, सेवा शर्तों और पदोन्नति में लगातार उपेक्षा झेलनी पड़ रही है। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि समान कार्य के बावजूद वे कम वेतन, विलंबित वेतन, पदोन्नति के अभाव और सेवा शर्तों में असमानता का सामना कर रहे हैं। कई राज्यों में 6 से 9 माह तक वेतन लंबित रहने तथा होस्ट संस्थान द्वारा पदोन्नति दिए जाने पर आईसीएआर द्वारा वेतन रोकने जैसी समस्याओं को गंभीरता से उठाया गया। कर्मचारियों ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 38 और 39 का उल्लंघन बताया।

आंदोलन सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चला। फोरम ऑफ केवीके एंड एआईसीआरपी तथा केवीके एम्प्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन म.प्र. के आह्वान पर देशभर के केवीके कर्मचारियों ने अपने-अपने केंद्रों पर एकत्र होकर नारेबाज़ी की और शासन-प्रशासन से संघर्षपूर्ण स्थितियों पर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।

1974 में अपनी स्थापना के बाद से केवीके देश की कृषि प्रसार प्रणाली की आधारशिला रहे हैं। वैज्ञानिक शोध को किसानों तक पहुँचाने, युवाओं को प्रशिक्षण देने और तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। देश के केवल 9% केवीके सीधे आईसीएआर के अधीन हैं, जबकि 91% राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, एनजीओ, राज्य सरकारों और अन्य संस्थानों द्वारा संचालित किए जाते हैं। ऐसे में समान कार्य के लिए असमान वेतन और सुविधाएँ लंबे समय से विवाद का विषय रहे हैं।

कर्मचारियों ने वेतन व भत्तों की बहाली, सभी केवीके में समान पदोन्नति नीति, पेंशन-ग्रेच्युटी एवं समान सेवानिवृत्ति आयु का लाभ, वेतन में होने वाली देरी का स्थायी समाधान और प्रशासनिक टकराव की स्थिति को समाप्त करने की मांग की। कर्मचारियों का कहना है कि आईसीएआर द्वारा जारी विरोधाभासी आदेशों से कार्यस्थल का वातावरण प्रभावित हो रहा है।

फोरम ने परौदा समिति की सिफारिशों को तत्काल लागू करने और “वन नेशन, वन केवीके, वन पॉलिसी” लागू करने पर जोर दिया है। फोरम ने स्पष्ट कर दिया है कि अब किसी मौखिक या फोन पर दिए गए आश्वासन को स्वीकार नहीं किया जाएगा, केवल आईसीएआर द्वारा जारी औपचारिक लिखित आदेश ही मान्य होंगे।

फोरम व केवा म.प्र. ने कहा कि यह आंदोलन राष्ट्रविरोधी नहीं, बल्कि न्याय की मांग है। केवीके कर्मचारियों ने पिछले 50 वर्षों से किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसलिए उनकी न्यायपूर्ण मांगों को स्वीकार करना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों का समाधान नहीं हुआ तो आगे और बड़े लोकतांत्रिक कदम उठाए जाएंगे।

फोरम को विश्वास है कि केंद्र और राज्य सरकारों के हस्तक्षेप से इन मुद्दों का न्यायसंगत समाधान होगा और केवीके कर्मचारियों को वह अधिकार और सम्मान मिल सकेगा जिसके वे हकदार हैं।

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