रीठी के सरकारी अस्पताल में अव्यवस्थाओं का बोलबाला, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली ने मरीजों की बढ़ाई मुश्किलें।
कर्मचारियों की तानाशाही, गंदगी, पानी की किल्लत और शौचालयों पर ताले ने गरीब मरीजों की बढ़ाई पीड़ा।
रीठी,ग्रामीण खबर mp:
शासन-प्रशासन जहां एक ओर ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के दावे कर रहा है, वहीं दूसरी ओर रीठी स्थित शासकीय अस्पताल की जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोलती नजर आ रही है। अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्थाएं, कर्मचारियों की मनमानी और मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव आम मरीजों के लिए परेशानी का सबब बन चुका है। ग्रामीणों का कहना है कि अस्पताल में गर्मी को देखते हुए पीने के पानी की कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है।
अस्पताल परिसर में न तो साफ-सफाई का इंतजाम है और न ही शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं। हालात यह हैं कि शौचालयों पर ताले जड़े रहते हैं और मरीजों को उनका उपयोग करने नहीं दिया जाता। पीने के पानी की अनुपलब्धता के कारण मरीजों और उनके परिजनों को आसपास के घरों या दुकानों से पानी मांगकर लाना पड़ता है।
गंदगी का आलम यह है कि अस्पताल के अंदर और बाहर चारों ओर कचरा फैला हुआ है। नालियां जाम हैं, जगह-जगह बदबू और मच्छरों का आतंक है। अस्पताल स्टाफ को साफ-सफाई से कोई सरोकार नहीं दिखता, और संबंधित अधिकारी निरीक्षण के नाम पर केवल खानापूर्ति करते नजर आते हैं।
ग्रामीणों के अनुसार, यह स्थिति कोई नई नहीं है। कई वर्षों से अस्पताल में यही हालात बने हुए हैं, लेकिन इस दिशा में कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। मरीज जब अपनी तकलीफें बताते हैं या सुधार की मांग करते हैं तो स्टाफ की ओर से उन्हें डांट-फटकार कर चुप करा दिया जाता है। कुछ मामलों में तो परिजनों को अस्पताल से बाहर तक निकाल दिया गया है।
कर्मचारियों की तानाशाही और लापरवाह रवैये के कारण अस्पताल पूरी तरह से ठप पड़ता जा रहा है। सुविधाओं के अभाव में गंभीर मरीजों को प्राथमिक उपचार तक नहीं मिल पाता, और उन्हें कटनी या जबलपुर जैसे बड़े शहरों में रेफर किया जाता है। इससे गरीब मरीजों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
अस्पताल में डॉक्टरों की नियमित उपस्थिति भी सवालों के घेरे में है। कई बार मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ता है, लेकिन डॉक्टर नदारद रहते हैं। वहीं कुछ कर्मचारी अस्पताल को अपनी निजी जागीर समझ बैठे हैं और उन्हें जवाबदेही का कोई डर नहीं है।
ग्रामीणों ने कलेक्टर कटनी को इस गंभीर स्थिति से अवगत कराते हुए मांग की है कि अस्पताल की हालत में सुधार किया जाए, जिम्मेदारों पर कार्रवाई की जाए और मरीजों के लिए बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं। साथ ही, उन्होंने यह भी आग्रह किया है कि अस्पताल की नियमित मॉनिटरिंग की जाए और जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से पारदर्शी व्यवस्था विकसित की जाए।
अब देखना यह होगा कि शासन-प्रशासन ग्रामीणों की इस गुहार को कितनी गंभीरता से लेता है। क्या रीठी के सरकारी अस्पताल की बदहाली पर कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा या यह मामला भी वर्षों तक फाइलों की धूल में दबा रहेगा? फिलहाल तो स्थिति यही कहती है कि स्वास्थ्य सेवा की सबसे पहली कड़ी — सरकारी अस्पताल — यहां खुद बीमार है और उसके इलाज की सख्त जरूरत है।