उमरिया पान शासकीय अस्पताल में इलाज के नाम पर शर्मनाक बर्ताव: मासूम बच्ची को नहीं मिला इलाज, गर्भवती महिला संग बदतमीजी, बीएमओ डॉ. बी.के. प्रसाद पर गम्भीर आरोपों की बौछार।
गाय के बछड़े से घायल बच्ची को नजरअंदाज़ कर दिया गया, डॉक्टरों ने नहीं किया इलाज, अभिभावकों को दी गालियाँ, भाजपा नेताओं की भी नहीं सुनी बात।
उमरिया पान,ग्रामीण खबर mp:
ग्राम गढ़वास निवासी पुष्पराज लोनी, पिता शारदा प्रसाद लोनी, हाल ही में अपनी मात्र दो वर्षीय बच्ची आकांक्षा लोनी को लेकर उमरिया पान के शासकीय अस्पताल पहुंचे। उनकी बच्ची को गाँव में एक गाय के बछड़े ने टक्कर मार दी थी, जिससे उसके दांत टूट गए और मुंह में गंभीर सूजन आ गई। हालात गंभीर थे, इसलिए पुष्पराज अपनी गर्भवती पत्नी को साथ लेकर तत्काल सरकारी अस्पताल पहुँचे और ओपीडी की विधिवत पर्ची भी कटवाई।
लेकिन जिस भरोसे के साथ वो अस्पताल पहुंचे थे, वह भरोसा वहाँ मौजूद डॉक्टरों की बेरुखी और लापरवाही ने चकनाचूर कर दिया। अस्पताल के डॉक्टर आपस में बैठकर गप्पें मारते रहे और किसी ने भी मासूम बच्ची की स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया। करीब एक घंटे तक इंतजार करने के बाद जब पुष्पराज ने बीएमओ डॉ. बी.के. प्रसाद से मदद की गुहार लगाई, तो उनके व्यवहार ने अस्पताल की गरिमा को शर्मसार कर दिया।
डॉ. बी.के. प्रसाद ने इलाज करने से साफ इनकार करते हुए पुष्पराज से बेहद अभद्रता से बात की। उन्होंने कहा, “क्या अस्पताल तुम्हारे बाप का है?” और यहीं नहीं रुके, बल्कि पुष्पराज तथा उनकी गर्भवती पत्नी को अपमानित करते हुए माँ-बहन की गंदी गालियाँ दीं। उन्होंने महिला को भी अश्लील भाषा में अपशब्द कहे और धमकी देते हुए कहा – “फिर आना इलाज कराने, तब बताऊंगा।”
एक तरफ मासूम बच्ची दर्द से कराह रही थी, दूसरी तरफ उसकी गर्भवती माँ अपमान के आंसू बहा रही थी। आखिरकार, परिवार को निराश होकर निजी डॉक्टर शुक्ला के पास जाकर इलाज कराना पड़ा।
घटना से आहत पुष्पराज ने इस पूरे मामले की शिकायत स्थानीय भाजपा नेताओं से की, जिनमें कई वरिष्ठ और प्रतिष्ठित चेहरे शामिल थे। नेता गण जब अस्पताल पहुंचे और डॉ. बी.के. प्रसाद से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने इन जनप्रतिनिधियों की भी कोई परवाह नहीं की। न बैठने को कहा, न ही सम्मानपूर्वक वार्तालाप किया। सभी नेता खड़े-खड़े अपनी बात कहकर लौट आए।
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति या परिवार की नहीं, बल्कि उस पूरी व्यवस्था की विफलता का प्रतीक है जो गरीबों और असहाय लोगों के लिए बनाई गई थी। शासकीय अस्पतालों का उद्देश्य था कि अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक इलाज की सुविधा पहुँचे, लेकिन जब वहीं उसे अपमान और गालियाँ मिलें, तो फिर इस तंत्र का औचित्य ही क्या रह जाता है?
क्या डॉ. बी.के. प्रसाद जैसे अधिकारी, जो अपने पद का घमंड लेकर आमजन से दुर्व्यवहार करते हैं, पर कोई कार्यवाही होगी? क्या शासन-प्रशासन की आंखें खुलेंगी? या फिर ऐसे अधिकारी यूं ही गरीबों की उम्मीदों को कुचलते रहेंगे?
ग्रामीण समाज पूछ रहा है – अगर शासकीय अस्पतालों में इलाज नहीं, इज्जत नहीं, सहानुभूति नहीं – तो फिर गरीब जाए कहाँ?