पं. देवप्रभाकर मंदिर में वैदिक मंत्रों और जलाभिषेक से सम्पन्न हुआ प्राण प्रतिष्ठा का दूसरा चरण।

 पं. देवप्रभाकर मंदिर में वैदिक मंत्रों और जलाभिषेक से सम्पन्न हुआ प्राण प्रतिष्ठा का दूसरा चरण।

मंदिर के शिखर पर फहराई जाएगी 15 फीट ऊंची धर्म ध्वजा,अमृतमयी कथा के शुभारंभ पर निकली भव्य शोभायात्रा।

कटनी,ग्रामीण खबर MP।

दद्दा धाम में प्राचीन नागर शिला मंदिर की शैली पर निर्मित परमपूज्य गुरुदेव पं. देवप्रभाकर शास्त्री ‘दद्दाजी’ के नवनिर्मित मंदिर में चल रहे तीन दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के दूसरे दिन का आयोजन अत्यंत श्रद्धा, भक्ति और वैदिक परंपराओं के साथ सम्पन्न हुआ।

सुबह ब्रह्ममुहूर्त से ही मंदिर प्रांगण में वैदिक आचार्यों और साधु-संतों की उपस्थिति में पंचरात्र आगम शास्त्रों के अनुसार विधिविधान प्रारंभ हुआ। पंडित पूरनलाल शास्त्री एवं पंडित कालिका प्रसाद पांडे के निर्देशन में देश के विभिन्न प्रांतों से आए 31 आचार्यों ने वैदिक मंत्रोच्चार और शंखध्वनि के बीच भारत की सात पवित्र नदियों — गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी — के पवित्र जल से जलाभिषेक कराया।

देव विग्रह पर चंदन का लेप करने के बाद शुद्ध वस्त्र से पोछन, पगड़ी और अंगौछा धारण की प्रक्रिया सम्पन्न हुई। इसके पश्चात शिष्य मंडल की ओर से संजय पाठक, आशुतोष राणा, डॉ. अनिल त्रिपाठी, डॉ. सुनील त्रिपाठी, पंडित नीरज त्रिपाठी और यश पाठक ने गुरु वंदना करते हुए राजभोग अर्पित किया। इस अवसर पर श्रद्धा, समर्पण और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिला।

पूरे दद्दा धाम परिसर में वैदिक मंत्रों की गूंज और शंखध्वनि से वातावरण पवित्रता और आध्यात्मिकता से भर उठा। आचार्यों द्वारा किए गए हवन, आहुतियों की सुगंध और चारों दिशाओं में गूंजते मंत्रोच्चारों ने भक्ति का अद्वितीय वातावरण निर्मित किया।

दोपहर में मंदिर के शिखर पर 15 फीट ऊंचे पीतल के दंड पर धर्म ध्वजा फहराई गई। ध्वजा फहराने से पूर्व यजमान के रूप में संजय पाठक ने ध्वज दंड का वैदिक पूजन कर धार्मिक परंपराओं का पालन किया। ध्वज फहराते समय पूरे परिसर में “हर हर महादेव” और “दद्दा जी अमर रहें” के उद्घोष से आकाश गूंज उठा।

सुबह से ही पंडाल में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ी रही। भक्तों ने मिलकर लाखों की संख्या में पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण किया। इस दृश्य ने दद्दा धाम को शिवमय बना दिया। दोपहर में आचार्यों द्वारा विधिवत रुद्राभिषेक कराया गया, जिसमें भक्तों ने आस्था पूर्वक भाग लिया और अपने आराध्य से कल्याण की कामना की।

मंदिर प्रांगण में सायंकालीन बेला में भव्य अमृतमयी कथा का शुभारंभ हुआ। कथा के शुभारंभ अवसर पर वृंदावन के प्रसिद्ध कथा वाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज और श्री इंद्रेश जी महाराज का स्वागत फूलों की वर्षा और आरती के साथ किया गया। दद्दा धाम से कथा स्थल तक निकाली गई शोभायात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। शोभायात्रा मार्ग में जगह-जगह भक्तों ने आरती उतारकर कथा वाचक का स्वागत किया। पूरा मार्ग पुष्पों से सुसज्जित था और भक्ति संगीत की धुनों पर श्रद्धालु झूमते रहे।

कथा प्रारंभ करने से पूर्व अनिरुद्धाचार्य महाराज ने दद्दा जी की समाधि स्थल पर पहुंचकर उन्हें महान संत बताते हुए नमन किया और उनके आशीर्वाद प्राप्त किए। उन्होंने कहा कि दद्दा जी केवल एक गुरु नहीं, बल्कि समाज के आध्यात्मिक पथप्रदर्शक रहे हैं, जिनकी शिक्षाएं आज भी जनमानस को दिशा दे रही हैं।

शाम को विशाल पंडाल में संगीतमय भजन संध्या का आयोजन हुआ, जिसमें प्रसिद्ध भजन गायकों ने भक्तिरस से सराबोर प्रस्तुतियाँ दीं। “जय जय दद्दा देव प्रभाकर”, “हर हर महादेव” और “गुरु वंदना” के स्वर वातावरण में गूंजते रहे।

दद्दा धाम में चल रहा यह महोत्सव प्रतिदिन आस्था, अध्यात्म और भक्ति का नया अध्याय रच रहा है। श्रद्धालुओं की बढ़ती उपस्थिति इस आयोजन की भव्यता और दिव्यता का प्रमाण बन रही है। हर आयु वर्ग के लोग, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग — सभी इस आध्यात्मिक महायज्ञ का हिस्सा बनकर स्वयं को धन्य अनुभव कर रहे हैं।

आचार्यों ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा का अंतिम चरण ब्रह्ममुहूर्त में सम्पन्न होगा, जिसके बाद भक्तों के लिए मंदिर के द्वार खुलेंगे। यह ऐतिहासिक क्षण दद्दा जी के अनुयायियों और भक्तों के लिए एक अविस्मरणीय अध्यात्मिक पर्व के रूप में दर्ज होगा।

दद्दा धाम आज भक्ति, सेवा और आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बन चुका है। मंदिर परिसर में हर ओर भक्ति भाव, श्रद्धा और दिव्यता की झलक मिल रही है, जो इस आयोजन को एक अद्भुत और अविस्मरणीय अध्याय बना रही है।

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